RANCHI: राज्य के सबसे बड़े सरकारी हॉस्पिटल रिम्स में व्यवस्था पूरी तरह से बेपटरी हो चुकी है। ये हम नहीं कह रहे बल्कि वहां की स्थिति बयां कर रही है। तीन दिन पहले रिम्स का निरीक्षण हाईकोर्ट के वकीलों की टीम ने किया था। इसके बाद टीम ने अपनी रिपोर्ट हाईकोर्ट को सौंप दी है। रिपोर्ट ने ट्रॉमा सेंटर सह सेंट्रल इमरजेंसी की बदहाली को उजागर कर दिया है। टीम ने हॉस्पिटल के दौरे के बाद जो रिपोर्ट सौंपी है, उससे स्पष्ट है कि इमरजेंसी चिकित्सा सेवाओं के नाम पर यहां सिर्फ खानापूर्ति हो रही है। रिपोर्ट के अनुसार, ट्रॉमा सेंटर में मरीजों के इलाज के लिए बेड के पास लगाए गए मॉनिटर्स सिर्फ शो-पीस बनकर रह गए हैं। अधिकांश मॉनिटर्स कनेक्टेड ही नहीं हैं। जिससे कि मरीजों का बीपी,पल्स और आक्सीजन की मॉनिटरिंग ही नहीं हो पा रही है।
कागज की पर्ची पर मंगा रहे दवा
इसके अलावा ट्रॉमा सेंटर में बुनियादी दवाओं और संसाधनों की भारी कमी देखी गई। मरीजों को जरूरी दवाएं अस्पताल से नहीं मिल पा रही हैं, जिससे परिजनों को बाहर जाकर दवाइयां खरीदनी पड़ती हैं। डॉक्टर कागज की पर्ची पर दवाएं लिखकर दे रहे हैं और मरीज के परिजन भाग-दौड़ कर बाहर से दवाएं ला रहे हैं। ऐसे में गंभीर रूप से बीमार मरीजों के इलाज में अनावश्यक विलंब हो रहा है। जबकि डॉक्टर अगर कोई दवा बाहर से मंगाते है तो दवा के लिए हॉस्पिटल की पर्ची पर लिखने का निर्देश दिया गया है। लेकिन इसका पालन नहीं किया जा रहा है।

टेस्ट रिपोर्ट के लिए लंबा इंतजार
निरीक्षण के दौरान यह भी सामने आया कि एबीजी टेस्ट, जो कि गंभीर मरीजों के इलाज में अत्यंत जरूरी होता है, उसके लिए भी लंबा इंतजार करना पड़ता है। ट्रॉमा सेंटर जैसी आपातकालीन इकाई में इस तरह की देरी मरीज की जान जोखिम में डाल सकती है। कई मरीजों ने बताया कि सुबह में सैंपल देने के बाद भी शाम में रिपोर्ट के लिए आने को कहा जाता है।
इंचार्ज ने नहीं दी सही जानकारी
इमरजेंसी वार्ड में बेड की संख्या को लेकर भी भ्रम की स्थिति बनी रही। निरीक्षण के दौरान टीम को स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई कि कुल कितने बेड उपलब्ध हैं और कितने बेड पर मरीज भर्ती हैं। हालांकि क्रिटिकल केयर के प्रभारी ने टीम को बताया कि हमारे पास 110 बेड है। लेकिन नर्स ने बताया कि 84 बेड फंक्शनल है। जिससे अस्पताल प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे है।
12 अगस्त को होनी है एचसी में सुनवाई
इस निरीक्षण के बाद हाईकोर्ट को सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि रिम्स की वर्तमान स्थिति इमरजेंसी सर्विस की मूल अवधारणा के विपरीत है। यह मरीजों के अधिकारों और जीवन रक्षा के संवैधानिक दायित्वों का उल्लंघन है। बता दें कि हाईकोर्ट पहले ही सख्त रुख अपना चुका है और रिपोर्ट के आधार पर 12 अगस्त को सुनवाई होगी। वहीं 11 अगस्त को रिम्स को एफिडेविट जमा करने को कहा गया है।