सेंट्रल डेस्कः एक आधिकारिक आदेश के अनुसार लोकपाल ने पूर्व प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के खिलाफ कथित भ्रष्टाचार की शिकायत का निपटारा कर दिया है। इस आदेश के अनुसार, 18 अक्टूबर, 2024 को भारत के तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) के खिलाफ, पद के कथित दुरुपयोग, भ्रष्टाचार और एक निश्चित राजनेता और राजनीतिक दल का पक्ष लेने और बचाव करने के लिए शक्ति के दुर्भावनापूर्ण प्रयोग के लिए शिकायत दर्ज की गई थी।
यह हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है….
गौरतलब है कि सीजेआई चंद्रचूड़ 10 नवंबर को सेवानिवृत्त हुए। लोकपाल ने अपने आदेश में विस्तार से जांच की। जिसके तहत, क्या कोई मौजूदा सीजेआई या सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश, लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम की धारा 14 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र के लिए उत्तरदायी है। इस शिकायत में निहित 382 पृष्ठों के विभिन्न आरोपों को विस्तार देने से बचने का फैसला किया। लोकपाल अध्यक्ष जस्टिस ए एम खानविलकर और पांच अन्य सदस्यों ने अपने आदेश में कहा, इसे देखते हुए हम इस शिकायत का निवारण करते हैं, क्योंकि यह हमारे अधिकार क्षेत्र के तहत नहीं आता है।
आदेश में कहा गया है कि शिकायतकर्ता कानून में स्वीकार्य अन्य उपायों को अपनाने के लिए स्वतंत्र है। लोकपाल ने कानून की धारा 14 के तहत विभिन्न प्रावधानों की जांच की जो प्रधानमंत्री, मंत्रियों, संसद सदस्यों, समूह ए, बी, सी और डी के अधिकारियों तथा केंद्र सरकार के अधिकारियों को शामिल करने के लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में है।
“इस प्रावधान की प्रासंगिक व्याख्या हमें इस निष्कर्ष पर ले जाती है कि केवल इस प्रावधान में उनके पदनाम या विवरण के साथ संबंधित व्यक्तियों को लोकपाल के अधिकार क्षेत्र के लिए उत्तरदायी बनाया गया है, एक लोक सेवक होने के नाते लोकपाल को किसी भी मामले में जांच करने का अधिकार दिया गया है। आदेश में कहा गया है कि नि:संदेह रूप से, एक मौजूदा न्यायाधीश या सीजेआई खंड (ए) से (ई), (जी) और (एच) के दायरे में नहीं आएगा।
“एकमात्र विस्तृत खंड जो इसके तहत आ सकता है वह खंड (एफ) है, जो यह बताता है कि कोई भी व्यक्ति जो किसी भी निकाय बोर्ड, निगम, प्राधिकरण, कंपनी, समाज, ट्रस्ट या स्वायत्त निकाय में अध्यक्ष, सदस्य, अधिकारी, कर्मचारी है या ‘संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित’ या केंद्र सरकार द्वारा पूर्ण-आंशिक रूप से वित्तपोषित या इसके द्वारा नियंत्रित। इसमें कहा गया है कि आमतौर पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 2 (सी) के दायरे में लोक सेवक की अभिव्यक्ति के दायरे में आते हैं। आदेश में कहा गया कि अदालत का न्यायाधीश लोक सेवक की अपवाद श्रेणी में नहीं आएगा।
इसमें कहा गया, ‘इस लिहाज से किसी भी अदालत का न्यायाधीश लोकसेवक होगा और उसके खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून समेत भ्रष्टाचार के अपराध के लिए कार्यवाही की जा सकती है, जैसा कि के. वीरास्वामी बनाम भारत सरकार एवं अन्य के मामले में उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने आदेश दिया है।