सेंट्रल डेस्क। अभिनेता से राजनेता बने कमल हसन ने बुधवार को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के भाषा विवाद का समर्थन किया है। हसन ने केंद्र पर गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर जबरन हिंदी लादने का आरोप लगाया। उनका मानना है कि केंद्र भारत को “Hindi से Hindia” में बदलने की कोशिश कर रहा है।
उनकी यह टिप्पणी तब आई जब वे तमिल पार्टियों की एक बैठक में शामिल हुए, जहां “हिंदी थोपने” और परिसीमन के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया गया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजा गया। उन्होंने कहा, केंद्र सरकार सभी राज्यों को हिंदी बोलने के लिए मजबूर करना चाहती है और चुनावों में बहुमत हासिल करना चाहती है। हमारा सपना ‘भारत’ है और उनका सपना ‘हिंदिया’ है।
“यह भारत है, हिंदिया नहीं”- स्टालिन
यह टिप्पणी स्टालिन के उस बयान की तरह है, जो उन्होंने 2019 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के हिंदी दिवस पर दिए गए बयान के जवाब में कहा था। शाह ने कहा था कि हिंदी वह एक भाषा है जो भारत की पहचान को दुनिया में दर्शाती है। इसके जवाब में स्टालिन ने कहा था, “यह भारत है, हिंदिया नहीं।”
“हिंदी थोपने” को लेकर चल रहे विवाद की जड़ राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में तीन भाषाओं के प्रावधान से है– हिंदी, अंग्रेजी और एक स्थानीय भाषा। DMK-नायक तमिलनाडु सरकार ने कहा है कि वह राज्य में NEP का कार्यान्वयन नहीं होने देगी और केंद्र के साथ शब्दों की जंग जारी रहेगी।
कमल हसन सहित कई तमिल नेता हिंदी को दक्षिणी राज्यों पर थोपने के खिलाफ मुखर रहे हैं। यह लंबा विवाद 1960 के दशक में हिंसक झड़प का कारण बना था, जो तब के विधानसभा चुनाव में मुद्दा बन गया था। यह ताजा विवाद पिछले महीने तब सामने आया, जब केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने चेतावनी दी थी कि यदि तीन भाषाओं की नीति लागू नहीं की गई तो केंद्र फंड्स रोक सकता है।