मुंबई/जमशेदपुर: टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा की वसीयत को लेकर एक अहम प्रगति सामने आई है। वसीयत में शामिल एकमात्र बाहरी व्यक्ति, जमशेदपुर के मोहिनी मोहन दत्ता, ने अब 588 करोड़ रुपये की संपत्ति स्वीकार कर ली है। इससे वसीयत को कानूनी मान्यता (Probate) दिलाने की प्रक्रिया और भी आसान हो जाएगी।
वसीयत में एकमात्र बाहरी नाम: मोहिनी मोहन दत्ता
रतन टाटा की कुल 3900 करोड़ रुपये की संपत्ति को लगभग 24 लोगों में बांटा गया है। इनमें से सिर्फ 77 वर्षीय मोहिनी मोहन दत्ता टाटा परिवार से बाहर के व्यक्ति हैं। वे कभी ताज होटल्स समूह के निदेशक भी रह चुके हैं।
हाल ही में उन्होंने संपत्ति के मूल्यांकन पर सवाल उठाए थे और दावा किया था कि उनके हिस्से की संपत्ति की वैल्यू उससे कहीं अधिक है। लेकिन वसीयत में शामिल ‘नो कॉन्टेस्ट क्लॉज’ के तहत अगर कोई लाभार्थी वसीयत पर आपत्ति करता है, तो वह अपने सभी अधिकार खो बैठता है। इसके बाद उन्होंने सहमति जता दी।
रेसिड्यूल एस्टेट से मिला 588 करोड़ का हिस्सा
रतन टाटा की वसीयत के अनुसार, रेसिड्यूल एस्टेट में बैंक डिपॉजिट, विदेशी मुद्रा नोट्स, कीमती क्रिस्टल और आर्टिफैक्ट्स शामिल हैं, जिसकी कुल कीमत 1764 करोड़ रुपये आंकी गई है। इसका एक-तिहाई हिस्सा यानी 588 करोड़ रुपये मोहिनी मोहन दत्ता को दिया गया है। इसके अतिरिक्त, उनके पास टाटा कैपिटल के 1 लाख से अधिक शेयर हैं, जिनकी कीमत लगभग 10 करोड़ रुपये है।
कोई टैक्स नहीं लगेगा
भारतीय कानून के अनुसार वसीयत के तहत प्राप्त संपत्ति पर टैक्स नहीं लगता, इसलिए मोहिनी मोहन दत्ता को इस 588 करोड़ रुपये की विरासत पर कोई टैक्स नहीं देना होगा।
जमशेदपुर से शुरू हुई थी रतन टाटा और दत्ता की दोस्ती
मोहिनी मोहन दत्ता और रतन टाटा की मुलाकात जमशेदपुर के टेल्को जीटी हॉस्टल में हुई थी। उस वक्त रतन टाटा की उम्र 25 साल और मोहिनी मोहन की उम्र 13 साल थी। यहीं से उनकी दोस्ती शुरू हुई।
बाद में रतन टाटा ने मोहिनी को मुंबई बुलाया और उनकी फंडिंग से एक ट्रैवल एजेंसी शुरू करवाई, जो बाद में टाटा कैपिटल में विलीन हो गई। इसी एजेंसी को ताज ग्रुप के ट्रैवल कामकाज भी सौंपे गए। मोहिनी दत्ता 2019 तक ताज ग्रुप के निदेशक रहे। बाद में यह एजेंसी थॉमस कुक को बेच दी गई।
रतन टाटा के साथ 60 साल पुराना रिश्ता
मोहिनी मोहन दत्ता ने एक मीडिया इंटरव्यू में बताया था कि रतन टाटा ने उन्हें जीवनभर सहयोग दिया और उनका मार्गदर्शन किया। वे कोलाबा स्थित ‘बख्तावर’ निवास में रतन टाटा के साथ ही रहते थे। उनकी बेटी भी ताज ग्रुप में कार्यरत थी।
रतन टाटा की वसीयत में उनका नाम सामने आने के बाद यह खबर चौंकाने वाली जरूर थी, लेकिन उनके 60 वर्षों के रिश्ते की गहराई को दर्शाती है। रतन टाटा की वसीयत में मोहिनी मोहन दत्ता को मिला यह हिस्सा न केवल एक गहरे संबंध का प्रमाण है, बल्कि यह भी दिखाता है कि रतन टाटा ने अपने जीवन में रिश्तों को कितनी अहमियत दी। अब इस सहमति के बाद वसीयत को कोर्ट से मान्यता मिलने में कोई अड़चन नहीं रहेगी।