जमशेदपुर : टाटा स्टील ने 2045 तक नेट जीरो बनने का महत्वपूर्ण लक्ष्य निर्धारित किया है। इस दिशा में, कंपनी ने विभिन्न क्षेत्रों में कई डीकार्बोनाइजेशन पहलों को अपनाया है, जो पर्यावरण संरक्षण और स्थिरता की दिशा में एक बड़ा कदम है। बता दें कि ‘नेट जीरो’ के तहत उत्सर्जन को संतुलित करना है। इसमें पर्यावरण संरक्षण के लिए वृक्षारोपण, औद्योगिक प्रक्रियाओं में बदलाव, वनों का विस्तार, तेल और कोयले के जलने से उत्सर्जित कार्बन को संग्रहित करने के लिए प्रकृति के अनुकूल प्रौद्योगिकी का उपयोग करना शामिल है।
जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम करने की दिशा में कदम
भारत में टाटा स्टील अपनी ट्रांजिशन रणनीति के तहत जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता क्रमिक तरीके से कम करने का लक्ष्य रखा है। इस प्रयास के अंतर्गत, कंपनी पंजाब के लुधियाना में 0.75 एमटीपीए क्षमता वाला इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस (ईएएफ) आधारित स्टील प्लांट स्थापित कर रही है, जिसके वर्ष 2026 के आरंभ में चालू होने की संभावना है। यह स्क्रैप-आधारित ईएएफ पारंपरिक स्टील निर्माण की तुलना में कार्बन उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी लाने में सहायक होगा।
नवाचार और तकनीक के माध्यम से डीकार्बोनाइजेशन
टाटा स्टील अपने मौजूदा ब्लास्ट फर्नेस-आधारित प्लांट्स में नवाचार और अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करके डीकार्बोनाइजेशन के लक्ष्य को तेजी से आगे बढ़ा रही है। पिछले वर्ष, कंपनी ने अपने जमशेदपुर प्लांट में वैश्विक स्तर पर अनोखा परीक्षण किया, जिसमें एक ब्लास्ट फर्नेस में रिकॉर्ड स्तर पर हाइड्रोजन गैस को सीधे इंजेक्ट किया गया। इसके अलावा, कंपनी कोल बेड मीथेन (सीबीएम) के निरंतर इंजेक्शन, कोक ओवन गैस इंजेक्शन के परीक्षण, और कार्बन कैप्चर एवं उपयोग के लिए 5 टन प्रति दिन (टीपीडी) क्षमता वाले औद्योगिक संयंत्र का संचालन जैसी पहलों पर भी काम कर रही है।
नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ाना
कंपनी अपने ऊर्जा मिश्रण में नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए लगातार कदम उठा रही है। अयस्क-आधारित बीओएफ स्टील मेकिंग प्रक्रिया में अधिक मात्रा में स्क्रैप का उपयोग किया जा रहा है, और कोयले के उपयोग में कमी लाने के लिए बायोचार, प्राकृतिक गैस और कोक ओवन गैस जैसे हरित ईंधनों का प्रयोग किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त, टाटा स्टील न्यूनतम टेक्नोलॉजी रेडीनेस लेवल (TRL) वाली नई प्रौद्योगिकियों के पायलट प्रोजेक्ट भी संचालित कर रही है, जिसमें शैक्षणिक संस्थानों और मूल उपकरण निर्माताओं (OEM) के साथ सहयोग कर हरित भविष्य की दिशा में नई राहें तलाशने का प्रयास किया जा रहा है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विस्तार की योजनाएं
यूके में, टाटा स्टील एक सस्टेनेबल और ग्रीन स्टील ऑपरेशन स्थापित करने के लिए पुनर्गठन कर रही है। इस योजना का उद्देश्य कंपनी की अधिकांश उत्पाद क्षमताओं को बरकरार रखते हुए प्रतिवर्ष सीधे CO₂ उत्सर्जन में 5 मिलियन टन की कमी करना है, और यूके क्षेत्र में कुल उत्सर्जन को लगभग 1.5% तक कम करना है। यूके सरकार की 500 मिलियन पाउंड की प्रतिबद्धता के सहयोग से, टाटा स्टील इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस (ईएएफ) तकनीक में 750 मिलियन पाउंड का निवेश करेगी, जिसमें मुख्य रूप से यूके में उत्पन्न होने वाले स्क्रैप का उपयोग किया जाएगा। यह बदलाव सफल वैश्विक उदाहरणों के अनुरूप है, जो प्रतिस्पर्धा बढ़ाने, उत्पादन क्षमताओं को सुरक्षित रखने और कार्बन उत्सर्जन में महत्वपूर्ण कटौती में सहायक होगा।
नीदरलैंड में टाटा स्टील आईमुदीन प्लांट के लिए एक डीकार्बोनाइजेशन रोडमैप पर डच सरकार के साथ चर्चा कर रही है।
चुनौतियां और अवसर
भारत में ब्लास्ट फर्नेस-प्रमुख घरेलू इस्पात उद्योग के लिए डीकार्बोनाइजेशन से जुड़ी कई चुनौतियां हैं। प्रतिस्पर्धात्मक मूल्य पर न्यूनतम-कार्बन ईंधनों (जैसे ग्रीन हाइड्रोजन और प्राकृतिक गैस) की कमी और संबंधित डिलीवरी अवसंरचना ऐसे तकनीकों को बड़े पैमाने पर लागू करने की संभावनाओं को काफी सीमित कर देती है। देश के इस्पात-गहन क्षेत्रों, जैसे बुनियादी अवसंरचना, ऑटोमोबाइल, और उपभोक्ता वस्तुओं में समाहित स्टील का अपेक्षाकृत कम स्तर, सप्लाई चेन से स्क्रैप की रिकवरी की धीमी गति को दर्शाता है। चूंकि लंबे समय में स्टील की रिकवरी में परिपक्व होने में समय लगेगा, इसलिए मध्यम अवधि में स्क्रैप रिकवरी की दर कम बनी रहने की संभावना है।
इसके अलावा, ग्रीन स्टील उत्पादन के लिए आवश्यक कई तकनीकें अभी भी प्रारंभिक विकास के चरण में हैं, जिसके लिए व्यापक शोध और निवेश की आवश्यकता है। हाइड्रोजन उत्पादन, कार्बन कैप्चर, और स्टोरेज के लिए आवश्यक अवसंरचना का निर्माण महंगा और जटिल हो सकता है, और इसके लिए सरकारी नीतियों और वित्तीय सहायता का समर्थन अनिवार्य होगा।
बतया गया है कि टाटा स्टील का 2045 तक नेट ज़ीरो बनने का लक्ष्य न केवल कंपनी के लिए, बल्कि समग्र इस्पात उद्योग के लिए भी एक महत्वपूर्ण चुनौती और अवसर है। कंपनी द्वारा उठाए गए कदम और नवाचार इस दिशा में महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उन्हें दीर्घकालिक स्थिरता और आर्थिक लाभ सुनिश्चित करने के लिए सतत विकास के सिद्धांतों के अनुरूप बनाना होगा। यदि टाटा स्टील अपनी योजनाओं को सही दिशा में आगे बढ़ाती है, तो यह न केवल पर्यावरण, बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी लाभदायक सिद्ध होगी।
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