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JMM : बागी हुए जेएमएम के वरीय नेता अशोक मंडल, जयराम की पार्टी जेएलकेएम से किया नॉमिनेशन, निरसा विधानसभा में एकबार फिर बनाएंगे त्रिकोणीय मुकाबला

by Rakesh Pandey
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मनोज मिश्र, धनबाद : अशोक कुमार मंडल एक ऐसा नाम जिन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), दोनों को निरसा विधानसभा में मजबूत बनाया। लालखंड में भाजपा को खड़ा करने में पूरा योगदान दिया। तो जेएमएम की नींव। मजबूत की। अशोक मंडल लगातार छह बार निरसा सीट से विधानसभा चुनाव हारते रहे हैं, लेकिन हौसला पस्त नहीं हुआ है। अशोक मंडल ने सातवीं बार निरसा विधानसभा सीट से जेएमएम से बागी होकर नामांकन के अंतिम दिन मंगलवार को खतिहानी नेता जयराम महतो की पार्टी जेएलकेएम से पर्चा भरा है। हालांकि, उन्होंने अभी तक जेएमएम पार्टी से इस्तीफा नहीं दिया है। अशोक मंडल के निरसा विधानसभा से नामांकन करने से बीजेपी की उम्मीदवार अपर्णा सेनगुप्ता और सीपीआई-माले उम्मीदवार अरूप चटर्जी भी प्रसन्न मुद्रा में हैं। दोनों का दावा है कि अशोक मंडल की दावेदारी से उन लोगों को फायदा होगा। हालांकि, निरसा की जनता के दिल में इसबार क्या है यह तो रब ही जाने लेकिन, निरसा विधानसभा में मुकाबला रोचक हो गया है।

पिछले छह चुनाव से त्रिकोणीय मुकाबला बनाते रहे हैं अशोक

निरसा विधानसभा में त्रिकोणीय मुकाबला होता आया है। इसबार के चुनाव में भी त्रिकोणीय मुकाबला बनने जा रहा है। पहले भी अशोक मंडल तीसरा कौन बनाते थे, इसबार भी बनाएंगे। अशोक मंडल भाजपा के टिकट से साल 2009 में निरसा से विधानसभा चुनाव लड़ा। हालांकि, अशोक मंडल निरसा में कमल खिलाने में असफल रहे। वामपंथी अरूप चटर्जी को 68965 वोट मिले, जबकि अशोक मंडल को 33388 वोट मिले और वे चुनाव हार गए। इस चुनाव में एआइएफबी के टिकट से वर्तमान भाजपा विधायक अपर्णा सेनगुप्ता भी चुनाव लड़ी और वह तीसरे स्थान पर थी और उन्हें 17597 वोट ही मिले थे। दुर्भाग्य, जब विधायक बनने की बारी आई तो अशोक कुमार मंडल ने पाला बदल लिया और झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) में शामिल हो गए। साल 2014 में अशोक कुमार मंडल ने पाला बदल लिया और जेएमएम से चुनावी मैदान में उतरे लेकिन इसबार वह तीसरे स्थान पर खिसक गए। भाजपा के गणेश मिश्रा और अरूप चटर्जी के बीच कांटे की टक्कर में अशोक मंडल को 43329 वोट मिले थे जो कुल मत का 21.56 प्रतिशत था। वहीं भाजपा के गणेश मिश्रा को 25.1 तथा एमसीओ के अरूप चटर्जी को 25.66 प्रतिशत वोट मिले थे। वहीं एआइएफबी के अपर्णा सेनगुप्ता को 11.75 यानी 23633 वोट मिले थे। साल 2019 के चुनाव में अशोक मंडल एकबार फिर जेएमएम के टिकट से चुनाव लड़े और इसबार भी वह तीसरे स्थान पर ही टिके रह गए। अशोक मंडल को 22.3 प्रतिशत 47168 वोट मिले। इसबार, अशोक मंडल झामुमो, भाजपा फिर झामुमो होते हुए जेएलकेएम के हो गए हैं। जेएमएम ने अपने घटक दल भाकपा माले के अरूपी चटर्जी के सीट छोड़ दी तो अशोक मंडल ने पाला बदलते हुए मंगलवार को नामांकन भी कर लिया।

