सूर्यास्त हो चुका था, लेकिन अंधेरा होने में अभी आधे एक घंटे की देरी थी। बागीचे के पौधे, जिनसे प्रेम प्रकाश चौधरी हर रोज बातें किया करते थे, अब उन्हें मौन प्रतीत हो रहे थे। पौधों के पत्तों की सरसराहट और हवा की ठंडक भी उन्हें कोई राहत नहीं दे पा रही थी। बेटे के कहे शब्दों ने उनके दिल में गहरी चोट की थी, उनके आत्मसम्मान को बुरी तरह झकझोर दिया था। बेटे के शब्द अब भी उनके कानों में बार – बार गूंज रहे थे – पापा आपने किया ही क्या अपनी लाइफ में, एक क्लर्क बनकर ज्वाइन किया और क्लर्क रहकर ही रिटायर हो गए। एक घर तक नहीं बना पाए, ये घर तो दादा जी ने बनवाया था, हाँ इसमें थोड़ी बहुत मरम्मत आपने जरूर करवाई है। सिर्फ चार सालों में ही मेरा प्रमोशन बैंक के ऑफिसर के पद पर मुंबई जैसे शहर में हो गया, प्लीज मुझे मुंबई जाने से मत रोकिए, मुझे आगे निकलना है, बहुत आगे निकलना है। इस छोटे से कस्बे में रहकर मैं भी बस आपकी ही तरह बनकर रह जाऊंगा, मुझे लाइफ में बहुत आगे निकलना है, बहुत कुछ अचीव करना है।
आज प्रेम प्रकाश जी को अपनी सारी जिंदगी की मेहनत और समर्पण एक पल में निरर्थक महसूस हो रही थी। वे एक साधारण क्लर्क के रूप में अपने करियर से संतुष्ट थे, लेकिन बेटे की महत्वाकांक्षाओं ने उनके जीवन की सार्थकता पर सवाल खड़ा कर दिया। वह सोचने लगे कि क्या वाकई उनकी ज़िन्दगी का कोई अर्थ नहीं था? क्या उनकी सारी मेहनत और संघर्ष व्यर्थ थे? लेकिन इस सब के बीच, उनके मन के एक कोने में एक सवाल भी उठ रहा था—क्या वाकई सफलता का मतलब केवल ऊंचे पद और बड़ा घर है? क्या बेटे की दृष्टि में उनके जीवन की सरलता और समर्पण की कोई कद्र नहीं? यह सोचते-सोचते प्रेम प्रकाश चौधरी की आंखों में एक ठंडी उदासी छा गई। उनके जीवन की सांझ का यह समय, जो कभी उनके बागीचे में हरियाली और ताजगी से भरा रहता था, अब उन्हें निस्सार लगने लगा।
प्रेम प्रकाश चौधरी अपने कमरे में आकर बैठ गए, वे जानते थे कि इस समय उनकी धर्मपत्नी कमला उनका इंतजार कर रही होगी। उनका छह वर्षीय पोता मृदुल दौड़ता दौड़ता अपने दादा जी के पास आया और दादा जी से उनकी मोबाइल मांगने लगा। इस बीच, उनकी बहू नंदिनी ने सास-ससुर के लिए नौकरानी के हाथों संध्या की चाय भिजवा दी और खुद अपने पति अनुराग के साथ अपने कमरे में चाय पीने चली गई। तभी नौकरानी ने आवाज लगाई – मेमसाहब, मैंने रात का खाना बना दिया है, मेरे सारे काम खत्म हो चुके हैं, मेमसाहब जरा आकर देख लीजिए, कुछ और काम है क्या? नंदिनी मन ही मन खीज गई—ये कामवाली भी, कभी चैन से बैठने नहीं देती, झल्लाती हुई किचन में गई और उससे पूछा- मृदुल के लिए पास्ता तो बनाया नहीं तूने, चल जल्दी से बना दे फिर घर चली जाना। नंदिनी यह कहकर स्कूल से लाई हुई कॉपी चेक करने बैठ गई।
