कोलकाता : टन टन टन… इस ध्वनि से कोलकाता वासियों का पुराना नाता रहा है। नाता 150 साल का हो चुका है। इतने पुराने होने के बाद भी यह दुर्गापूजा में लोगों के काफी आकर्षण का केंद्र रहता था। इसका कारण यह था कि इसको पूरे त्योहार को देखते हुए सजाया और संवारा जाता था। सबसे बड़ी बात यह थी कि यह काफी आरामदायक सवारी थी।
हालांकि इससे थोड़े-बहुत ट्रैफिक की समस्या तो होती थी लेकिन कोलकाता ट्रैफिक पुलिस की ओर से बड़े ही सरलता के साथ ट्रैफिक की समस्या सुलझा लेती थी। लेकिन दुर्भाग्यवश इस बार के दुर्गापूजा में कोलकाता की यह धरोहर को देखने का मौका नहीं मिलेगा। राज्य के परिवहन विभाग ने कोलकाता पुलिस की शिकायत और लोगों को जाम की समस्या से निजात दिलाने के लिए इस बार दुर्गापूजा में इस बंद कर दिया गया है। जामकारों का कहना है कि अब यह लुप्त हो जाएगी।
जी हां, यहां बात कर रहे हैं कोलकाता के ऐतिहासिक धरोहर ट्राम की। ट्राम और कोलकाता दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों ने एक साथ इतिहास बदलते देखा। इतने सारे इतिहास का साक्षी होने का गौरव सभी को नहीं मिल पाता है।
ट्राम को नहीं मिली विरासत की उपाधि
कोलकाता में ट्राम की यात्रा को 150 साल पूरे हो गए हैं। कोलकाता की पहचान को ढो रही ट्राम अब ‘विश्राम’ लेने का इंतजार कर रही है। हालांकि डेढ़ सौ साल से यह शहर की ‘परंपरा’ रही है, लेकिन इसे ‘विरासत’ की उपाधि नहीं मिली है।
लद गया वह दौर
शहर के ट्राम प्रेमियों को लगता है कि आने वाले दिनों में इसे संभाल कर नहीं रखा जाएगा। साल 2011 में ट्राम के 37 रूट थे और शहर में कुल 180 ट्रामें थीं। लेकिन अब महज एस्प्लानेड (धर्मतला) से गरियाहाट और टालीगंज से बालीगंज के बीच ट्राम बची है। आम्फान के बाद वो रूट भी बंद कर दिया गया जहां पहली इलेक्ट्रिक ट्राम चली थी यानी खिदिरपुर से धर्मतल्ला तक।
ट्राम का इतिहास
24 फरवरी 1873 को कोलकाता स्थित सियालदह से आर्मोनियम स्ट्रीट के बीच देश की पहली ट्राम सेवा शुरू की गई। उस समय ट्राम को घोड़े खींचते थे। बाद में 27 मार्च 1902 को बिजली से चलने वाली ट्राम प्रारम्भ की गई। विश्व की पहली ट्राम लाइन, आयरिश मूल के अमेरिकी जॉन स्तेफेंसों द्वारा विकसित की गई।
क्या कहा मंत्री ने…
ट्राम के 150 साल होने पर राज्य के परिवहन मंत्री स्नेहाशीष चक्रवर्ती ने कहा कि ट्राम को ट्रैफिक की समस्या से बचने के लिए यह निर्णय लिया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि वह चाहते हैं कि ट्राम को दुर्गा पूजा की तरह विरासत का दर्जा मिले।
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