Palamu: पलामू के मेदिनीनगर वन प्रमंडल (MFD) द्वारा लोएंगा संरक्षित वन क्षेत्र में एक बड़ा जलाशय तैयार किया गया है, जिसमें इस समय 12 से 13 फीट गहराई तक पानी मौजूद है। इस सफल परियोजना के पीछे डिवीजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (DFO) सत्यम् कुमार का हाथ है, जिन्होंने ‘जीवित डाउनस्ट्रीम’ को ध्यान में रखते हुए साइट का सटीक चयन किया।
वन विशेषज्ञों की मानें तो इस प्रकार के जलाशय तभी सफल होते हैं जब उनके निर्माण से पहले स्थल चयन, अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम की मौजूदगी, आसपास की वनस्पति आदि का सटीक सर्वेक्षण किया जाए। लोएंगा जलाशय इसी सिद्धांत पर आधारित है, जहां साधारण नियमों और वर्षा जल प्रबंधन की वैज्ञानिक विधियों का सही संयोजन हुआ है।
कम लागत में टिकाऊ निर्माण
वन रोपण रेंजर अजय टोप्पो ने बताया, हमारे DFO सत्यम् कुमार ने हमें इस जलाशय के निर्माण की पूरी आज़ादी दी और हमने उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने की भरपूर कोशिश की।
इस जलाशय की अनुमानित लागत महज 7 लाख रुपये है, जो कि ग्रामीण विकास योजनाओं के तहत बनने वाले सामान्य जलाशयों की तुलना में तीन गुना कम है। सामान्यतः ऐसे जलाशयों की लागत 20 से 25 लाख तक होती है।
इस जलाशय में मिट्टी क्षरण को रोकने की भी व्यवस्था की गई है, जिस के लिए पत्थर और बोल्डर की पिचिंग की गई है और इन बोल्डरों को मज़बूत करने के लिए इनके आसपास घास उगाई गई है। हालांकि, पूरे पिचिंग क्षेत्र में और अधिक घास लगाना अभी बाकी है।
पत्थर माफियाओं के खिलाफ DFO की सख्ती
DFO सत्यम् कुमार का मानना है कि अत्यधिक पत्थर खनन से भूमिगत जल स्तर पर गंभीर असर पड़ा है। मुनाफे की होड़ में पत्थर माफियाओं ने कई क्षेत्रों में जलस्तर को नुकसान पहुंचाया है।
कुछ महीने पहले DFO कुमार ने छत्तरपुर क्षेत्र में अवैध पत्थर खनन के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की थी, जिसमें वनकर्मियों पर भीड़ ने हमला कर दिया था। इसमें पांच वनकर्मी घायल हो गए थे और उन्हें रात में ही MMCH डाल्टनगंज में भर्ती कराया गया था।
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) ने इस मामले का स्वतः संज्ञान लिया। हैरानी की बात यह है कि घायल वनकर्मी अब खुद पुलिस जांच के घेरे में हैं, जबकि असली गुनहगार खुले घूम रहे हैं।
जलाशय के इर्द-गिर्द वन्यजीवों और वनस्पति का विकास
यह जलाशय नीलगायों का पसंदीदा स्थल बन गया है। वन कार्यालय के वॉचर अयोध्या यादव ने बताया, “शाम होते ही यहां पानी पीने के लिए नीलगायों के झुंड आ जाते हैं।”
ग्रामीणों के मवेशी भी यहां पानी पीते हैं। हालांकि, मछली पालन पर अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है।
जलाशय के पास ही 74 हेक्टेयर में फैला नया पौधारोपण क्षेत्र है, जो अब अपने चौथे वर्ष में प्रवेश कर चुका है। कई पौधे वयस्क की ऊंचाई तक पहुंच चुके हैं और यहां 1 लाख से अधिक पौधे लगे हैं। ग्वावा (अमरूद) और आंवला जैसे पौधों को नीलगायों के कारण नुकसान पहुंचा है, जिससे लगभग 10% पौधों की मृत्यु दर देखी गई है।
सागवान, शीशम और खैर जैसे गैर-चराई वाले पौधों की अधिकता है। समय-समय पर निराई-गुड़ाई की जाती है जिससे पौधों की वृद्धि में सहायता मिलती है।
भविष्य की योजना: जंगलों में और जलाशयों का निर्माण
लोएंगा जलाशय को मात्र तीन से चार महीनों में पूरा कर लिया गया। निर्माण के दौरान किसी प्रकार की कोई अड़चन नहीं आई।
DFO सत्यम् कुमार ने टीम को निर्देश दिया है कि पलामू जैसे वर्षा छाया वाले क्षेत्र में अधिक से अधिक जलाशयों का निर्माण किया जाए, क्योंकि कई किलोमीटर तक फैले जंगलों में पानी का कोई स्रोत नहीं होता। गर्मियों के समय अक्सर हिरण पानी की तलाश में गांवों की ओर आ जाते हैं, जहां वे पालतू कुत्तों के हमले का शिकार बनते हैं।
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