नौकरानी ने फिर आवाज लगाई- मेमसाहब जी, टमाटर तो हैं नहीं, पास्ता कैसे बनेगी? नंदिनी ने फिर खीजते हुए कहा- अरे तो आज टमाटर सौस डालकर बना दे , कभी अपना दिमाग भी चला लिया कर और खीजते हुए अनुराग से बोली- सुना तुमने अनुराग, जरा सा कॉपी लेकर क्या बैठी कि ये महारानी खुद से एक काम नहीं कर सकती, हर चीज में मेमसाहब यह कैसे बनेगा? वह कैसे बनेगा, इसमें कौन सा मसाला डालूं, एक मिनट के लिए मुझे अपने लिए वक्त नहीं मिल पाता, यहां तो मेरा दम घुटता है। मुंबई जाकर टीचिंग छोड़ दूंगी, वैसे भी कंप्यूटर पढ़ाना मुझे अच्छा नहीं लगता। एमसीए की डिग्री है, किसी भी कम्पनी में मुझे जॉब मिल जाएगी। हां हां यहां रहे तो हमारा ग्रोथ रुक जायेगा- अनुराग ने नंदिनी की बातों में हामी भरते हुए कहा।
चाईबासा का एक छोटा सा मोहल्ला है, आमलाटोला, इसी मोहल्ले में प्रेम प्रकाश चौधरी का एक बड़ा सा मकान है। इस मकान को उनके पिता प्रेम सागर चौधरी ने बनवाया था। अनुराग का जन्म इसी घर में हुआ, इसी घर में अनुराग का विवाह हुआ और इसी घर में प्रेम प्रकाश चौधरी के पोते मृदुल का भी जन्म हुआ। इस घर से उन्हें विशेष लगाव था, अनुराग उनका इकलौता बेटा था। अनुराग के मुंबई चले जाने के फैसले से वे नाखुश थे। उन्हें बस एक ही ख्याल आ रहा था कि अनुराग मुंबई में सेटल हो जाएगा तो इस मकान का क्या होगा।
यकायक सासू माँ की आवाज से नंदिनी का ध्यान कॉपी से हटकर उनकी ओर गया। -बहू खाना लगा दिया है, आ जाओ टेबल पर.. सभी तुम्हारा इन्तजार कर रहे हैं। नंदिनी झट उठकर वहां चली आई और कहने लगी- मम्मी जी आपने खाना क्यों लगाया मैं तो आ ही रही थी। फिर बुदबुदाती जा रही थी- ये मम्मी जी भी हैं न कभी चैन से रहने नहीं देतीं, जरा देर हुई नहीं कि खुद काम समेटने लगतीं हैं और बाद में सभी जगह कहती फिरेंगी कि बहू के आ जाने से मुझे कोई आराम नहीं है।
आखिर एक दिन वह समय भी आ गया जब अनुराग को नंदिनी और बेटे मृदुल के साथ उस छोटे से कस्बे को अलविदा कहना पड़ा। छूट गए माता-पिता, छूट गए वो नौकर चाकर, छूट गया बड़े लॉन वाला आठ कमरों का वह बड़ा पुश्तैनी मकान, रह गए सिर्फ प्रेम प्रकाश चौधरी और पत्नी कमला देवी। बार-बार मन को समझाने पर भी प्रेम प्रकाश चौधरी और कमला देवी को उनका जाना काफी खल रहा था। धीरे-धीरे दिन बीतने लगे और सबकुछ सामान्य होने लगा।
मुंबई की चकाचौंध और तेज रफ्तार जीवनशैली ने अनुराग, नंदिनी और मृदुल को अपनी लय में ढाल लिया था। छोटे कस्बे की शांत और एक-दूसरे को जानने वाली ज़िंदगी से यह बिल्कुल अलग अनुभव था। मुंबई जैसे महानगर में शुरुआत में वे खो से गए थे, लेकिन धीरे-धीरे वे उस भूलभुलैया से वाकिफ हो गए और महानगरीय जीवन का हिस्सा बन गए। मृदुल का स्कूल में एडमिशन, नंदिनी की नौकरी और फ्लैट की चाबियों का बंटवारा, ये सभी संकेत थे कि वे अब इस नए शहर में खुद को स्थापित कर चुके थे। दिनभर की व्यस्तता के बाद शाम को घर लौटकर मिलना, यह दिनचर्या उनकी नई जिंदगी की रफ्तार को दर्शा रही थी।
