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शब्दों- वाक्यों ने साहित्यिक आयोजन में छोड़ी ‘छाप’ , जमशेदपुर में पुस्तक महोत्सव में हुआ साहित्यकारों का जुटान

by Mujtaba Haider Rizvi
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Jamshedpur : साहित्य कला फाउंडेशन द्वारा आयोजित -झारखंड का अपना पुस्तक महोत्सव ‘छाप’- का द्वितीय संस्करण सोमवार को बिष्टुपुर स्थित होटल एल्कोर में प्रारंभ हुआ, जिसका उद्घाटन बतौर मुख्य अतिथि राज्यसभा की सांसद डॉ. महुआ माजी, विशिष्ट अतिथि नवगीत के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र, जेएनयू की प्रो. गरिमा श्रीवास्तव, डॉ. विजय शर्मा व फाउंउेशन की मुख्य न्यासी डॉ. क्षमा त्रिपाठी ने किया।
डॉ. महुआ माजी ने बंगाल में पढ़ने की रुचि पर बताया कि वहां बच्चों के लिए काफी कुछ लिखा गया है, इसलिए बचपन से ही पढ़ने के प्रति रुचि होने लगती है। उन्होंने उपस्थित साहित्यकारों से बच्चों के लिए रचनाएं लिखने की सलाह दी, ताकि किताबों के प्रति आसक्ति बनी रहे। वैसे आज की पीढ़ी पढ़ने की बजाय सुनना ज्यादा पसंद कर रही है, इसलिए ऑडियो बुक का प्रचलन बढ़ रहा है। लेकिन, मेरी सलाह है कि पुस्तक मांग कर नहीं, खरीद कर पढ़ें।
दीप प्रज्वलन के उपरांत दो दिवसीय कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में- जीवन में किताबें और किताबों में जीवन- विषयक परिचर्चा हुई, जिसमें डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र ने कहा कि गुरुद्वारों में गुरुग्रंथ साहिब को ईश्वर मानकर पूजा जाता है। जीवन में इससे बढ़कर पुस्तक का महत्व क्या हो सकता है। उन्होंने बताया कि पहले पढ़ने-लिखने की परंपरा नहीं थी, वाचिक परंपरा से बातें विस्तार लेती थीं। सबसे पहले बातों को छंद में लिखा जाता था, फिर सूत्र लिखे गए। महर्षि वाल्मिकी ने रामायण भी छंद में ही लिखा था। महर्षि वेदव्यास ने इसे लिपिबद्ध किया, तो पाणिनी ने उच्चारण करने का तरीका बताया।
डॉ. गरिमा श्रीवास्तव ने पुस्तक के महत्व पर बताया कि जब वे यूरोप पढ़ाने गई थीं, तो अपने साथ 400 किलो वजन की किताबें ले गई थीं। फिर, स्थानीय महिलाओं से संवाद शुरू किया, उनकी बातें-समस्या सुनीं, फिर उन्हें कहानियों के रूप में लिखा। तब मैंने जाना कि वास्तव में यूरोपीय महिलाओं की स्थिति वैसी नहीं है, जैसा हम भारतीय उन्हें देखकर अनुमान लगाते हैं। वे भी महिला होने की पीड़ा से गुजर रही हैं।

डॉ. विजय शर्मा ने द न्यू लाइफ पुस्तक का उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे कोई पुस्तक पूरी जिंदगी बदल देती है। अतिथियों का स्वागत डॉ. क्षमा त्रिपाठी ने किया।

संथाली व भोजपुरी में भी हुए सत्र


पहले दिन कार्यक्रम में संथाली व भोजपुरी के सत्र भी हुए, तो प्रो. रामदेव शुक्ल के उपन्यास ग्राम देवता, डॉ. कुंदन यादव के कहानी संग्रह- गंडासा गुरु की शपथ- पर भी अलग से सत्र हुआ। इसी क्रम में पढ़ने की संस्कृति का ह्रास विषयक परिचर्चा में शहर से प्रकाशित होने वाले सभी प्रमुख अखबारों के संपादकों ने अपने विचार रखे। किस्सागो परिवार के किस्से : संदर्भ ठाकुरबाड़ी- के बाद पहले दिन के कार्यक्रमों का समापन काव्यराग की बैंड प्रस्तुति से किया गया।
साहित्यिक महोत्सव में मंगलवार को भी सुबह 10 बजे से देर शाम तक नामचीन हस्ताक्षरों से रूबरू होने का अवसर मिलेगा।

Read also – Sahitya Kala Foundation : साहित्य कला फाउंडेशन का वार्षिक पुस्तक महोत्सव ‘छाप’ 17 और 18 को । Chhap Pustak Mahotsav

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