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कविता : ‘स्वयं दीप बनना होगा’

by Rakesh Pandey
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कविता : ‘स्वयं दीप बनना होगा’

यदि होती रोशनी अनल से युद्ध क्षेत्र की ओर चलो।
भय से व्यापित नफरत का अंधियार दिखाई देता है।
पूंजी से होता उजियारा, धनिकों के मंदिर चलिए।
गला काट प्रतिस्पर्धा का स्याह दिखाई देता है।
जो इलाज के सौदागर हैं पीड़ा उनकी ग्राहक है।
उपचारों में कर्षित का चीत्कार सुनाई देता है।
ज्ञान बुद्धि विद्या विवेक से युक्त जनों को भी देखा।
उनमें भी आपसी द्वंद्व का नाद सुनाई देता है।

अंधियारा प्रस्थान करे ऐसा कोई उपचार नहीं।
उजियारा आकर बस जाए वह उत्सव करना होगा।
जब तक ज्योति प्रखर है, तब तक ही अंधियारा हारेगा।
हर एक दिए को नित प्रकाश के लिए सतत जलना होगा।
पंक्तिबद्ध बत्तीस दियों से साहचर्य का भाव जगे।
श्रम की माटी से निर्मित ईश्वर को भी बिकना होगा।
पर दुःख कातरता जब उपजे तभी दीप से दीप जले।
तम भीतर की प्रस्थिति है तो स्वयं दीप बनना होगा।

JAYSHANKAR SHARAM

डॉ जय शंकर प्रसाद सिंह, वाराणसी

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