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JPSC Assistant Professor Recruitment Case : असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्ति मामले मे हाईकोर्ट ने सुनवाई पूरी, फैसला रखा सुरक्षित, एसटी अभ्यर्थी को न्याय के आसार

* नागपुरी विषय के सहायक प्राध्यापक पद के लिए एसटी अभ्यर्थी की नियुक्ति का मामला

by Anand Mishra
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Ranchi (Jharkhand) : झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) की ओर से नागपुरी भाषा में सहायक प्राध्यापक (Assistant Professor) की नियुक्ति को लेकर जारी विवाद अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है। झारखंड हाई कोर्ट की खंडपीठ ने बुधवार को इस मामले में सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया है।

मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष JPSC द्वारा दायर एलपीए (Letters Patent Appeal) पर सुनवाई हुई। यह अपील हाई कोर्ट की एकल पीठ द्वारा दिए गए आदेश के खिलाफ दायर की गई थी, जिसमें एसटी वर्ग के अभ्यर्थी मनोज कुमार कच्छप के पक्ष में निर्णय दिया गया था।

मामला : फीस क्रेडिट न होने से इंटरव्यू लिस्ट से बाहर हुए थे अभ्यर्थी

दरअसल, वर्ष 2018 में जेपीएससी ने विज्ञापन संख्या 05/2018 के तहत नागपुरी विषय में अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग के लिए बैकलॉग वैकेंसी के अंतर्गत 4 सहायक प्राध्यापक पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए थे।

मनोज कुमार कच्छप ने आवेदन किया, लेकिन तकनीकी गड़बड़ी के कारण उनकी फीस जेपीएससी के अकाउंट में क्रेडिट नहीं हो सकी। इसी कारण उन्हें इंटरव्यू लिस्ट में शामिल नहीं किया गया।

इस पर उन्होंने हाई कोर्ट में रिट याचिका दाखिल की। एकल पीठ ने सुनवाई के बाद निर्देश दिया कि उन्हें इंटरव्यू में शामिल किया जाए और उनका परिणाम अंतिम आदेश पर निर्भर रहेगा।

इंटरव्यू में शामिल हुए और पाए सर्वाधिक अंक

JPSC ने आदेश के अनुपालन में मनोज को इंटरव्यू में शामिल कराया। 23 दिसंबर 2021 को परिणाम जारी हुआ, लेकिन कोर्ट के निर्देश पर एक पद के रिजल्ट को रोक दिया गया।

बाद में कोर्ट ने प्रार्थी का सीलबंद रिजल्ट मंगाया, जिसमें यह स्पष्ट हुआ कि मनोज कुमार कच्छप को 85 में से 72.10 अंक मिले हैं और वह परीक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले अभ्यर्थी हैं।

JPSC की दलील और खंडपीठ की सुनवाई

JPSC ने अपने पक्ष में तर्क दिया कि जब अभ्यर्थी ने फॉर्म भरा, तब वेबसाइट का तकनीकी स्टेटस फेल हुआ और फीस जमा नहीं हो पाई। आयोग ने कहा कि फीस भुगतान न होने के कारण अभ्यर्थी को इंटरव्यू में शामिल नहीं किया जा सका और नियमानुसार अब उसकी नियुक्ति नहीं की जा रही है।

लेकिन अधिवक्ता सब्यसाची ने मनोज की ओर से दलील दी कि कई परीक्षाओं में एसटी अभ्यर्थियों से फीस ली भी नहीं जाती है और तकनीकी त्रुटि अभ्यर्थी की गलती नहीं थी। साथ ही मनोज ने कोर्ट के निर्देशानुसार इंटरव्यू भी दिया और श्रेष्ठ प्रदर्शन किया।

अब फैसले का इंतजार

हाई कोर्ट की खंडपीठ ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या राज्य का सर्वोच्च न्यायालय इस मेधावी एसटी अभ्यर्थी को न्याय दिलाता है या नहीं।

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