जमशेदपुर : अब फार्मेसी के डिप्लोमा व डिग्री में अध्ययनरत छात्रों एवं शिक्षकों को आधारयुक्त बायोमीट्रिक हाजिरी बनानी होगी। यहीं नहीं दवा दुकानों में बैठने वाले फार्मासिस्टों को भी यह हाजिरी बनानी होगी। इससे फर्जीवाड़ा रूकेगा। एक फार्मासिस्ट दो जगह कार्य नहीं कर सकते। इस हाजिरी की निगरानी फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया करेगा। ये बातें रविवार को अर्का जैन यूनिवर्सिटी में आयोजित स्कूल ऑफ फार्मेसी द्वारा आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार के उद्घाटन के बाद फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) के अध्यक्ष डॉ. मोंटू कुमार एम पटेल ने पत्रकारों से कहीं। उन्होंने बताया कि फार्मासिस्ट के छात्रों के स्किल डेवलपमेंट के लिए कई नए कोर्स प्रारंभ किए जा रहे हैं। इसमें एआई आधारित व मेडिसिन डिवाइस आधारित कोर्स भी शामिल हैं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप कोर्स को ढाला जा रहा है। उन्होंने कहा कि वे बिहार-झारखंड के दौरे पर पहली बार आए हैं।
झारखंड में पीपीआर लागू
पीसीआइ के अध्यक्ष ने झारखंड में फार्मेसी प्रैक्टिस रेगुलेशंस (पीपीआर) स्वत: लागू है। उन्होंने कहा कि जब कोई भी नियम केंद्र बनाती है और राज्य उसे तीन साल तक अधिसूचित नहीं करती है, तो चौथे साल नियम स्वत: लागू हो जाता है। यही झारखंड की स्थिति है। यानी झारखंड में पीपीआर लागू है।
चार स्किल सेंटर की होगी स्थापना
डॉ. मोंटू कुमार एम. पटेल ने कहा कि फार्मेसी में डिप्लोमा एवं डिग्री के छात्रों के इंटर्नशिप के लिए देश के चार जोन में स्किल सेंटर की स्थापना का अनुमोदन प्राप्त हो गया है। ये कहां बनेंगे, अभी तय नहीं है। इसमें कुल 20 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इससे छात्रों को मदद मिलेगी। इसमें छात्रों को प्रशिक्षित भी किया जाएगा। कई तरह की तकनीकी जानकारी इस सेंटर में प्रदान की जाएगी।
कॉलेज व विवि 20 प्रतिशत चेंज कर सकते सिलेबस
डॉ. मोंटू कुमार ने बताया कि नया सिलेबस पूरी तरह फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया ने वर्तमान आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया गया है। इसमें कॉलेज व विवि को 20 प्रतिशत सिलेबस बदलने का अधिकार दिया गया है, लेकिन इसके लिए काउंसिल से अनुमति लेनी होगी। बिना अनुमति के सिलेबस में बदलाव मान्य नहीं होगा।
फार्मा उद्योग को प्रोत्साहित करें राज्य सरकार
पीसीआइ अध्यक्ष डा. मोंटूकुमार ने फार्मेसी में पढ़ रहे विद्यार्थियों एवं इसके भविष्य को देखते हुए झारखंड सरकार फार्मा उद्योगों की स्थापना की दिशा में पहल करें। इससे छात्रों को भी इंटर्नशिप के लिए बाहर नहीं जाना पड़ेगा। प्रायोगिक आवश्यकताएं भी स्थानीय स्तर पर पूरी होगी। उद्योगों की मांग के अनुरूप शैक्षणिक संस्थान अपना कोर्स डिजाइन कर सकते हैं।