इस तरह करीब छ: माह बीत गए। मृदुल के स्कूल में पेरेंट्स टीचर मीटिंग थी, टीचर ने अनुराग और नंदिनी को मृदुल के रिजल्ट दिखाए, मृदुल एक सबजेक्ट को छोड़ बाकी सभी विषयों में फेल था। मृदुल के परिणाम देखकर अनुराग और नंदिनी को गहरा झटका लगा। यह सोचकर कि वह हमेशा अव्वल आता था और अब इस हाल में पहुंच गया था, उनके मन में चिंता की लहर दौड़ गई। वे सोचने लगे, ऐसा अचानक कैसे हो गया? पापा जी के सानिध्य में, छोटे कस्बे के शांत माहौल में मृदुल न सिर्फ अच्छा पढ़ता था बल्कि खुश भी रहता था। टीचर की बात ने उन्हें और परेशान कर दिया कि मृदुल ने अब तक कोई दोस्त नहीं बनाया और वह हमेशा गुमसुम रहता है, क्लास में चुपचाप बैठा रहता है, कुछ पूछने पर कोई जवाब नहीं देता, सिर नीचे किए बैठा रहता है। बेहतर होगा कि आप किसी मनोचिकित्सक से मिलें।
अनुराग और नंदिनी के लिए यह एक बड़ी चिंता का विषय था। घर आकर नंदिनी और अनुराग ने सलाह मशविरा की कि अब वे दोनों कुछ ज्यादा वक्त मृदुल के साथ बिताएंगे। कुछ दिनों बाद उनकी जिंदगी की रफ्तार फिर से उसी ढर्रे पर चल पड़ी। फिर एक दिन ऑफिस से लौटने पर नंदिनी ने मृदुल को दरवाजे पर सोता हुआ पाया। मृदुल से घर की चाबी खो गई थी, इसी वजह से वह बहुत देर तक दरवाजे पर बैठा रहा और फिर उसकी वहीं आँख लग गई, नंदिनी ने झट उसे उठाया और बिस्तर पर सुला दिया। आज नंदिनी महानगर की व्यस्त और असंवेदनशील जीवनशैली को बड़े करीब से महसूस कर रही थी, मृदुल का दरवाजे पर सोते रहना और किसी का ध्यान न देना, नंदिनी के भीतर की भावनाओं को झकझोर दिया। कस्बे की सामूहिकता और अपनापन उसे एक खोई हुई चीज लगने लगती है, जहाँ मृदुल की देखभाल के लिए सब चिंतित रहते थे।
इस घटना ने नंदिनी को न केवल महानगर की एकांत दुनिया का एहसास दिलाया, बल्कि उसे अपने कस्बे के लोगों के साथ जुड़ी भावनाओं और रिश्तों की गहराई का भी स्मरण कराया। नंदिनी ने फैसला लिया कि अब वह जॉब छोड़ देगी और घर से ही ऑनलाइन जॉब करेगी। अब जब मृदुल स्कूल से घर आता तो मम्मी को घर पर देख काफी खुश होता। नंदिनी को ऑनलाइन जॉब मिल तो गया लेकिन काम की मात्रा बहुत अधिक होती थी, काम का दबाव बहुत रहता था।
