नई दिल्ली : आये दिन चर्चाओं में रहने वाले केंद्रीय फिल्म प्रमाण बोर्ड (CBFC) हाल ही में फिर से चर्चा का विषय बनी हुई थी। आदिपुरुष, ओएमजी-2 जैसी फिल्मों के सर्टिफिकेशन को लेकर जमकर विवाद हुआ था, ऐसे में काफी लोग जानना चाहते हैं कि सेंसर बोर्ड किस आधार पर फिल्मों को प्रमाण पत्र देता है ? सेंसर बोर्ड क्या होता है? तो चलिए आज जानते हैं इन सारे सवालों के जवाब।
सेंसर बोर्ड क्या है?
कहां जाता है की फिल्में समाज का आईना होती है, यानी फिल्मों में वही दिखाया जाता है जो समाज में घटित होता है। भारत में हर साल बन रही फिल्मों की भरमार होती है ऐसे में यह जानना जरूरी है कि CBFC क्या है। सेंसर बोर्ड का प्रमाण पत्र एक फिल्म को उसके शृंगारिक और भौतिक आदर्शों, उपयोगिता और कई अन्य मापदंडों के साथ सिनामेटोग्राफी, कहानी और उपकरणों की सामग्री को जांचने के लिए दिया जाता है।
यह प्रमाण पत्र भारतीय सिनेमा उद्योग में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और फिल्मों को प्रदर्शित करने से पहले उन्हें गुजारना होता है। CBFC एक वैधानिक संस्था है जो सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत आता है। भारत में बनने वाली सभी फिल्में रिलीज होने के पहले CBFC से गुजरती हैं और उसके कंटेंट के हिसाब से सर्टिफिकेट लेना अनिवार्य होता है। सेंसर बोर्ड के सर्टिफिकेट्स चार तरह के होते हैं – U, U/A ,A और S ।
उदाहरण से समझते हैं :
‘देवदास’ भारतीय सिनेमा की एक बेहद खूबसूरत फिल्म मानी जाती है और यह एक प्रमुख उदाहरण है जिसे सेंसर बोर्ड का प्रमाण पत्र पहली बार दिया गया था। फिल्म का निर्देशन भारतीय फिल्म निर्देशक बिमल रॉय कर रहे थे और इसमें प्रमुख भूमिका में देवदास की भूमिका में दिलीप कुमार और पारो मुखर्जी थीं। इसके कुछ सींस और संवादों में उन समय के सामाजिक और मानवीय आदर्शों के खिलाफ भी बढ़ती मांग के कारण, सेंसर बोर्ड ने इसे प्रमाणित करने से पहले कई परिवर्तन कराये थे। ‘देवदास’ के बाद भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में सेंसर बोर्ड का प्रमाण पत्र प्राप्त करने का सिलसिला शुरू हो गया।
सेंसर बोर्ड का गठन :
फिल्मी इतिहास देखें, तो हमें पता चलता है कि भारत में पहली फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ 1913 में बनी थी। इसके बाद 1920 में ‘इंडियन सिनेमैटोग्राफ एक्ट’ बनकर तैयार हुआ और लागू हुआ । CBFC की स्थापना सिनेमैटोग्राफ एक्ट 1952 के तहत की गयी थी। पहले रीजनल सेंसर स्वतंत्र थे लेकिन देश की आजादी के बाद रीजनल सेंसर को बॉम्बे बोर्ड का फिल्म सेंसस के अधीन कर दिया गया था। 1952 में सिनेमैटोग्राफ एक्ट लागू होने के बाद इसका पुनर्गठन ‘सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सेंसर’ के नाम से हुआ। कुछ सालों बाद इसमें कई तरह के बदलाव हुए और इस संस्था का नाम ‘सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन’ यानी CBFC रखा गया। इस बोर्ड में अध्यक्ष के अतिरिक्त 25 अन्य गैर सरकारी सदस्य होते हैं। CBFC के 9 क्षेत्रीय कार्यालय हैं, जिसमें बेंगलुरु, कोलकाता, चेन्नई, कटक, गुवाहाटी, हैदराबाद, मुंबई, नई दिल्ली और तिरुवनंतपुरम शामिल हैं।
फिल्म सर्टिफिकेशन की कैटिगरीज :
अगर आप एक फिल्म प्रेमी हैं तो आपको यह जानना बेहद जरूरी है कि किन आधारों पर फिल्म को सर्टिफिकेट देता है CBFC।
1. U- इस कैटेगरी में आने वाले सभी फिल्में सारे वर्ग के दर्शन देख सकते हैं बिना किसी आपत्ती के।
2. U/A – U/A कैटिगरी के तहत आने वाली फिल्म 12 वर्ष के कम उम्र के बच्चे अपने माता-पिता या किसी बड़े की देखरेख में देख सकते हैं।
3. A कैटिगरी – इस कैटेगरी के तहत आने वाली सभी फिल्में सिर्फ वयस्कों (adults) के लिए हैं।
4. S कैटिगरी- यहां S का मतलब ‘special’ होता है। इस कैटेगरी की फिल्में किसी खास वर्ग के लोगों के लिए होती हैं जैसे डॉक्टर, इंजीनियर, पुलिसमैन आदि।