Jharkhand Bureaucracy Latest News Naukarshahi : गुरु गहरे चिंतन में थे। बरामदे में श्रोताओं की अच्छी-खासी भीड़ थी। माहौल देखकर लगा कि माजरा गंभीर है। कुर्सी खींचकर चुपचाप अगली पंक्ति में बैठ गया। इतने में गुरु बोले- यार! ये सब तो चलता ही रहता है। जो कहानी पड़ोसी की है, वही कहानी घर की है। बस अंतर इतना ही है कि वहां लोगों को समझ आ रही, यहां नहीं आ रही। गुरु के जवाब से साफ था कि सवाल पहले किया जा चुका था। गुरु जवाब पर मंथन की मुद्रा में थे। उत्तर सुनकर सवाल करने वाले श्रोता से कहा- सही कह रहे गुरु। सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं।
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बात समझने के लिए बीचोंबीच कूदना जरूरी था, लेकिन सामने गुरु थे। भड़कने का जोखिम उठाने की हिम्मत नहीं थी। लिहाजा बात सहमति के स्वर में शुरू की। प्रश्नकर्ता की बात पूरी होने के बाद माहौल में फैली शांति का लाभ उठाते हुए कहा- गुरु हमेशा सही कहते हैं। बात जरूर कुछ लोगों को बुरी लग जाती है। वाक्य की पूर्णता के साथ गुरु सहित आस-पास बैठे लोगों के चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गई। देखकर अहसास हुआ एंट्री परफेक्ट हुई है। प्रकरण तक पहुंचने के लिए बात आगे बढ़ानी थी। लिहाजा, सहजता से सवाल किया। कोई नया कारनामा हुआ है क्या गुरु मुहल्ले में? गुरु अपनी मुस्कान समेटते हुए बोले, अरे नहीं, छोटकन कह रहा था कि पड़ोसी राज्य के आयोग गठन में ससुर का कोटा चला है।
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इसे यही समझाने की कोशिश कर रहा हूं कि ये कोटा तो हमेशा से चलता है। इस कोटे के चक्कर में देश में सरकार बदल गई। बिहार में बवाल मचा है। कहानी तो वनांचल में भी यही है। अंदरखाने चर्चा है कि नौकरशाही के कई सूरमा इसी कोटे से सेट हुए हैं। कौन कितना काबिल है? इससे पहले, यह जानना जरूरी है कि किसका कौन ससुर है। पिछले कुछ वर्षों तक बेटे-बेटी को सेट कराने की जिम्मेदारी मां-बाप उठाते रहे हैं। बदलते वक्त के साथ अब यह जिम्मा सास-ससुर ने उठा लिया है।
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कई लोग तो यह दावा कर रहे हैं कि ससुर जी का परफार्मेंस पापाजी से भी शानदार है। एक तो कागज पर नाम के साथ नाम नहीं आता, दूसरे पैरवी भी बिल्कुल बेटे जैसी होती है। जनता बेचारी यही समझती है कि साहब बड़ी मेहनत से कुर्सी तक पहुंचे हैं। असली खेल पर्दे के पीछे होता है, जिस पर हमेशा पर्दा ही पड़ा रहता है। वनांचल राज्य में एक फायदा और है। यहां राजनीति बड़ी मर्यादित है। केवल वहीं बोलती है, जहां बात सीधे-सीधे हो। कागज-पत्तर निकालकर समीकरण बिठाने की फुर्सत किसी को नहीं। गुरु की बात मस्तिष्क को झकझोर रही थी। अब सभा के बीच से चुपचाप निकल जाने में भलाई थी।
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