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Jharkhand Assembly Election 2024: भाजपा में पतझड़ का मौसम, इस्तीफों का सिलसिला जारी

मेनका सरदार के इस्तीफे वापसी के पीछे क्या शर्तें रही हैं, यह अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, केंद्रीय मंत्री, और वरिष्ठ नेताओं के लगातार प्रयासों के बाद ही मेनका सरदार ने अपना इस्तीफा वापस लिया।

by Anand Mishra
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रांची / जमशेदपुर : झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर भाजपा ने जैसे ही 66 प्रत्याशियों की सूची जारी की, उसके बाद पार्टी में मानो पतझड़ का मौसम आ गया है। भाजपा में इस्तीफों का सिलसिला रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है। पार्टी के नेताओं में असंतोष की लहर दिखने लगी है, और यह इस्तीफों का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा। यह स्थिति भाजपा के लिए एक गंभीर चुनौती बनकर उभरी है, जो चुनाव में पार्टी की संभावनाओं को प्रभावित कर सकती है।

अब तक जिन प्रमुख नेताओं ने भाजपा से इस्तीफा दिया है, उनमें पोटका की पूर्व विधायक मेनका सरदार, सरायकेला-खरसावां के बास्को बेसरा, रांची के संदीप वर्मा, सरायकेला से 2019 में चंपाई सोरेन से मुकाबला करने वाले भाजपा नेता गणेश महली, सारठ के चुन्ना सिंह, दुमका से पूर्व विधायक व मंत्री लुईस मरांडी, और महेशपुर के पूर्व विधायक मिस्त्री सोरेन शामिल हैं। हालांकि, मेनका सरदार ने अपना इस्तीफा वापस ले लिया है, लेकिन बाकी नेताओं का पार्टी छोड़ना भाजपा के लिए चिंता का विषय बना हुआ है।

मेनका सरदार के इस्तीफे वापसी के पीछे क्या शर्तें रही हैं, यह अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी, केंद्रीय मंत्री, और वरिष्ठ नेताओं के लगातार प्रयासों के बाद ही मेनका सरदार ने अपना इस्तीफा वापस लिया। उनके इस्तीफा वापस लेने से यह संकेत मिलता है कि भाजपा अभी भी अपने असंतुष्ट नेताओं को मनाने में सफल हो सकती है।

दूसरी ओर, महेशपुर के पूर्व विधायक मिस्त्री सोरेन ने भी अपने इस्तीफे की घोषणा की है। उन्होंने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को पत्र लिखकर कहा, “मैं भारतीय जनता पार्टी की प्राथमिक सदस्यता के साथ ही तमाम पदों से तत्काल प्रभाव से इस्तीफा देता हूं।” इसके पहले, नाला से पूर्व विधायक सत्यानंद झा बाटुल ने भी भाजपा से इस्तीफा देकर निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है।

इस्तीफों का असर और चुनावी समीकरणों पर प्रभाव

भाजपा में इस्तीफों की यह स्थिति चुनावी समीकरणों को सीधे तौर पर प्रभावित कर सकती है। जो नेता पार्टी छोड़ रहे हैं, वे अपने-अपने क्षेत्रों में प्रभावशाली माने जाते हैं। यदि ये नेता पार्टी से अलग होकर चुनावी मैदान में उतरते हैं, तो भाजपा के लिए ये सीटें जीतना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
मिस्त्री सोरेन और सत्यानंद झा बाटुल जैसे वरिष्ठ नेताओं का इस्तीफा भाजपा की चुनावी सेहत को और कमजोर कर सकता है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां जातीय और क्षेत्रीय समीकरण अहम भूमिका निभाते हैं, ऐसे नेताओं का अलग होना भाजपा के जनाधार को नुकसान पहुंचा सकता है।

रूठने-मनाने की राजनीति और भाजपा की रणनीति

हालांकि, मेनका सरदार के इस्तीफा वापस लेने से यह भी स्पष्ट होता है कि भाजपा ने रूठे हुए नेताओं को मनाने की रणनीति पर जोर दिया है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का ध्यान इस बात पर केंद्रित है कि असंतुष्ट नेताओं को जल्द से जल्द पार्टी में वापस लाया जाए, ताकि चुनाव में उनका समर्थन मिल सके। इस रणनीति से पार्टी को कुछ हद तक राहत मिल सकती है, लेकिन लगातार हो रहे इस्तीफे इस बात की ओर इशारा करते हैं कि पार्टी में अंदरूनी कलह और असंतोष की स्थिति बरकरार है।

भाजपा के सामने चुनौती

भाजपा के सामने इस समय सबसे बड़ी चुनौती अपने असंतुष्ट नेताओं को पार्टी में वापस लाने और चुनाव से पहले पार्टी में एकता बनाए रखने की है। यदि पार्टी इस असंतोष को समय रहते नहीं संभाल पाती, तो आगामी विधानसभा चुनाव में इसका सीधा असर पड़ सकता है।

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