नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली के विज्ञान भवन में शुक्रवार को एक ऐतिहासिक अवसर पर देश की महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रसिद्ध संत, विद्वान एवं साहित्यकार जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामभद्राचार्य जी महाराज को भारत के 58वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया। यह पुरस्कार उन्हें संस्कृत भाषा और साहित्य में उनके अद्वितीय योगदान के लिए प्रदान किया गया।
स्वामी रामभद्राचार्य जी का जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर जनपद के सुजानगंज क्षेत्र के शचीपुरम गांव में हुआ था। वे संस्कृत साहित्य के एक प्रकांड विद्वान हैं और जीवन पर्यन्त साहित्यिक सेवा में संलग्न हैं। इस अवसर पर राष्ट्रपति मुर्मू ने उन्हें शॉल, श्रीफल, मोमेंटो, मां सरस्वती की प्रतिमा और नगद पुरस्कार का चेक प्रदान कर सम्मानित किया।
साहित्यिक सेवा का अनुपम योगदान
कार्यक्रम में उपस्थित जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय, दिल्ली के सचिव आर.पी. मिश्रा ने कहा, “आज का दिन हमारे देश के लिए अत्यंत गौरवशाली है। साहित्यिक क्षेत्र में अप्रतिम योगदान के लिए जगद्गुरु जी को सर्वोच्च सम्मान मिलना पूरे राष्ट्र के लिए गर्व की बात है।”
स्वामी रामभद्राचार्य जी को पूर्व में पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है। उन्होंने संस्कृत भाषा में अनेक ग्रंथों की रचना की है और दिव्यांग जनों के लिए शिक्षा व आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में भी अतुलनीय कार्य किया है। वह न केवल एक आध्यात्मिक गुरु हैं, बल्कि शिक्षाविद, कवि, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी प्रसिद्ध हैं।
पुरस्कार प्राप्ति पर स्वामी रामभद्राचार्य का उद्गार
ज्ञानपीठ सम्मान ग्रहण करते समय स्वामी रामभद्राचार्य जी ने कहा,
“मुझे यह पुरस्कार संस्कृत भाषा में दिए जाने पर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। मैं हृदय से सभी को धन्यवाद देता हूँ। मेरा जीवन साहित्यिक सेवा को समर्पित है, और मेरी लेखनी भारत के उन्नयन में निरंतर सृजन करती रहेगी।”
पैतृक गांव में उल्लास का माहौल
इस ऐतिहासिक उपलब्धि की सूचना मिलते ही शचीपुरम गांव में जश्न का माहौल बन गया। गांव के लोग अपने गौरवपुत्र की इस सफलता पर गर्व से अभिभूत नजर आए। बधाई देने वालों में उनके परिवार के सदस्य जैसे ब्रह्मदेव मिश्र (काका), आचार्य चंदकांत मणि मिश्र, ओम प्रकाश मिश्र, और क्षेत्रीय गणमान्य नागरिकों में उमाशंकर सिंह (जज साहब), अवधेश सिंह आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।
जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी का यह सम्मान न केवल व्यक्तिगत उपलब्धि है, बल्कि संस्कृत भाषा, भारतीय संस्कृति और साहित्य की गौरवशाली परंपरा का सम्मान भी है। उनकी साहित्यिक, आध्यात्मिक और सामाजिक सेवाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेंगी।