जमशेदपुर : झारखंड में एक ऐसा भी गांव है, जहां भूतों का मेला लगता है। इंटनेट और विज्ञान के इस युग में इसे अंधविश्वास कहा जाये या आस्था, यह सोचने पर मजबूर कर देनेवाला सवाल है। दरअसल राज्य के पलामू जिले में यह गांव है, जहां झारखंड ही नहीं, बल्कि पास-पड़ोस के राज्यों से भी लोग आते हैं। पलामू के जिले के हैदरनगर नामक गांव में पर हर वर्ष भूतों का मेला लगता है। यह मेला शारदीय नवरात्र और चैत नवरात्र के दौरान आयोजित होता है। स्थानीय लोगों के अनुसार, यह मेला अंधविश्वास का प्रतीक है, लेकिन हर वर्ष हजारों श्रद्धालु यहां आकर मां भगवती की आराधना करते हैं।
मेला और आस्था
इस मेले में दूर-दूर से लोग आते हैं, खासकर बिहार, यूपी, हरियाणा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल से। श्रद्धालुओं का कहना है कि वे यहां प्रेत बाधा से मुक्ति पाने के लिए आते हैं। पुजारी के अनुसार, यह मेला पिछले सौ वर्षों से हैदरनगर देवी धाम मंदिर परिसर में आयोजित हो रहा है। नवरात्र के पहले दिन से लेकर महानवमी तक, देवी धाम परिसर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं, जिनमें से कई कथित रूप से भूत-प्रेत बाधा से पीड़ित होते हैं।
पुलिस प्रशासन और जागरूकता
हालांकि झारखंड में अंधविश्वास के खिलाफ सख्त कानून हैं, लेकिन इस मेले में पुलिस प्रशासन सुरक्षा मुहैया कराता है। यह आश्चर्यजनक है कि अब तक किसी अधिकारी ने इस मेले में चिकित्सा कैंप लगवाने का प्रयास नहीं किया है, और अंधविश्वास के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने वाली किसी संस्था ने भी यहां अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कराई है।
पेड़ और भूतों की कैद
मंदिर परिसर में एक प्राचीन पेड़ भी है, जिसमें हजारों की संख्या में कील ठोके गए हैं। मान्यता है कि इन कीलों में भूत-प्रेतों को कैद किया गया है। यह पेड़ श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। हर वर्ष, नवरात्र के दौरान देवी धाम परिसर में हजारों लोग इस पेड़ के पास आकर अपनी मन्नतें मांगते हैं।
इस मेले में श्रद्धालुओं की आस्था और अंधविश्वास की परंपरा एक साथ देखने को मिलती है। हैदरनगर का यह भूतों का मेला न केवल स्थानीय संस्कृति का हिस्सा है, बल्कि यह एक ऐसी मानसिकता का भी परिचायक है जो अंधविश्वास को भले ही नकारती हो, लेकिन उसे अनुभव करने वाले हजारों लोगों की आस्था को नजरअंदाज नहीं कर सकती। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या हम अंधविश्वास के खिलाफ जागरूकता फैलाने में सक्षम हैं, या हमें इस तरह की परंपराओं को मात्र एक उत्सव के रूप में देखने की आदत डालनी होगी?
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