नई दिल्ली: हाल ही में दिल्ली मेट्रो के अंदर आसाराम के विज्ञापनों को लेकर विवाद उठ खड़ा था। इन विज्ञापनों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थीं, जिसमें आसाराम के चेहरे के साथ 14 फरवरी को पेरेंट्स डे मनाने का संदेश दिया गया था। यह विज्ञापन लोगों के लिए शॉकिंग था, खासकर तब जब आसाराम रेप के मामले में जेल की सजा काट रहे हैं। इस विवाद के बाद दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (DMRC) ने उन विज्ञापनों को हटाने का फैसला किया और इसके बाद से सोशल मीडिया पर सक्रियता बढ़ गई है।
वायरल तस्वीरों पर DMRC की प्रतिक्रिया
वायरल हुई तस्वीरों में दो अलग-अलग डिजाइन के विज्ञापन थे, जिनमें आसाराम की तस्वीरें और पेरेंट्स डे के बारे में संदेश था। इन विज्ञापनों को लेकर सोशल मीडिया पर तीखी आलोचना की गई। इस पर DMRC ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह विज्ञापन जल्द से जल्द हटा दिए जाएंगे। मेट्रो ने यह भी बताया कि वेंडर्स द्वारा ट्रेन में लगाए जाने वाले विज्ञापनों को मंजूरी देने के लिए उनके पास एक निर्धारित प्रक्रिया है। DMRC ने यह भी कहा कि वे इस मामले की जांच करेंगे कि ये विज्ञापन मेट्रो के भीतर कैसे पहुंचे।
आसाराम की सजा और मामला
आसाराम, जो पिछले 11 सालों से जेल में बंद हैं, एक चर्चित रेप मामले में सजा काट रहे हैं। उन्हें गांधीनगर की अदालत ने बलात्कार के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाई थी। यह मामला 2013 में सामने आया था, लेकिन पीड़िता के साथ बलात्कार की घटना 2001 से 2006 के बीच हुई थी। आसाराम के खिलाफ यह केस अहमदाबाद के चांदखेड़ा पुलिस थाने में दर्ज हुआ था, जिसमें पीड़िता ने आरोप लगाया कि आसाराम और उसके अन्य साथियों ने उसे कई बार बलात्कार का शिकार बनाया। इस मामले में आसाराम के अलावा उसकी पत्नी लक्ष्मी और बेटी भारती को भी आरोपी बनाया गया था।
नारायण साईं पर भी लगे थे आरोप
यह मामला और भी जटिल हो गया था जब पीड़िता की बहन ने आसाराम के बेटे नारायण साईं के खिलाफ भी दुष्कर्म का आरोप लगाया था। इस मामले में नारायण साईं को 2019 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। यह घटनाएं आसाराम के पूरे परिवार के खिलाफ खड़े किए गए आरोपों को और गंभीर बना देती हैं और अब यह मामला भी समाज में चर्चा का विषय बन चुका है।
DMRC की भूमिका और कार्रवाई
दिल्ली मेट्रो के भीतर आसाराम के विज्ञापन लगने के बाद, DMRC ने तेजी से कदम उठाते हुए उन विज्ञापनों को हटाया। यह घटना यह दर्शाती है कि सार्वजनिक स्थानों पर विज्ञापन देने वाली एजेंसियों और सरकारी संस्थाओं को अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे विवादास्पद व्यक्तियों या घटनाओं को बढ़ावा न दिया जाए। इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि समाज के विभिन्न वर्गों की संवेदनाओं को ध्यान में रखते हुए कदम उठाए जाएं।
आखिरकार, एक संदेश
दिल्ली मेट्रो के इस कदम से यह स्पष्ट संदेश जाता है कि सरकार और संबंधित एजेंसियां अपनी जिम्मेदारियों से भागने के बजाय इस तरह के विवादों पर त्वरित कार्रवाई कर रही हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या और अन्य सार्वजनिक संस्थाएं भी इस तरह की संवेदनशीलता के साथ अपने विज्ञापन नीति को लागू करेंगी या नहीं। ऐसी घटनाएं हमें यह याद दिलाती हैं कि हर एक जगह पर विज्ञापनों का कंटेंट समाज के मूल्यों और संवेदनाओं के अनुरूप होना चाहिए।

