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राज्यपाल ने विश्वविद्यालय और कोचिंग संस्थान नियंत्रण विधेयक आपत्तियों के साथ झारखंड सरकार को लौटाया

राज्य सरकार ने विधानसभा के हालिया मानसून सत्र में शिक्षा क्षेत्र से संबंधित दो अहम विधेयक पारित किए हैं। विश्वविद्यालय विधेयक में कुलपतियों की नियुक्ति में राज्यपाल की भूमिका समाप्त करने का प्रावधान है। दूसरा विधेयक कोचिंग इंस्टीट्यूट के नियमन से संबंधित है। इसके अनुसार : 50 या उससे अधिक बच्चों वाले कोचिंग सेंटरों के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होगा। 1000 या इससे अधिक बच्चों वाले बड़े कोचिंग संस्थानों में फुल टाइम मनोचिकित्सक या काउंसलर रखना बाध्यकारी होगा।

by Reeta Rai Sagar
Santosh Gangwar
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Ranchi : राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने राज्य विश्वविद्यालय विधेयक 2025 और कोचिंग सेंटर नियंत्रण एवं विनियमन विधेयक 2025 पर गंभीर आपत्तियां जताते हुए दोनों प्रस्तावित कानूनों को राज्य सरकार के पास वापस भेज दिया है। राजभवन ने स्पष्ट किया है कि विभिन्न राजनीतिक दलों, छात्र संगठनों और सामाजिक समूहों द्वारा दर्ज कराई गई आपत्तियों का समाधान किए बिना विधेयक अनुमोदन के योग्य नहीं हैं। वर्तमान में दोनों विधेयक उच्च शिक्षा विभाग के पास समीक्षा हेतु लंबित हैं।

सूत्रों के हवाले से कहा है कि मानसून सत्र में सरकार ने शिक्षा व्यवस्था से जुड़े इन दो महत्वपूर्ण विधेयकों को विधानसभा से पारित कराकर राज्यपाल की स्वीकृति के लिए भेजा था। लेकिन विश्वविद्यालय विधेयक 2025 में कुलपतियों की नियुक्ति से संबंधित वह प्रावधान, जिसके तहत राज्यपाल के अधिकार समाप्त करने की बात की गई है, विवाद का मुख्य कारण बन गया। कई सामाजिक संगठनों, विपक्षी दलों और छात्र इकाइयों ने इसे संवैधानिक परंपरा से छेड़छाड़ बताते हुए कड़ा विरोध किया। उनका कहना है कि यह प्रावधान लागू होने पर विश्वविद्यालयों पर सरकार का पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो जाएगा और शैक्षणिक स्वायत्तता प्रभावित होगी।

दूसरी ओर, कोचिंग संस्थान नियंत्रण एवं विनियमन विधेयक 2025 में भी कई ऐसे प्रावधान शामिल हैं, जिन पर आपत्ति दर्ज कराई गई है। विधेयक के अनुसार 50 से अधिक छात्रों वाले कोचिंग संस्थानों को अनिवार्य रूप से रजिस्ट्रेशन कराना होगा और रजिस्ट्रेशन के समय बैंक गारंटी जमा करनी होगी। राज्य व जिला स्तर पर रेगुलेटरी कमेटी गठित करने तथा 1000 से अधिक छात्रों वाले संस्थानों में मनोचिकित्सक नियुक्त करने की बाध्यता भी इसमें शामिल है।


कोचिंग संचालकों का तर्क है कि बैंक गारंटी का बोझ अंततः छात्रों पर ही पड़ेगा, क्योंकि संस्थान इसकी लागत फीस में जोड़ने को मजबूर होंगे। उन्होंने इन प्रावधानों को अव्यावहारिक बताते हुए राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा था।

राजभवन ने सभी पक्षों की आपत्तियों का संज्ञान लेते हुए दोनों विधेयकों को सरकार को दोबारा विचार के लिए लौटा दिया है। ऐसे में इनके कानून का रूप लेने में अब देरी तय मानी जा रही है।

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