1957 से लेकर साल 2019 तक निरसा पर वामदल का कब्जा

निरसा विधानसभा सीट झारखंड की महत्वपूर्ण विधानसभा सीट है और यह एक सामान्य श्रेणी की विधानसभा सीट है। झारखंड और पश्चिम बंगाल की सीमा पर स्थित धनबाद के निरसा विधानसभा क्षेत्र में वर्ष 1957 से लेकर साल 2019 तक वामदल का कब्जा रहा है। वामदल के प्रत्याशी यहां से विधायक बनते रहे हैं। साल 2019 में पहली बार यहां कमल खिला और भाजपा से अपर्णा सेनगुप्ता विधायक बनीं। साल 2019 के विस चुनाव में भाजपा को निरसा में 42.1 प्रतिशत यानी 89082 वोट मिले थे और अपर्णा सेनगुप्ता विजयी हुई। जबकि, एमसीओ के अरूप चटर्जी सीटिंग विधायक रहते हुए हार गए। अरूप चटर्जी को 30.1 प्रतिशत यानी 63624 मत मिले। तीसरे स्थान पर जेएमएम के अशोक मंडल रहे। जेएमएम के अशोक मंडल को 22.35 प्रतिशत यानी 47168 वोट मिले थे। निरसा के इतिहास की बात की जाए तो कम से कम 2000 के बाद तो गुरुदास चटर्जी, अरूप चटर्जी, अपर्णा सेनगुप्ता के बीच यह सीट बंटती रही। यह अलग बात है कि अशोक मंडल भी निरसा से विधायक बनने की लगातार कोशिश करते रहे, लेकिन अभी तक विधायक नहीं बन पाए है।

इस बार निरसा विधानसभा सीट के परिणाम किस पार्टी के पक्ष में होंगे, यह जनता को तय करना है। लेकिन सच्चाई यह भी है कि निरसा में कई समस्याओं को अबतक तक दूर नहीं किया गया है। केएमसीएल, हार्डकोक सहित कई पुराने उद्योग बंद पड़े हैं। 10 वर्ष से बरबेंदिया पुल का निर्माण अधूरा पड़ा हुआ है। पिछले सात वर्ष से कुमारडूबी ओवर ब्रिज के निर्माण की गति कछुआ चाल जैसी है। मैथन व पंचेत डैम के रहते इलाके को लोगों को पेयजल के संकट से जुझना पड़ा है। रोजगार के अभाव में लोग पलायन करने को विवश हैं।

निरसा विधानसभा क्षेत्र में 3 लाख से अधिक मतदाता है। जिसमें एससी/एसटी मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है। निरसा में 17 प्रतिशत अनुसूचित जाति (एससी) तथा 15 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति (एसटी) के मतदाता हैं। यानी कि 32 प्रतिशत यानी करीब 1.2 लाख एससी/एसटी मतदाता निरसा विधानसभा क्षेत्र में हैं। वहीं निरसा विधानसभा में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 14.4 प्रतिशत यानी करीब 45-50 हजार मतदाता हैं। निरसा विधानसभा में बाउरी की संख्या 8.2 प्रतिशत यानी 25-30 हजार, सिंह मतदाताओं की संख्या करीब 17 हजार, मंडल मतदाताओं की संख्या 16 हजार, महतो 11 हजार, गोराई 10 हजार, रे 8 हजार, यादव 7 हजार, दास 6 हजार, प्रसाद 5 हजार, शर्मा 5 हजार हैं। वहीं निरसा विधानसभा क्षेत्र में मरांडी 7 हजार, मुर्मू 6 हजार, हेम्ब्रम 5 हजार, टुडू 5 हजार तथा मांझी-मुसहर मतदाताओं की संख्या 5 हजार है। जबकि, हांसदा, किस्कू 3-3 हजार मतदाता हैं। इसके अलावा निरसा विधानसभा में भुइयां, गोप, मोदी मतदाताओं की संख्या भी 5-5 हजार है। जबकि, रवानी, कुमार, पासवान, ठाकुर, रविदास आदि कुल 17-20 हजार मतदाता हैं।

