Chatra (Jharkhand) : जवान बेटे की मौत का यकीन शायद सबसे आखिर में मां-बाप को ही होता है। यह एक स्वाभाविक मानवीय भावना है, जहां माता-पिता अपने बच्चे के जाने की सच्चाई को आसानी से स्वीकार नहीं कर पाते। झारखंड के चतरा जिले में ऐसी ही एक हृदय विदारक और मार्मिक घटना सामने आई है। यहां एक परिवार अपने मृत बेटे को फिर से जिंदा करने की उम्मीद में सात घंटे तक लगातार पूजा-प्रार्थना करता रहा, लेकिन नियति के आगे हार मानते हुए अंततः शव का अंतिम संस्कार करना पड़ा।
मां की ममता या अंधविश्वास?
यह घटना हंटरगंज थाना क्षेत्र के पैनीकला गांव की है। प्रदीप पासवान के 21 वर्षीय पुत्र विक्रम कुमार पासवान (Vikram Kumar Paswan) की गुजरात के अहमदाबाद में सोमवार को अचानक तबीयत बिगड़ने से मौत हो गई थी। बुधवार को जब विक्रम का शव सुबह सात बजे सड़क मार्ग से गांव पहुंचा, तो परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।
लेकिन, मृतक की मां अनिता देवी (Anita Devi) ने बेटे की मौत को स्वीकार नहीं किया। उनकी फुआ चिंता देवी और चाचा नंदु पासवान के साथ-साथ गांव व रिश्तेदार की अन्य महिलाएं भी उनके साथ शामिल हो गईं। सभी ने मिलकर प्रभु यीशु से प्रार्थना करना शुरू कर दिया, इस उम्मीद के साथ कि उनका बेटा फिर से जीवित हो उठेगा। मां अनिता देवी ने तो घर के किसी भी सदस्य को रोने तक नहीं दिया, ताकि प्रार्थना में कोई बाधा न आए। लगभग सात घंटे तक घर में शव को रखकर उसके सामने यही प्रार्थना चलती रही।
पुलिस पहुंची तो हुआ अंतिम संस्कार, मां बोली- ‘अंतिम प्रयास था’
जब मृत पुत्र जिंदा नहीं हुआ और पूरे गांव में यह खबर फैल गई, तो वशिष्ठनगर थाना प्रभारी अमित कुमार सिंह (Amit Kumar Singh) को भी सूचना मिली कि शव को घर में रखकर जिंदा करने के लिए झाड़-फूंक किया जा रहा है। पुलिस के मौके पर पहुंचने की खबर सुनते ही परिजनों ने तुरंत अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट का रुख किया।
इस बारे में पूछे जाने पर मृतक की मां अनिता देवी ने बताया कि “17 जुलाई को उनका बेटा गुजरात काम करने गया था। सोमवार को अचानक उसकी तबीयत खराब हुई और मौत हो गई। यह खबर सुनकर यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी मौत हो गई है। इसलिए बाइबिल के सहारे प्रार्थना कर उसे पुन: जीवित करने का यह अंतिम प्रयास था।” उन्होंने दुख के साथ कहा कि प्रार्थना भी कोई काम नहीं आई। इस दौरान बिहार के डोभी, घोड़ाघाट आदि गांवों से भी उसी धर्म से जुड़ी कुछ महिलाएं मृतक को जिंदा करने के लिए प्रार्थना करने आई थीं, लेकिन अंततः विक्रम का हिंदू रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार कर दिया गया। यह घटना मां की ममता, आस्था और अंधविश्वास के बीच एक मार्मिक रेखा खींचती है।