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नौकरशाही : मंजिल के मुसाफिर

झारखंड की नौकरशाही वाले मुहल्ले में इन दिनों भूकंप से पहले की शांति है। सबकी निगाहें इस बात पर लगी हैं कि सरकार कब बड़े प्रशासनिक फेरबदल करने का निर्णय लेती है। 2017 बैच के कुछ आईएएस अधिकारी वर्तमान में उपायुक्त के पद पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। जबकि कई अब भी जनपद की कमान पाने की उम्मीद लगाए बैठे हैं। जानें, क्या कुछ चल रहा है अंदरखाने, द फोटोन न्यूज के चीफ एग्जीक्यूटिव एडिटर की कलम से...

by Dr. Brajesh Mishra
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गुरु अपने कुछ चेलों को साथ लिए टहल रहे थे। नजदीक पहुंचा तो पता चला वह क़सरी कानपुरी का शेर दोहरा रहे हैं :- कोई मंज़िल के क़रीब आ के भटक जाता है, कोई मंज़िल पे पहुंचता है भटक जाने से…। गुरु के मुंह से शेर-ओ-शायरी सुनकर रहा नहीं गया। सो, अपनी उपस्थिति का अहसास कराते हुए पूछ लिया। क्या हुआ गुरु? किसके दर्द को आवाज दे रहे हैं ? गुरु बोले, बच्चा ये पंक्तियां इन दिनों झारखंड की नौकरशाही के मौजूदा हालात पर बड़ी मौजूं हैं। पढ़ाई-लिखाई वाले महकमे की सीढ़ियां उतर रहा था। एक नौजवान को हाथ में फाइल लेकर ऊपर चढ़ते हुए देखा। आगे-आगे वह, पीछे-पीछे बॉडीगार्ड। रहा नहीं गया ये दर्द देखकर।

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कुछ महीने पहले एक खूबसूरत हवा का झोंका आया, लगा बदरी छंट गई, काली रात गुजर गई। शशि का प्रकाश फैलेगा, लेकिन अचानक से सबकुछ थम गया। इंतजार लंबा होता चला गया। वो भी पूरे पांच महीने। ईश्वर किसी को ऐसा दुख न दें। गुरु के दर्द से पूरी संवेदना जताई। सिर हिलाया, लेकिन दिमाग में नया प्रश्न खड़ा हो गया। क्या ऐसा पहली बार हुआ ? गुरु बोले, नहीं। पहले भी ऐसा होता रहा है। बाबानगरी से राजधानी तक पिछले दो चुनावी समर में कुछ ऐसी ही कहानियां दोहराई गईं। युद्ध के समय सेनापति बदले गए। समर थमते ही फिर चहेते का राजतिलक कर दिया गया। मोर्चे पर लड़ने वाले बंकरों में बैठा दिए गए।

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गुरु के प्रवचन से शेर की पहली लाइन तो स्पष्ट हो गई, अब बात दूसरी पंक्ति पर ठहर गई। गुरु शायद मौन का अर्थ समझ गए। बोले :- इस कहानी के ठीक उलट कुछ लोग बड़े भाग्यशाली रहे। आनन-फानन में कमान मिली और फिर राजयोग शुरू हो गया। राजतिलक तक तो ठीक, राजयोग? पूछा, गुरु राजयोग किसका? गुरु शिष्य की नासमझी से थोड़े खीझ से गए, बोले, इसी लिए कहता हूं, तुम्हें अभी तंत्र को समझने में बहुत समय लगेगा। अरे भाई, लौहनगरी नरेश को भूल गए। सौम्य, शालीन, मृदुभाषी, सहृदय जैसी अनन्य उपमाओं से विभूषित कार्यपालिका के नवरत्न की बात कर रहा हूं। उथल-पुथल के दौर में भी निष्कंटक भाव से पश्चिम दिशा की कमान संभाले रखी। जैसे ही पूर्व में तूफान मचा, बिना देर किए बागडोर थाम ली।

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आशंका थी कि मौसम सामान्य होने पर घर वापसी हो जाएगी, लेकिन भाग्य भी कोई चीज होती है। कहने वाले कहते हैं कि नरेश के दांपत्य जीवन की शुरुआत होने के साथ ही सारे ग्रह-नक्षत्र सीधी रेखा में आकर बैठ गए। वह दिन है और आज का दिन है, कभी पीछे मुड़ कर देखने की जरुरत नहीं पड़ी। चाहें बात जनपद के कमान की हो या दिल्ली में सम्मान की। हर जगह साहब का जलवा है।

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