नई दिल्ली : सिख धर्म के संस्थापक गुरुनानक देव की 555वीं जयंती 2024 में पूरे देशभर में श्रद्धा और धूमधाम के साथ मनाई जा रही है। यह पर्व ‘प्रकाश पर्व’ के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि इस दिन गुरुनानक के जीवन और उनके उपदेशों की रोशनी से लोग प्रेरित होते हैं। गुरुनानक देव का जीवन न केवल धार्मिक आस्था की मिसाल है, बल्कि उनके द्वारा दिए गए उपदेशों में जीवन जीने की सच्ची राह और मानवता की सेवा का संदेश भी मिलता है।
गुरुनानक के जीवन की कई ऐसी घटनाएं हैं जो आज भी लोगों को गहरी शिक्षा देती हैं। उन्हीं घटनाओं में से एक है गुरुनानक का मक्का की यात्रा पर जाना, जहां उन्होंने इस्लाम धर्म के अनुयायियों को एक अनमोल शिक्षा दी। खासतौर से एक घटना जो बहुत प्रसिद्ध हुई। वह है मक्का की दिशा में पैर करके लेटने की घटना। आइए जानते हैं इस घटना के पीछे की पूरी कहानी और उससे मिलने वाली गहरी सीख के बारे में।
गुरुनानक और मक्का की यात्रा
गुरुनानक देव का जीवन यात्रा से भरा हुआ था। उन्होंने दुनिया के विभिन्न हिस्सों का दौरा किया और अपने संदेश को फैलाया। गुरुनानक की यात्रा में मक्का का भी उल्लेख मिलता है, जिसका जिक्र जैन-उ-लबदीन की किताब ‘तारीख अरब ख्वाजा’ में किया गया है। यह घटना उस समय की है जब गुरुनानक अपने शिष्य मरदाना के साथ मक्का की यात्रा पर निकले थे।
मरदाना ने गुरुनानक को बताया कि इस्लाम धर्म के अनुयायी के लिए मक्का यात्रा एक महत्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य है। यह माना जाता है कि हर मुसलमान को अपनी जिंदगी में एक बार मक्का जरूर जाना चाहिए, ताकि वह सच्चा मुसलमान कहलाए। गुरुनानक ने यह सुनकर मरदाना के साथ मक्का जाने का निर्णय लिया।
मक्का में गुरुनानक का व्यवहार
मक्का की यात्रा बहुत लंबी और थकान भरी थी। जब गुरुनानक मक्का पहुंचे तो वे बहुत थक चुके थे और आराम करना चाहते थे। वहां एक हाजियों के लिए विश्रामगृह बना हुआ था। गुरुनानक वहां आराम करने के लिए मक्का की दिशा में पैर करके लेट गए। यह दृश्य वहां मौजूद एक हाजियों की सेवा करने वाले व्यक्ति, जियोन को दिखा।
जियोन को यह देखकर गुस्सा आया और वह गुरुनानक से बोला कि तुम मक्का और मदीना की ओर पैर करके कैसे लेट सकते हो? क्या तुम नहीं जानते कि यह बहुत बड़ी बेइज्जती है? इस पर गुरुनानक ने शांतिपूर्वक उत्तर देते हुए कहा कि मैं बहुत थका हुआ हूं और मुझे आराम की जरूरत है। यदि तुम्हें इस बात से परेशानी है, तो तुम मेरे पैरों को किसी ऐसी दिशा में मोड़ दो, जहां खुदा न हो। कहते हैं, जियोन जिस दिशा में गुरुनानक देव का पैर घुमाता था, मक्का उसी दिशा में हो जाता था।
गुरुनानक की यह बात जियोन को गहरी समझ में आई। उन्होंने गुरुनानक से पूछा कि इसका क्या अर्थ है। गुरुनानक ने समझाया कि खुदा केवल एक दिशा में नहीं है, वह हर दिशा में है। तुम्हारी सोच यह है कि मक्का की दिशा में ही खुदा हैं, लेकिन असल में खुदा सर्वव्यापी है और हर स्थान पर मौजूद है।
गुरुनानक ने जियोन को यह भी बताया कि अगर इंसान अपने कर्म अच्छे करे, इमानदारी से काम करे और अपने दिल से खुदा को याद करे, तो खुदा हर जगह है, हर समय है और वह अपने आप इंसान के पास आ जाता है। गुरुनानक के इस उपदेश ने जियोन को यह समझने में मदद की कि खुदा की तलाश केवल एक दिशा में नहीं, बल्कि हर दिशा और हर स्थान पर हो सकती है।
शिक्षा
गुरुनानक की इस घटना से हमें एक गहरी शिक्षा मिलती है। यह घटना केवल धार्मिक सिद्धांतों के बारे में नहीं है, बल्कि जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को भी दर्शाती है। सबसे पहली बात, गुरुनानक ने इस घटना के माध्यम से यह संदेश दिया कि धर्म और ईश्वर को किसी खास स्थान या दिशा में सीमित नहीं किया जा सकता। खुदा हर जगह है और हर व्यक्ति के अंदर है। हमें अपने कर्मों और विचारों के माध्यम से ईश्वर के पास पहुंचने की कोशिश करनी चाहिए, न कि किसी भौतिक स्थान या दिशा की ओर मुंह करके।
प्रकाश पर्व के नाम से क्यों जानी जाती है गुरुनानक जयंती
गुरुनानक जयंती पर गुरुद्वारों में भजन-कीर्तन और लंगर का आयोजन होता है। इसके अलावा, कुछ दिन पहले से ही प्रभातफेरियां निकलती हैं, जिसमें भक्त सुबह-सुबह भजन गाते हुए लोगों के घरों में जाते हैं। यह एक तरह से गुरुनानक के विचारों और उपदेशों का प्रचार करने का तरीका होता है, ताकि सभी को उनके संदेश का ज्ञान हो सके। इसे प्रकाश पर्व इसलिए कहते हैं क्योंकि गुरुनानक ने समाज में ज्ञान और सच्चाई का प्रकाश फैलाने का काम किया था। उनके उपदेशों ने लोगों को सही राह दिखाई और जीवन को सच्चाई, ईमानदारी और सेवा की भावना से जीने की सीख दी। कहते हैं, जो भी व्यक्ति गुरुनानक देव की बातों पर चलता है तो वह सुख-शांति के साथ अपना जीवन व्यतीत करता है।