दावणगेरे: कर्नाटक की 85 वर्षीय सेवानिवृत्त शिक्षिका एच.बी. करिबासम्मा ने अपना जीवन एक अहम संघर्ष के लिए समर्पित कर दिया है। वह इच्छामृत्यु को वैध बनाने के लिए पिछले 24 वर्षों से न्याय की तलाश में हैं। गंभीर बीमारियों के कारण शारीरिक और मानसिक पीड़ा का सामना करते हुए उन्होंने सम्मानजनक मृत्यु के अधिकार के लिए कर्नाटक में ऐतिहासिक लड़ाई लड़ी है। उनके इस संघर्ष को अब एक आंशिक जीत मिली है, जब राज्य सरकार ने गंभीर रूप से बीमार रोगियों को सम्मान के साथ मरने का अधिकार देने के आदेश जारी किए।
24 वर्षों का संघर्ष, न्याय की प्रतीक्षा
करिबासम्मा ने 2000 में गंभीर रूप से बीमार रोगियों के लिए इच्छामृत्यु के अधिकार की कानूनी लड़ाई शुरू की थी। उनका यह मामला कर्नाटक हाईकोर्ट में पहली बार दाखिल हुआ था और न्यायालय में यह केस इतिहास में अपना नाम दर्ज कराने वाला था। वह कर्नाटक की एकमात्र बुजुर्ग महिला थीं, जिन्होंने इस अधिकार के लिए लड़ाई लड़ी। करिबासम्मा को स्लिप डिस्क, मधुमेह और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों ने परेशान कर रखा है, और उन्होंने लंबे समय तक यह महसूस किया कि इस पीड़ा के बीच सम्मानजनक मृत्यु का अधिकार मिलना चाहिए।
सरकार से मिली आंशिक सफलता
हाल ही में कर्नाटक सरकार ने एक आदेश जारी किया, जिसके तहत गंभीर रूप से बीमार मरीजों को सम्मानजनक तरीके से मरने का अधिकार दिया गया। यह करिबासम्मा के संघर्ष का एक बड़ा परिणाम था, जिसने उनके द्वारा किए गए संघर्ष को मान्यता दी। हालांकि, वे अभी भी इस कानून की पूरी प्रक्रियात्मक रूपरेखा का इंतजार कर रही हैं। उनका मानना है कि इच्छामृत्यु को पूरी तरह से वैध बनाने का अधिकार हर व्यक्ति का है जो जीवन के अंतिम क्षणों में पीड़ा और दर्द से गुजर रहा हो।
करिबासम्मा का अंतरराष्ट्रीय संघर्ष
करिबासम्मा का संघर्ष सिर्फ कर्नाटक तक सीमित नहीं था। उन्होंने देश-विदेश के अधिकारिक निकायों से भी संपर्क किया। उन्होंने नीदरलैंड्स से जानकारी प्राप्त की, जहां इच्छामृत्यु कानूनी है और वहां के अधिकारों को भारत में लागू करने की कोशिश की। उन्होंने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और राज्य के कानूनमंत्री को पत्र लिखकर इच्छामृत्यु को वैध बनाने की अपील की। अपनी पेंशन से संघर्ष को जारी रखने के लिए उन्होंने अपना घर भी बेच दिया, लेकिन उन्होंने कभी भी किसी से आर्थिक मदद नहीं ली। यह उनका दृढ़ विश्वास था कि इस लड़ाई को केवल दृढ़ इच्छाशक्ति और संघर्ष से ही जीता जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट में याचिका और कानूनी रास्ता
2018 में सुप्रीम कोर्ट ने करिबासम्मा के संघर्ष को और गति दी जब उन्होंने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि इच्छामृत्यु के संबंध में दिशा-निर्देश तैयार किए जाएं। इसके बाद करिबासम्मा ने अपनी याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की और कोर्ट ने राज्य सरकारों को इस दिशा में निर्देश देने का आदेश दिया। यह एक बड़ी सफलता थी, क्योंकि पहले उनका केस कर्नाटक हाईकोर्ट में खारिज हो चुका था, जब डॉक्टरों ने उनकी स्लिप डिस्क के इलाज के लिए सर्जरी का सुझाव दिया था, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया।
लाइट पर करिबासम्मा की कहानी
करिबासम्मा ने अपनी जीवन यात्रा में कई कठिनाइयों का सामना किया है। अपने पति से अलग और निःसंतान, उन्होंने हमेशा अकेले ही अपने संघर्ष को जारी रखा। उन्होंने अपनी आत्मकथा “लास्ट बेल” लिखी है, जो उनके जीवन और संघर्ष की गवाह है। इसके साथ ही, उनकी कहानी पर आधारित एक वृत्तचित्र “मुक्ति” भी बना, जिसमें उनके संघर्ष को फिल्मी नजरिए से प्रस्तुत किया गया। कोविड-19 महामारी के बाद इस पर बनी फिल्म “निर्गमना” को भी रोक दिया गया, लेकिन करिबासम्मा की कहानी अब भी लोगों के दिलों में बसी हुई है।
करिबासम्मा का दृष्टिकोण और आगे की राह
करिबासम्मा ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि, “मैंने इच्छामृत्यु के अधिकार के लिए अपनी याचिका हाईकोर्ट में दायर की थी। जब वह खारिज हो गई तो मैंने इसे सुप्रीम कोर्ट में अपील की। इस बार कोर्ट ने मेरे पक्ष में फैसला सुनाया।” उनके मुताबिक, केरल ने पहले ही इस अधिकार को लागू किया है और अब कर्नाटक ने भी इसे अपनाया है। वह इस कानून को अन्य राज्यों में लागू होने के लिए भी लड़ाई जारी रखेगी।
करिबासम्मा का अंतिम संदेश
करिबासम्मा के लिए यह संघर्ष केवल एक कानूनी मामला नहीं था, बल्कि यह उनके लिए एक आंदोलन था, जिसमें उन्होंने खुद की पीड़ा और समाज के लिए कुछ करने का जुनून रखा। वह चाहती हैं कि इस देश में हर व्यक्ति को सम्मानजनक तरीके से मृत्यु का अधिकार मिले, ताकि कोई भी व्यक्ति असहनीय पीड़ा में न जीता रहे और अपने जीवन के अंतिम क्षणों में सम्मान के साथ मर सके।
संघर्ष की लंबी राह और उसकी उम्मीद
करिबासम्मा के संघर्ष की कहानी एक प्रेरणा है, जो यह दिखाती है कि अगर इंसान के पास दृढ़ इच्छाशक्ति और लक्ष्य हो तो वह किसी भी परिस्थिति में हार नहीं मानता। वह आज भी अपने संघर्ष को जारी रखने की उम्मीद में हैं, ताकि यह कानून और भी लोगों की मदद कर सके।