सेंट्रल डेस्क : पूरा देश आज भारतीय सेना दिवस (Army Day) मना रहा है। 15 जनवरी 1949 को कोडंडेरा मडप्पा करियप्पा (K.M. Cariappa) भारतीय थल सेना के पहले कमांडर-इन-चीफ बने थे। इससे पहले भारतीय सेना की कमान ब्रिटिश अफसरों के हाथों में थी। इस महत्वपूर्ण दिन को लेकर हर साल देशभर में जोश और उत्साह के साथ सेना दिवस मनाया जाता है। इसी दिन भारतीय सेना के इतिहास के कई महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक किस्से भी याद किए जाते हैं। एक ऐसा ही ऐतिहासिक किस्सा है, जब फील्ड मार्शल करियप्पा ने पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया था। यह घटना उनके बेटे एयर मार्शल के.सी. करियप्पा से जुड़ी है, जो 1965 में पाकिस्तान द्वारा युद्धबंदी बनाए गए थे।
क्या है किस्सा
भारतीय सेना के पहले कमांडर-इन-चीफ जनरल करियप्पा के बेटे एयर मार्शल के.सी. करियप्पा भी भारतीय सेना में उच्च पद पर थे। उन्होंने 1965 की भारत-पाकिस्तान जंग में भारतीय वायु सेना के स्क्वाड्रन लीडर के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने उन्हें युद्धबंदी बना लिया था, ठीक उसी तरह जैसे 2019 में पाकिस्तान ने भारतीय वायु सेना के पायलट अभिनंदन वर्धमान को पकड़ा था।
एयर मार्शल के.सी. करियप्पा उस घटना का उल्लेख करते हुए बताते हैं, ’22 सितंबर, 1965 को मुझे 4 विमानों का लीडर बनाकर पाकिस्तान के क्षेत्र में भेजा गया। हमारा उद्देश्य दुश्मन के ठिकानों और टैंकों को नष्ट करना था। हालांकि, जैसे ही हम पाकिस्तान की सीमा में दाखिल हुए, एक विमान की दुर्घटना हो गई और मैं युद्धबंदी बना लिया गया’।
जब उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ और वे जमीन पर गिरे, तो पाकिस्तान की सेना ने उन्हें पकड़ लिया और कैदी बना लिया। पाकिस्तान के सैनिकों को जल्द ही पता चल गया कि वे भारत के पहले आर्मी चीफ, फील्ड मार्शल करियप्पा के बेटे हैं।
पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान का ऑफर और फील्ड मार्शल का जवाब
पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान, जो जनरल करियप्पा के अधीन भारतीय सेना में थे, ने जैसे ही यह सुना कि उनके पुराने वरिष्ठ अधिकारी का बेटा पाकिस्तान के कब्जे में है, तो उन्होंने तुरंत जनरल करियप्पा से संपर्क किया। अयूब खान ने भारतीय उच्चायुक्त के माध्यम से जनरल करियप्पा को संदेश भेजा और यह ऑफर दिया कि अगर वह चाहें, तो उनके बेटे को पाकिस्तान रिहा कर सकता है।
यहां पर जनरल करियप्पा ने जो जवाब दिया, वह न केवल पाकिस्तान, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा संदेश बन गया। जनरल करियप्पा ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति के ऑफर को ठुकरा दिया और दो टूक शब्दों में कहा, ‘सभी हिंदुस्तानी कैदी मेरे बेटे हैं। अगर तुम मेरे बेटे को रिहा करना चाहते हो, तो बाकी सभी भारतीय युद्धबंदियों को भी रिहा करो। और, जब तक वे सभी रिहा नहीं हो जाते, तब तक सभी का अच्छे से ध्यान रखना’।
यह जवाब पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के लिए एक बड़ा झटका था। यह घटना इस बात का प्रमाण थी कि भारतीय सेना अपने सैनिकों के लिए कितनी सख्त और प्रतिबद्ध है। जनरल करियप्पा का यह बयान आज भी भारतीय सेना के साहस और ईमानदारी का प्रतीक माना जाता है।
पाकिस्तान में के.सी. करियप्पा का अनुभव
के.सी. करियप्पा ने अपनी किताब में इस दौरान के अनुभवों को साझा करते हुए लिखा कि उन्होंने पाकिस्तान में महीनों तक युद्धबंदी के रूप में समय बिताया। इस दौरान, पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान की पत्नी और उनका बेटा उनसे मिलने भी आए थे। हालांकि, के.सी. करियप्पा ने कभी भी पाकिस्तान से किसी विशेष सुविधा की मांग नहीं की। वे बस चाहते थे कि भारतीय युद्धबंदियों को बेहतर तरीके से रखा जाए। 22 जनवरी, 1966 को, लंबे समय बाद, के.सी. करियप्पा को पाकिस्तान से रिहा किया गया और वे भारत लौट आए।
फील्ड मार्शल करियप्पा का अद्वितीय योगदान
फील्ड मार्शल करियप्पा का भारतीय सेना में योगदान अनमोल है। 15 जनवरी 1949 को जब उन्होंने भारतीय सेना की कमान संभाली, तब ब्रिटिश अफसरों के हाथों से भारतीय सेना की जिम्मेदारी पूरी तरह से भारतीय अफसरों को सौंपी गई। जनरल करियप्पा ने न केवल भारतीय सेना की दिशा और दशा को नए रूप में ढाला, बल्कि उन्होंने सेना के भीतर एक दृढ़ नेतृत्व, सामूहिकता और साहस का प्रतीक भी स्थापित किया।
आज, जब हम आर्मी डे मना रहे हैं, हमें फील्ड मार्शल करियप्पा और उनके परिवार के योगदान को याद करना चाहिए, जिन्होंने भारतीय सेना को अपनी निष्ठा, बलिदान और वीरता से गौरव प्रदान किया। उनके बेटे, एयर मार्शल के.सी. करियप्पा ने भी युद्धबंदी के दौरान भारतीय सैनिकों की गरिमा को बनाए रखने के लिए अपना पूरा प्रयास किया, और यह उनकी बहादुरी का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
आर्मी डे हमें यह भी याद दिलाता है कि भारतीय सेना की ताकत सिर्फ उसकी भौतिक शक्ति में नहीं, बल्कि उसमें शामिल हर एक सैनिक के समर्पण और देशभक्ति में भी है।
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