रांची : झारखंड सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना, जिसे युवाओं को उच्च शिक्षा के बाद रोजगार की दिशा में सशक्त मार्गदर्शन देने के मकसद से शुरू किया गया था, अब बेअसर साबित हो रही है। रांची विश्वविद्यालय सहित राज्य के अन्य विश्वविद्यालयों में स्थापित नियोजन सूचना एवं मार्गदर्शन केंद्र एक तरह से सफेद हाथी बनकर रह गए हैं—न तो यहां कोई मार्गदर्शन मिल रहा है और न ही छात्रों को कोई मदद।
रांची विश्वविद्यालय स्थित केंद्र में छह महीने से पदाधिकारी छुट्टी पर हैं, और उनकी जगह भेजे गए अधिकारी ने अब तक कार्यालय का दरवाजा भी नहीं खोला। यहां तक कि तैनात चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को भी केंद्र के असली कामकाज की जानकारी नहीं है। रांची विश्वविद्यालय के डीएसडब्ल्यू सुदेश कुमार साहू ने खुद स्वीकार किया कि केंद्र फिलहाल पूरी तरह निष्क्रिय है। उन्होंने यह भी बताया कि छात्र न तो यहां आते हैं और न ही अधिकारियों की इसमें कोई रुचि है। छात्रों से बात करने पर यह भी सामने आया कि ये केंद्र सिर्फ कागजों पर सक्रिय हैं, वास्तविकता में इनमें कोई गतिविधि नहीं होती।
छात्रों का कहना है कि योजना की न तो सही जानकारी दी जाती है और न ही कोई नियमित मार्गदर्शन सत्र आयोजित होता है। नियोजन केंद्रों के बाहर भले ही चमकदार बोर्ड लगे हों, लेकिन अंदर की तस्वीर एकदम उलटी है। शून्यता, खामोशी और दिशाहीनता।सरकार की इस निष्क्रियता से छात्र भ्रमित और निराश हैं। हर साल लाखों रुपये इन केंद्रों पर खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन उसका लाभ किसी तक नहीं पहुंच रहा।
यदि मॉनिटरिंग और समीक्षा नहीं हुई तो यह योजना सिर्फ संसाधनों की बर्बादी ही नहीं, बल्कि युवाओं के भविष्य के साथ एक क्रूर मजाक बनकर रह जाएगी।यह रिपोर्ट केवल रांची विश्वविद्यालय की नहीं, बल्कि झारखंड के कई विश्वविद्यालयों की स्थिति का आईना है, जहां employment scheme और career guidance सिर्फ नाम भर बनकर रह गए हैं।