आज मृदुल का जन्मदिन है। मृदुल ने पहले से ही बर्थ डे पर स्कूल नहीं जाने की जिद कर अपने मम्मी- पापा को मना लिया था। अनुराग मृदुल और नंदिनी से यह कहकर ऑफिस चला गया कि वह आज संध्या समय जल्दी घर चला आएगा, फिर तीनों घूमने जाएंगे और रात का खाना बाहर खायेंगे और मृदुल के लिए ढेर सारी शॉपिंग करेंगे। अनुराग के ऑफिस चले जाने के बाद मृदुल कुछ देर तक तो घर में ही खेलता रहा फिर वह अपनी मम्मी नंदिनी से बाहर घूमने की जिद करने लगा। -मम्मी चलो ना, बाहर घूमने आज मेरा बर्थडे है, मम्मी। बेटा आज मुझे काम बहुत है, शाम को तो जाएंगे ही, अभी घर में ही खेलो, मैं तुम्हारे लिए तुम्हारी पसंद की चॉकलेट आइसक्रीम मंगा देती हूं। नहीं, नहीं मम्मी चलो बाहर, घूमने चलो, अभी चलो, अभी चलो।
कुछ ही देर में जोमैटो वाला आइसक्रीम देकर चला गया लेकिन मृदुल अपनी जिद पर अड़ा रहा, नंदिनी ने उसे फिर समझाया और उसे आइसक्रीम निकाल कर देने लगी तो मृदुल ने सारी आइसक्रीम जमीन पर गिरा दी, घर के बर्तन फेंकने लगा, कहने लगा मुझे दादा जी के पास जाना है, मुझे दादा जी के पास जाना है, दादा जी मेरे बर्थडे पर मुझे घुमाने ले जाते थे.. नंदिनी अपने आप को रोक न पाई और सामने पड़ी बेल्ट से मृदुल को चार पांच बेल्ट लगा दिए। मृदुल की पीठ पर बेल्ट के दाग उभर आए, यकायक नंदिनी ने बेल्ट फेंक दिया।
– हे ईश्वर ये मैंने क्या कर डाला, फूल जैसे बच्चे पर मेरा हाथ कैसे उठ गया.. हे ईश्वर मुझे माफ कर दो और वह मृदुल को सीने से लगाने के लिए बढ़ी लेकिन मृदुल डर के मारे पलंग के नीचे जाकर छुप गया। नंदिनी के लाख मनाने पर भी वह पलंग के नीचे से बाहर नहीं आया, वह वहीं छुपकर रोता रहा। संध्या समय घर लौटने पर अनुराग ने देखा नंदिनी का चेहरा सूजा हुआ है और मृदुल कहीं नजर नहीं आ रहा है, अनुराग ने मृदुल को आवाज लगाई लेकिन मृदुल उसे नहीं दिखा। नंदिनी ने अनुराग को सारी घटना बताई, अनुराग गुस्से से उबल पड़ा और नंदिनी को उसने दो तमाचे जड़ दिए। कुछ देर बाद खुद सोफे पर जाकर धम्म से बैठ गया, दोनों हाथों से सिर पकड़े वह अपने भीतर उमड़ते हुए विचारों और पछतावे के समंदर में डूब गया।
-हे ईश्वर, ये तुमने मुझसे क्या करवाया? आज मैंने कैसे नंदिनी पर हाथ उठा दिए! हे ईश्वर मैं गुस्सा क्यों नहीं रोक पाया.. वह सोचे जा रहा था, मैंने क्या सोचा था और यह क्या हो रहा है? अपने बाबूजी को कहे गए कठोर शब्द उसे हर पल चुभने लगे थे, और वह ग्लानि से भर गया था। उसके मन में कस्बे की यादें बाढ़ की तरह उमड़ आईं—माँ बाबूजी, वहां के नौकर- चाकर ने उनकी जिंदगी को कितना सहज और सरल बनाया था जिसे वह कभी समझ ही नहीं पाया। अब उसे एहसास हो रहा था कि उस कस्बे की सादगी और सामंजस्य में एक अनकही शांति थी। वह सोचने लगा, क्या कस्बे में रहकर कामयाबी नहीं मिल सकती? वह उठा और नंदिनी के पास जाकर धीमी आवाज में बोला – मुझे माफ कर दो नंदिनी, मैंने बहुत बड़ी गलती की है। चलो, अब वापस लौट चलते हैं।
गीता दूबे
जमशेदपुर