झांसी : उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में स्थित महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के एसएनसीयू (स्नातक नवजात शिशु चिकित्सा विभाग) में 15 नवंबर की रात आग लगने की घटना के बाद अब तक 17 बच्चों की मौत हो चुकी है। शनिवार को दो और बच्चों की मौत के बाद इस हादसे में मृतक बच्चों की संख्या बढ़ गई है।
15 नवंबर को एसएनसीयू में लगी थी आग
झांसी मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. नरेंद्र सिंह सेंगर ने रविवार को बताया कि 15 नवंबर की रात को एसएनसीयू में आग लगी थी, जिसमें कुल 39 नवजात शिशुओं को बचाया गया था। इनमें से शनिवार को दो बच्चों की मौत हो गई, जिससे मृतकों की संख्या अब 17 हो गई है।
दो और बच्चों के शव परिजनों को सौंपे गए
डॉ. नरेंद्र सिंह सेंगर ने कहा कि दोनों बच्चों के शवों का पोस्टमार्टम शनिवार को कराया गया, जिसके परिणामस्वरूप यह जानकारी सामने आई कि बच्चों की मौत बीमारी के कारण हुई थी। यह दोनों बच्चे जन्म के समय अत्यधिक कमजोर थे और इनका वजन केवल आठ सौ ग्राम था। इसके अतिरिक्त, एक बच्चे के दिल में छेद भी था, जिससे उनकी स्थिति और बिगड़ गई। दोनों बच्चों के शव परिजनों को सौंप दिए गए हैं।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करेंगे दौरा
इस दुखद घटना के बाद झांसी में कई राजनीतिक दलों और नेताओं ने शोक व्यक्त किया है। कांग्रेस के सूत्रों ने बताया कि रविवार को कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय और सांसद तनुज पुनिया झांसी जाएंगे। वे घटनास्थल का दौरा करेंगे और उन परिवारों से मुलाकात करेंगे, जिन्होंने इस हादसे में अपने नवजात बच्चों को खो दिया है। कांग्रेस नेताओं का उद्देश्य इस घटना में प्रभावित परिवारों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करना और साथ ही, सरकार से उचित कार्रवाई की मांग करना है।
समय रहते बचाई गई थी 39 बच्चों की जान
यह घटना जिले के नवाबाद थाना क्षेत्र के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के एसएनसीयू में हुई, जहां आग ने गंभीर स्थिति उत्पन्न कर दी थी। आग की वजह से बच्चे और अस्पताल की अन्य व्यवस्थाएं प्रभावित हुईं, हालांकि 39 बच्चों को समय रहते बचा लिया गया था। बावजूद इसके, इस हादसे ने न केवल स्वास्थ्य सेवाओं की खामियों को उजागर किया, बल्कि बच्चों की मौतों के साथ ही उन परिवारों के लिए एक गहरा आघात भी दिया।
फिर सवालों के घेरे में अस्पतालों की सुरक्षा व्यवस्था
यह हादसा स्वास्थ्य व्यवस्था और अस्पतालों की सुरक्षा मानकों की जांच का विषय बन गया है। अब यह सवाल उठता है कि अस्पताल में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए थे और भविष्य में ऐसी त्रासदियों से कैसे बचा जा सकता है।
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