Bahragora (Jharkhand) : बहारागोड़ा कॉलेज के दर्शनशास्त्र विभाग ने भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद (ICPR), शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से “हीलिंग अर्थ, हीलिंग सेल्फ : पर्यावरण, स्वास्थ्य और आंतरिक शांति के लिए योग” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। संगोष्ठी के आयोजन सचिव डॉ. डुमरेन्द्र राजन (दर्शनशास्त्र विभाग, बहारागोड़ा कॉलेज) ने अपने स्वागत भाषण में बहारागोड़ा की आध्यात्मिक और प्राकृतिक महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने इसे योग भूमि बताते हुए सांख्य दर्शन के पुरुष चित्रेश्वर महादेव और प्रकृति मां स्वर्ण रेखा नदी का मिलन स्थल के रूप में वर्णित किया।
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पहले दिन योग, पर्यावरण संरक्षण, स्वास्थ्य और आंतरिक शांति पर चर्चा
संगोष्ठी के पहले दिन, 11 जुलाई को पटना विश्वविद्यालय, वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय (आरा), भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (मुजफ्फरपुर), बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, रांची विश्वविद्यालय, कोल्हान विश्वविद्यालय, सरला बिरला विश्वविद्यालय और मगध विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के विद्वानों, शिक्षकों, शोधार्थियों और छात्रों ने सक्रिय भागीदारी निभाई। सभी ने योग, पर्यावरण संरक्षण, स्वास्थ्य और आंतरिक शांति जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर अपने विचार साझा किए।
मुख्य अतिथि, प्रोफेसर राजेंद्र प्रसाद (NIT जमशेदपुर) ने दैनिक जीवन में योग के महत्व और पृथ्वी को स्वच्छ रखने के व्यावहारिक उपायों पर जोर दिया। पटना विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर एन.पी. तिवारी ने योग की विस्तृत यात्रा और इसके आध्यात्मिक तथा सामाजिक लाभों पर प्रकाश डाला। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय की डॉ. आभा झा ने योग के विभिन्न पहलुओं की जानकारी दी और युवाओं को इसके लाभों से अवगत कराया।
50 से अधिक शोधार्थियों ने पेपर प्रस्तुत किए
संगोष्ठी के अध्यक्ष और बहारागोड़ा कॉलेज के प्राचार्य डॉ. बालकृष्ण बेहरा ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कॉलेज के विकास को योग से जोड़कर प्रस्तुत किया। प्रथम दिन, दो विद्वानों के व्याख्यान के बाद समानांतर सत्रों में लगभग 50 से अधिक शोधार्थियों ने अपने शोध पत्र पढ़े। इन सत्रों का संचालन घाटशिला के सेवानिवृत्त प्रोफेसर टीपी मंडल, बिहार के प्राध्यापक डॉ. विकास कुमार, डॉ. नरेश कुमार और डॉ. सुरेंद्र मौर्य ने किया। शाम के सत्र में कोल्हान विश्वविद्यालय के कलानुशासक डॉ. राजेंद्र भारती ने स्वास्थ्य योग के महत्व को बताते हुए छात्रों को जीवन में संघर्ष की प्रेरणा दी।
दूसरे दिन, 12 जुलाई को मुख्य अतिथि के रूप में झारखंड राज्य के प्रथम स्वास्थ्य मंत्री डॉ. दिनेश षाडंगी ने पर्यावरण के महत्व को स्वास्थ्य से जोड़ते हुए अपने विचार रखे। मुख्य वक्ता के रूप में नव नालंदा महाविहार विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सुशीम दुबे ने ऑनलाइन माध्यम से भारतीय ज्ञान परंपरा और समकालीन शैक्षणिक परिवेश पर विस्तृत व्याख्यान दिया, जिसे प्रतिभागियों ने सराहा।
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चेतना, स्वास्थ्य संवर्धन और मानसिक शांति की दिशा में अहम रही संगोष्ठी
दूसरे दिन भी शोधार्थियों ने ऑनलाइन माध्यम से अपने शोध पत्रों का प्रस्तुतीकरण किया, जिसकी अध्यक्षता प्राचार्य डॉ. बालकृष्ण बेहरा ने की। उन्होंने प्रतिभागियों को महत्वपूर्ण सुझाव दिए और उनके शोध कार्य को और सशक्त बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। यह दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी विद्यार्थियों, शोधार्थियों और शिक्षकों के लिए एक मूल्यवान शैक्षणिक अनुभव रही। समापन सत्र में प्रतिभागियों ने अपने विचार व्यक्त किए और आयोजन समिति को इस सफल प्रयास के लिए धन्यवाद दिया। यह संगोष्ठी पर्यावरणीय चेतना, स्वास्थ्य संवर्धन और मानसिक शांति के क्षेत्र में जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। कॉलेज के सभी विभागों के शिक्षकों सहित बड़ी संख्या में छात्रों ने इसमें भाग लिया।