सेंट्रल डेस्क : विदेश से मेडिकल की पढ़ाई पूरी करके भारत लौटने वाले छात्रों को मेडिकल प्रैक्टिस के लिए ‘फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जाम’ (FMGE) देना पड़ता है। यह परीक्षा पास करने के बाद ही उन्हें भारत में मेडिकल लाइसेंस मिलता है। हालांकि, हाल के वर्षों में इस परीक्षा में छात्रों का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा है। अब, 2024-25 के आर्थिक सर्वे में उन कारणों का खुलासा किया गया है, जिनकी वजह से विदेश से मेडिकल की पढ़ाई पूरी करके लौटने वाले भारतीय छात्रों को FMGE में अच्छे अंक नहीं मिल पाते।
FMGE में खराब प्रदर्शन के कारण
आर्थिक सर्वे के अनुसार, FMGE में छात्रों का खराब प्रदर्शन मुख्य रूप से विदेशों में मेडिकल शिक्षा के स्तर की कमी के कारण हो रहा है, खासकर क्लिनिकल ट्रेनिंग के मामले में। सर्वे में यह भी उल्लेख किया गया है कि विदेशों में मेडिकल शिक्षा का स्तर अक्सर भारतीय मानकों के अनुरूप नहीं होता, जिससे छात्रों को भारत में मेडिकल प्रैक्टिस के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल की कमी महसूस होती है। इस सर्वे में यह सिफारिश की गई है कि विदेश में मेडिकल एजुकेशन को हतोत्साहित करने के लिए नीतिगत उपाय किए जाएं, ताकि भारतीय छात्रों को विदेशों में मेडिकल पढ़ाई के लिए जाने की आवश्यकता न पड़े। इसके साथ ही, यह भी कहा गया है कि भारत में मेडिकल शिक्षा की फीस को इस तरह से नियंत्रित किया जाए कि वह छात्रों की पहुंच में रहे, क्योंकि अक्सर महंगी फीस के कारण ही छात्र विदेशों में मेडिकल शिक्षा के लिए जाते हैं।
भारत में मेडिकल शिक्षा की महंगी फीस
सर्वे में यह भी बताया गया है कि भारत में मेडिकल शिक्षा की फीस बहुत अधिक है। प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की फीस 60 लाख रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये तक हो सकती है, जो छात्रों के लिए बहुत महंगा हो जाता है। इसके कारण, हर साल हजारों भारतीय छात्र ऐसे देशों का रुख करते हैं, जहां मेडिकल शिक्षा की फीस कम होती है, जैसे कि चीन, रूस, यूक्रेन, फिलीपींस और बांग्लादेश। हालांकि, इन देशों में पढ़ाई के दौरान छात्रों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उन्हें NEET-UG परीक्षा, फिर मेडिकल कोर्स पूरा करने के बाद FMGE परीक्षा और इसके बाद भारत में अनिवार्य इंटर्नशिप करनी पड़ती है।
विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ाई के दौरान आईं कठिनाइयां
आर्थिक सर्वे में चीन और यूक्रेन जैसे देशों में पढ़ने गए छात्रों की स्थिति का भी उल्लेख किया गया है। चीन में कोविड लॉकडाउन और यूक्रेन में रूस के साथ युद्ध के कारण भारतीय छात्रों को देश लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिससे उनकी पढ़ाई में व्यवधान आया। सर्वे में यह कहा गया कि मेडिकल छात्रों को विदेशों में मेडिकल शिक्षा के दौरान कई रेगुलेटरी मुद्दों का सामना करना पड़ता है और भारत में मेडिकल प्रैक्टिस करने के लिए उनके मानकों को बनाए रखना एक चुनौती बन चुका है। कई बार इन मुद्दों को लेकर कोर्ट को भी हस्तक्षेप करना पड़ा है।
FMGE में पास पर्सेंटेज में गिरावट
आर्थिक सर्वे में यह भी बताया गया कि 2023 में FMGE परीक्षा में पास होने का प्रतिशत केवल 16.65% था, जो इस बात को प्रमाणित करता है कि विदेश में मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता में कमी है, खासकर क्लिनिकल ट्रेनिंग की। इसे लेकर सरकार ने विदेश में मेडिकल शिक्षा को कम करने के लिए नीतिगत तैयारियां की हैं। सर्वे में यह भी कहा गया है कि मेडिकल शिक्षा के अवसरों की भौगोलिक स्थिति भी असमान है। दक्षिणी राज्यों में 51% ग्रेजुएट सीटें और 49% पोस्टग्रेजुएट सीटें हैं, जबकि अन्य क्षेत्रों में यह स्थिति संतुलित नहीं है। इसके अलावा, रेडियोलॉजी, कार्डियोलॉजी और गाइनोकोलॉजी जैसे स्पेशलाइजेशन के लिए सीटें बहुत कम हैं। कुल मिलाकर, आर्थिक सर्वे में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि विदेशों में मेडिकल शिक्षा के दौरान छात्रों को कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जो अंततः उनके FMGE के प्रदर्शन को प्रभावित करता है। इसे सुधारने के लिए भारत में मेडिकल शिक्षा की फीस को कम करने और विदेश में मेडिकल शिक्षा के अवसरों को नियंत्रित करने की आवश्यकता है, ताकि भारतीय छात्रों को बेहतर और सुलभ चिकित्सा शिक्षा मिल सके।
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