RANCHI: प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष केशव महतो कमलेश ने केंद्र की भाजपा सरकार पर सूचना के अधिकार को सुनियोजित तरीके से कमजोर करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि 2014 के बाद देश की पारदर्शिता और लोकतांत्रिक ढांचे पर गंभीर आघात हुआ है। कांग्रेस भवन में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा कि डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार और सोनिया गांधी के मार्गदर्शन में 12 अक्टूबर 2005 को ऐतिहासिक सूचना का अधिकार अधिनियम लागू किया गया था, जिसका उद्देश्य शासन को पारदर्शी व जवाबदेह बनाना था। मौके पर प्रदेश कांग्रेस मीडिया प्रभारी राकेश सिन्हा, चेयरमैन सतीश पॉल मुंजनी, लाल किशोरनाथ शाहदेव, सोनाल शांति, राजन वर्मा और राकेश किरण महतो उपस्थित रहे।
कानून को कर दिया कमजोर
उन्होंने कहा कि 2019 में केंद्र सरकार द्वारा किए गए संशोधनों ने RTI को कार्यपालिका के अधीन कर दिया। पहले सूचना आयुक्तों का कार्यकाल 5 वर्ष के लिए तय था और उनकी सेवा शर्तें सुरक्षित थीं। लेकिन संशोधन के बाद यह अधिकार केंद्र सरकार को दे दिया गया। वहीं 2023 के डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन अधिनियम में व्यक्तिगत जानकारी के दायरे को इतना व्यापक कर दिया गया कि अब जनहित में भी जानकारी उजागर करना कठिन हो गया है। इससे एमपी-एलएडी फंड, मनरेगा घोटाले और राजनीतिक फंडिंग जैसी कई गड़बड़ियों का खुलासा रुक सकता है।
23 हजार मामले लंबित
उन्होंने आंकड़े देते हुए बताया कि केंद्रीय सूचना आयोग में स्वीकृत 11 पदों के मुकाबले केवल दो आयुक्त कार्यरत हैं और नवंबर 2024 तक करीब 23 हजार मामले लंबित पड़े हैं। प्रधानमंत्री के विदेशी दौरों पर हुए खर्च, कोविड के दौरान ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों का आंकड़ा और पीएम-केयर्स फंड की जानकारी तक RTI के जरिए नहीं दी गई। यहां तक कि इलेक्टोरल बॉन्ड के मामले में भी सूचना देने से इनकार किया गया और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही डेटा सार्वजनिक हुआ।
कांग्रेस ने मांग की कि 2019 के संशोधन को तुरंत निरस्त किया जाए। डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन अधिनियम की धारा 44(3) की समीक्षा की जाए, सूचना आयोगों में रिक्त पदों पर नियुक्तियां की जाएं और कार्य निष्पादन के मानक सार्वजनिक किए जाएं। साथ ही व्हीसल ब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट को तुरंत लागू करने के साथ आयोगों में पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों और महिलाओं को शामिल किया जाए।