वाशिंगटन : अमेरिका की इमिग्रेशन पॉलिसी को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है, जिसमें भारतीय और चीनी छात्रों ने अमेरिकी गृह विभाग और इमिग्रेशन अधिकारियों के खिलाफ न्यू हैम्पशायर की जिला अदालत में याचिका दायर की है। इन छात्रों का आरोप है कि बिना किसी चेतावनी या नोटिस के उनके F-1 स्टूडेंट वीजा स्टेट्स को गैरकानूनी तरीके से रद्द कर दिया गया, जिससे उन्हें न केवल पढ़ाई अधूरी छोड़नी पड़ सकती है, बल्कि वे डिटेंशन और डिपोर्टेशन जैसे गंभीर संकटों का भी सामना कर सकते हैं।
भारत और चीन के ये छात्र हैं याचिकाकर्ता
अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन (ACLU) द्वारा जारी जानकारी के अनुसार, याचिका दाखिल करने वाले छात्रों में भारत के लिंकिथ बाबू गोरेला, धनुज कुमार गुम्माडावेली, मणिकंता पासुला और चीन के हैंगरुई झांग व हाओयांग शामिल हैं। इन छात्रों ने अदालत में अपनी याचिका में दावा किया है कि F-1 स्टेट्स रद्द होने से वे न केवल अवैध प्रवासी की स्थिति में आ गए हैं, बल्कि अब उन्हें अपने कोर्स बीच में ही छोड़ना पड़ सकता है।
डिग्री अधूरी, OPT भी नहीं, छात्रों के भविष्य पर संकट
छात्रों ने बताया कि एफ-1 स्टेट्स रद्द होने के कारण न तो वे अपनी डिग्री पूरी कर पाएंगे और न ही वे ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग (OPT) जैसी महत्वपूर्ण पोस्ट-ग्रेजुएट स्कीम का लाभ उठा सकेंगे, जो अमेरिकी शिक्षा प्रणाली का अहम हिस्सा है। उनके वकीलों का कहना है कि वीजा रद्द करने से पहले किसी भी प्रकार की सूचना या नोटिस नहीं दी गई, जिससे छात्र अचानक असमंजस और संकट की स्थिति में आ गए हैं।
अदालत से छात्रों को उम्मीद, न्याय व सुरक्षा की मांग
छात्रों ने कोर्ट से अपील की है कि F-1 स्टूडेंट वीजा स्टेट्स को बहाल किया जाए और उन्हें शिक्षा पूरी करने की संवैधानिक और नैतिक अनुमति दी जाए। यह याचिका न केवल कानूनी लड़ाई की शुरुआत है, बल्कि यह हजारों विदेशी छात्रों के भविष्य की सुरक्षा से भी जुड़ी हुई है।
क्या अमेरिका अब सुरक्षित विकल्प है?
माना जा रहा है कि यह घटनाक्रम अंतरराष्ट्रीय छात्रों में नवीनतम चिंता की लहर बन गया है, जो पहले ही वीजा प्रक्रिया की जटिलताओं और आव्रजन नीतियों की अनिश्चितता से जूझ रहे हैं। यह मामला अब एक प्रमुख वैश्विक शिक्षा नीति विवाद बनता जा रहा है, जिससे अमेरिका में अध्ययन कर रहे और आवेदन की योजना बना रहे छात्र-छात्राएं गहराई से प्रभावित हो सकते हैं।