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Jharkhand Kurmi Adivasi Controversy : आदिवासी समाज ने ऐतिहासिक तथ्यों के साथ मांग को बताया ‘नाजायज’, कहा- कुड़मी कभी आदिवासी नहीं थे

Kurmi Adivasi Controversy : वक्ताओं ने अपने तर्क में कहा कि ब्रिटिश शासन के दौरान हुई जनगणनाओं से लेकर स्वतंत्र भारत की सभी संवैधानिक सूचियों और आयोगों की रिपोर्ट में कुड़मियों को हमेशा एक कृषक जाति या अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के रूप में ही पहचाना गया है।

by Anand Mishra
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Chaibasa (Jharkhand) : कुड़मी समुदाय द्वारा खुद को आदिवासी सूची में शामिल करने की मांग पर विवाद (Kurmi Adivasi Controversy) और गहरा गया है। आदिवासी समाज ने इस मांग को पूरी तरह से असंवैधानिक और ऐतिहासिक तथ्यों के विपरीत बताया है। उन्होंने 1872 से लेकर 2024 तक के ऐतिहासिक दस्तावेजों, संवैधानिक रिपोर्टों और अदालती फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि कुड़मी समुदाय कभी भी आदिवासी सूची का हिस्सा नहीं रहा है।

वक्ताओं ने अपने तर्क में कहा कि ब्रिटिश शासन के दौरान हुई जनगणनाओं से लेकर स्वतंत्र भारत की सभी संवैधानिक सूचियों और आयोगों की रिपोर्ट में कुड़मियों को हमेशा एक कृषक जाति या अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के रूप में ही पहचाना गया है। उन्होंने यह भी बताया कि 1920-30 के दशक में कुड़मी समाज ने आदिवासियों से दूरी बनाते हुए जनेऊ धारण किया था और खुद को क्षत्रिय के रूप में स्थापित करने के लिए आंदोलन चलाए थे।

Kurmi Adivasi Controversy : आयोगों और अदालतों ने भी किया खारिज

आदिवासी नेताओं ने इस बात पर भी जोर दिया कि कालेलकर आयोग (1953) और मंडल आयोग (1979) ने भी कुड़मी समुदाय को ओबीसी ही माना था। इतना ही नहीं, समय-समय पर विभिन्न अदालतों ने भी उनकी एसटी दर्जे की मांग को खारिज कर दिया है। वक्ताओं ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “इतिहास गवाह है कि कुड़मी कभी आदिवासी नहीं थे और न कभी हो सकते हैं।” उन्होंने इस मांग को अनुचित बताते हुए कहा कि यह संवैधानिक और सामाजिक दोनों ही मापदंडों पर खरी नहीं उतरती।

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