New Delhi : पाकिस्तान इस समय एक अभूतपूर्व राजनीतिक और सैन्य संकट के दौर से गुजर रहा है, जिसके भविष्य को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। कभी मुहम्मद अली जिन्ना की ‘टू नेशन थ्योरी’ के आधार पर अस्तित्व में आया यह देश, 1971 में बांग्लादेश के अलग होने के बाद से ही अपने मूल सिद्धांत पर कमजोर होता दिखाई दिया है। अब, हालिया घटनाक्रमों ने पाकिस्तान के सामने ऐसे चार संभावित रास्ते खोल दिए हैं, जिनमें से कोई एक उसकी नियति तय कर सकता है।
सैन्य तानाशाही का साया: क्या मुनीर की विदाई के बाद खत्म होगा आंशिक लोकतंत्र?
पाकिस्तान में सेना का दबदबा किसी से छिपा नहीं है। देश के राजनीतिक परिदृश्य पर सेना का गहरा प्रभाव हमेशा से रहा है। हाल ही में, एक अप्रत्याशित घटनाक्रम में, पाकिस्तानी सेना के जूनियर अधिकारियों और जवानों के एक समूह ने मौजूदा सेना प्रमुख असीम मुनीर के खिलाफ एक खुला पत्र जारी किया है। इस पत्र में न केवल मुनीर के इस्तीफे की मांग की गई है, बल्कि उन पर गंभीर आरोप भी लगाए गए हैं, जिनमें सेना को राजनीतिक उत्पीड़न का औजार बनाना, लोकतांत्रिक शक्तियों को कुचलना और देश की आर्थिक बर्बादी को बढ़ावा देना शामिल है।
इस अभूतपूर्व आंतरिक विद्रोह ने पाकिस्तान में सैन्य शासन की वापसी की आशंकाओं को और गहरा कर दिया है। यदि मुनीर को पद से हटाया जाता है, तो यह संभावना प्रबल हो जाती है कि कोई नया सैन्य तानाशाह सत्ता पर काबिज हो जाए और पाकिस्तान में नाममात्र का बचा हुआ लोकतंत्र भी समाप्त हो जाए।
सीरिया की राह पर पाकिस्तान? आर्थिक बदहाली और आतंकवाद का गठजोड़
पाकिस्तान वर्तमान में एक गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है। देश भारी कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है और बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है, जिससे सामाजिक अशांति फैलने का खतरा मंडरा रहा है। इसके साथ ही, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा जैसे अशांत क्षेत्रों में सक्रिय आतंकवादी संगठन, जैसे तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) और इस्लामिक स्टेट-खोरासान प्रांत (ISIS-K), अपनी हिंसक गतिविधियों से देश की सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा पैदा कर रहे हैं। इन आतंकवादी समूहों की बढ़ती ताकत और सरकार की कमजोर पकड़ पाकिस्तान को सीरिया जैसी अराजक स्थिति की ओर धकेल सकती है। आर्थिक संकट और आतंकवाद का यह घातक गठजोड़ सरकार की अक्षमता को और उजागर करेगा, जिससे आम जनता का असंतोष और बढ़ेगा।
भारत की कूटनीतिक चाल: सीमित संघर्ष से पाकिस्तान का विखंडन?
भारत, पाकिस्तान की इस नाजुक स्थिति का लाभ उठाने के लिए एक दीर्घकालिक रणनीति पर काम कर सकता है। पाहलगाम में हुए हालिया आतंकी हमले के बाद भारत ने जिस तरह से सिंधु जल संधि को निलंबित किया और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे कदम उठाए हैं, वह इसी रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है।
भारत का उद्देश्य सीमित सैन्य दबाव बनाए रखना हो सकता है, जिससे पाकिस्तान की पहले से ही चरमरा रही अर्थव्यवस्था पर और दबाव पड़े और उसकी स्थिति और कमजोर हो जाए। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि भारत इस तनाव को तब तक बनाए रख सकता है जब तक कि पाकिस्तान आंतरिक रूप से इतना कमजोर न हो जाए कि वह खुद ही कई टुकड़ों में बंट जाए। यह एक जोखिम भरी रणनीति है, लेकिन यदि सफल होती है तो यह क्षेत्र में शक्ति संतुलन को पूरी तरह से बदल सकती है।
पाकिस्तान के तीन टुकड़े? बढ़ती अलगाववादी मांगें
पाकिस्तान के भीतर कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां लंबे समय से स्वतंत्रता की मांग उठ रही है। बलूचिस्तान, सिंध और खैबर पख्तूनख्वा जैसे प्रांतों में स्थानीय आबादी का एक बड़ा वर्ग पाकिस्तान से अलग होकर अपना स्वतंत्र राष्ट्र बनाना चाहता है। कुछ रिपोर्ट्स यह भी दावा करती हैं कि इन क्षेत्रों पर पाकिस्तान की सरकार का नियंत्रण लगातार कमजोर होता जा रहा है।
यदि इन क्षेत्रों में स्वतंत्रता की मांग और तेज होती है और ये प्रांत एकतरफा स्वतंत्रता की घोषणा करते हैं, तो यह संभावना है कि भारत ऐसा करने वाले पहले देशों में से एक होगा जो उन्हें मान्यता देगा। पाकिस्तान का इस तरह से कम से कम तीन टुकड़ों में बंट जाना दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक परिदृश्य को हमेशा के लिए बदल देगा।
पाकिस्तान के सामने खड़े ये चार संभावित समीकरण देश के भविष्य को लेकर अनिश्चितता और चिंता पैदा करते हैं। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आने वाले दिनों और हफ्तों में कौन सी दिशा लेती है और इस संकटग्रस्त राष्ट्र का भविष्य क्या आकार लेता है।