नई दिल्ली: दक्षिण एशिया के दो परमाणु संपन्न देशों भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में तनाव का माहौल काफी गंभीर हो गया था। लेकिन इसी दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की गुप्त कूटनीति और मध्यस्थता के चलते एक बड़ा युद्ध टल गया। पाकिस्तान सरकार ने इस भूमिका को गंभीरता से लेते हुए ट्रंप को वर्ष 2026 के Nobel Peace Prize के लिए आधिकारिक रूप से नामित किया है।
ट्रंप की मध्यस्थता की सराहना
इस्लामाबाद की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि ट्रंप ने नई दिल्ली और इस्लामाबाद, दोनों से बातचीत की और संघर्षविराम की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पाकिस्तान सरकार के अनुसार, “डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी सक्रिय कूटनीति से इस क्षेत्र को एक विनाशकारी युद्ध से बचा लिया।”
जनरल मुनीर की पहल और वॉशिंगटन मीटिंग
माना जा रहा है कि इस नामांकन की नींव पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर ने रखी थी। कुछ सप्ताह पहले वॉशिंगटन में व्हाइट हाउस के एक गोपनीय सत्र में मुनीर और ट्रंप के बीच मुलाकात हुई। इस बैठक में भारत-पाक तनाव, कश्मीर विवाद और क्षेत्रीय स्थिरता पर चर्चा हुई थी। उसी दौरान मुनीर ने ट्रंप से मध्यस्थता की पेशकश करने का आग्रह किया था।
कश्मीर को लेकर ट्रंप की गंभीरता
पाकिस्तान ने विशेष रूप से ट्रंप के उस रुख की सराहना की है जिसमें उन्होंने कश्मीर मुद्दे को क्षेत्रीय शांति के लिए केंद्रीय माना। पाकिस्तान का कहना है कि जब तक Kashmir Dispute का स्थायी समाधान नहीं होता, तब तक दक्षिण एशिया में शांति संभव नहीं है। ट्रंप ने इस विषय पर दोनों पक्षों से बातचीत को प्राथमिकता दी है।
भारत की चुप्पी, लेकिन रुख स्पष्ट
अब तक भारत सरकार की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। लेकिन diplomatic sources के अनुसार, भारत पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि वह किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं करता और कश्मीर को देश का आंतरिक मामला मानता है। भारत इस पूरी कवायद को अपनी संप्रभुता में हस्तक्षेप मान सकता है।
वैश्विक राजनीति में नया मोड़
पाकिस्तान द्वारा ट्रंप का नामांकन केवल एक प्रतीकात्मक कदम नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अमेरिका की भूमिका को फिर से परिभाषित करने वाला निर्णय माना जा रहा है। इससे भारत-पाक संबंधों में अमेरिका की संभावित geopolitical involvement को लेकर भी नई बहस शुरू हो सकती है। अब सबकी निगाहें नॉर्वे स्थित नोबेल समिति पर हैं क्या वे ट्रंप को एक विश्व शांति दूत के रूप में स्वीकार करेंगी, या यह सिर्फ पाकिस्तान की रणनीतिक चाल बनकर रह जाएगी?