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Jharkhand BJP boycott TAC meeting : चंपई सोरेन का सरकार पर तीखा हमला, भाजपा ने टीएसी बैठक का किया बहिष्कार, शराब नीति पर गहरा विरोध

by Rakesh Pandey
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Jamshedpur (Jharkhand) : झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वरिष्ठ नेता चंपई सोरेन ने आदिवासी परामर्शदातृ समिति (TAC) की आगामी बैठक को लेकर राज्य सरकार पर कड़ा प्रहार किया है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट के माध्यम से घोषणा की है कि भाजपा ने टीएसी की इस बैठक का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है।

टीएसी की निष्प्रभाविता पर सवाल

चंपई सोरेन ने अपने बयान में कहा कि टीएसी का गठन ऐतिहासिक रूप से राज्यपाल के संरक्षण में करने की एक स्थापित परंपरा रही है। हालांकि, वर्तमान सरकार ने इस लोकतांत्रिक परंपरा का उल्लंघन करते हुए एक अनुचित मिसाल कायम की है। उन्होंने तीखा सवाल उठाते हुए कहा कि जब यह संस्था विशेष रूप से आदिवासियों के हितों की रक्षा और संवर्धन के लिए बनाई गई है, तो फिर इसकी बैठकों से कोई ठोस और सार्थक परिणाम क्यों नहीं निकल रहे हैं?

पूर्व मुख्यमंत्री ने समिति की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि टीएसी में सरकार का स्पष्ट बहुमत होने के बावजूद, पिछले कई वर्षों से पंचायतों (पेसा) और अन्य महत्वपूर्ण आदिवासी मामलों पर कोई भी ठोस निर्णय नहीं लिया गया है। उन्होंने इसे सरकार के “ढुलमुल रवैये” का सीधा परिणाम बताया, जो आदिवासी कल्याण के प्रति उसकी गंभीरता पर प्रश्नचिह्न लगाता है।

शराब नीति पर कड़ा एतराज

चंंपई सोरेन ने मंगलवार को होने वाली टीएसी बैठक के एजेंडे में शामिल एक विशेष प्रस्ताव पर गहरा विरोध व्यक्त किया। उन्होंने बताया कि इस बैठक में आदिवासी बहुल गांवों में शराब की दुकानें और बार खोलने के लिए लाइसेंस देने का प्रस्ताव शामिल है। इस प्रस्ताव पर कड़ा रुख अपनाते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके सामाजिक जीवन की शुरुआत ही नशा विरोधी आंदोलन से हुई थी।

उन्होंने दृढ़ता से कहा कि वे ऐसी किसी भी बैठक में शामिल नहीं हो सकते, जहां झारखंड की युवा पीढ़ी को नशे की ओर धकेलने वाले फैसले लिए जा रहे हों। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा, “ऐसे दस्तावेजों पर मुहर लगाने वाली बैठक में शामिल होना मेरे लिए कदापि संभव नहीं है।”

माना जा रहा है कि चंंपई सोरेन के इस विस्फोटक बयान के बाद झारखंड की राजनीति में टीएसी की भूमिका, उसकी निष्पक्षता और मौजूदा सरकार की आदिवासी कल्याण नीतियों पर एक नई और जोरदार बहस शुरू हो गई है। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस विरोध पर क्या प्रतिक्रिया देती है और आदिवासी समाज के हित में क्या कदम उठाए जाते हैं।

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