नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में जातिगत गणना को मंजूरी देने के पटना उच्च न्यायालय के एक अगस्त के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया और इसे चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई 14 अगस्त तक के लिए टाल दी। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एसवी एन भट्टी की पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘एक सोच एक प्रयास’ की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई की। अपीलकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन ने यह कहते हुए मामले की सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध किया कि इसी मुद्दे पर सुनवाई वाली अन्य याचिकाएं सूचीबद्ध नहीं हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी हुए पेश
अपीलकर्ता की ओर से पीठ से मामले की सुनवाई 11 अगस्त या 14 अगस्त को करने का अनुरोध किया गया। अपीलकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने भी मामले की सुनवाई 14 अगस्त को करने का अनुरोध किया, जिस पर पीठ सहमत हो गयी। एक अपीलकर्ता की तरफ से उपस्थित एक अन्य वकील ने पीठ से उच्च न्यायालय के आदेश से पहले की यथास्थिति बनाये रखने का आदेश देने का आग्रह किया। इस पर न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि कौन सी यथास्थिति? हमने इस मामले में नोटिस भी जारी नहीं किया है। हमने इस मुद्दे पर आपको सुना भी नहीं है। आप वास्तव में अपनी बात कर रहे हैं। फिलहाल मामले में यथास्थिति का कोई सवाल ही नहीं है।
गणना संबंधी 80 प्रतिशत काम पूरा, शेष के लिए काम जारी
पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने भी अपने फैसले में कहा है कि गणना से संबंधित 80 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। एनजीओ ‘एक सोच एक प्रयास’ द्वारा दायर याचिका के अलावा एक अन्य याचिका नालंदा निवासी अखिलेश कुमार द्वारा दायर की गई है, जिन्होंने दलील दी है कि इस कवायद के लिए राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचना संवैधानिक व्यवस्था के खिलाफ है।
कुमार की याचिका में कहा गया है कि संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार, केवल केंद्र सरकार ही जनगणना कराने का अधिकार रखती है। याचिका में कहा गया कि वर्तमान मामले में, बिहार ने केवल आधिकारिक राजपत्र में एक अधिसूचना प्रकाशित करके भारत सरकार की शक्तियों को हड़पने की कोशिश की है।
राज्य सरकार का दावा, लोगों की बेहतरी के लिए हो रही गणना
याचिका में कहा गया है कि बिहार सरकार द्वारा जनगणना कराने की पूरी कवायद बिना अधिकार और विधायी क्षमता के है और इसमें गलत इरादे का संकेत मिलता है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अक्सर इस बात पर जोर देते रहे हैं कि राज्य जातिगत जनगणना नहीं कर रहा है, बल्कि केवल लोगों की आर्थिक स्थिति और उनकी जाति से संबंधित जानकारी एकत्र कर रहा है, ताकि सरकार द्वारा उन्हें बेहतर सेवा देने के लिए विशिष्ट कदम उठाये जा सकें।
HC ने कहा था, राज्य की कार्रवाई को पूरी तरह से वैध
उच्च न्यायालय ने 101 पन्नों के अपने फैसले में कहा था कि हम राज्य की कार्रवाई को पूरी तरह से वैध पाते हैं, जो न्याय के साथ विकास प्रदान करने के वैध उद्देश्य के साथ उचित क्षमता के साथ शुरू की गयी है। उच्च न्यायालय द्वारा जातिगत गणना को वैध ठहराये जाने के एक दिन बाद, राज्य सरकार हरकत में आई और शिक्षकों के लिए सभी प्रशिक्षण कार्यक्रमों को स्थगित कर दिया, ताकि उन्हें इस कार्य को जल्द पूरा करने में लगाया जा सके।
जातिगत गणना का पहला चरण 21 जनवरी को पूरा हो गया था। गणना करने वालों और पर्यवेक्षकों सहित लगभग 15,000 कर्मचारियों को घर-घर जाकर सर्वेक्षण के लिए विभिन्न जिम्मेदारियां सौंपी गयी थीं। इस कवायद के लिए राज्य सरकार अपनी आकस्मिक निधि से 500 करोड़ रुपये खर्च करेगी।