प्रत्याशियों के जीत हार का फैसला ग्रामीण वोटरों के हाथ

निरसा विधानसभा में शहरी मतदाताओं की संख्या 38.6 प्रतिशत यानी करीब 1 लाख 30 हजार है तो वहीं ग्रामीण मतदाताओं की संख्या 61.39 यानी करीब 2 लाख है। प्रत्याशियों के जीत हार का फैसला ग्रामीण वोटरों के हाथों रहता है। बीते लोकसभा चुनाव के दरम्यान निरसा के वोटरों ने भाजपा पर अपार स्नेह जताते हुए ढुल्लू महतो के पक्ष में बंपर मत दिया था। निरसा की जनता ने भाजपा को करीब 1 लाख 40 हजार वोट दिया था। ग्रामीण क्षेत्रों में बंपर वोटिंग देखने को मिला, जिसका फायदा भाजपा के पक्ष में गया। वहीं साल 2019 के लोस चुनाव में भी भाजपा को 69 फीसदी यानी 1 लाख 29 हजार के करीब वोट मिला था। जिसका फायदा साल 2019 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को मिला और भाजपा लालखंड निरसा में पहली बार कमल खिलाने में सफल साबित हुआ। भाजपा की अपर्णा सेनगुप्ता ने दो बार निरसा से लगातार विधायक रहे अरूप चटर्जी को रीब 25 हजार मतों के अंतर से हराया। भाजपा को यहां साल 2014 के मुकाबले 17 प्रतिशत वोट भी बढ़ा। साल 2019 विधानसभा चुनाव में भाजपा को निरसा विस क्षेत्र में 42.2 प्रतिशत वोट मिले थे। जबकि, साल 2014 में भाजपा को 25.1 प्रतिशत वहीं, साल 2009 में 21.2 प्रतिशत वोट मिले थे। यहां बता दें कि साल 2014 में भाजपा ने गणेश मिश्रा को टिकट दिया था और उन्होंने एमसीओ के अरूप चटर्जी को कड़ी टक्कर दी थी और महज 1 हजार 35 वोट से हार गए थे। गणेश मिश्रा को 50546 मत मिले जबकि अरूप चटर्जी को 51581 मत मिले थे। वहीं साल 2009 में भाजपा ने अशोक कुमार मंडल को टिकट दिया था और उन्हें 3388 यानी 21.21 प्रतिशत मत मिले जबकि अरूप चटर्जी को 68965 यानी 43.8 प्रतिशत वोट मिले थे।

निरसा की परिस्थितियां अलग, समीकरण अलग

साल 2024 का विधानसभा चुनाव में निरसा की परिस्थिति, समीकरण और जनादेश साल 2019 के मुकाबले में अलग कहा जा सकता है। साल 2019 में राज्य में भाजपा गठबंधन यानी एनडीए की सरकार थी। वहीं वर्तमान में इसबार राज्य में इंडिया गठबंधन की सरकार है। साल 2019 में जहां एमसीओ के टिकट से अरूप चटर्जी चुनावी मैदान में उतरे थे वहीं साल 2024 विस चुनाव में सीपीआइएमएल के टिकट से चुनावी मैदान में हैं। दरअसल, एमसीओ का विलय सीपीआइईएमएल में हो गया है। अरूप चटर्जी बेहद मजबूत स्थिति में हैं और एनडीए के लिए अरूप चटर्जी का तोड़ बड़ी चुनौती है।

एनडीए के लिए अरूप चटर्जी का तोड़ बड़ी चुनौती

इंडिया गठबंधन का निरसा विस से संयुक्त उम्मीदवार यदि अरूप चटर्जी हैं इसलिए, एनडीए के लिए अरूप चटर्जी का तोड़ बड़ी चुनौती है। ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि भले साल 2019 का चुनाव अरूपी चटर्जी हार गए लेकिन अरूप चटर्जी के वोट शेयरिंग में 5 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई। साल 2019 में अरूप चटर्जी को 30 प्रतिशत वोट मिले जबकि साल 2014 में 25.6 प्रतिशत वोट मिले थे। हालांकि, साल 2009 में अरूप चटर्जी को 43.8 प्रतिशत वोट मिले थे। अरूप चटर्जी का लक्ष्य साल 2009 में मिले वोट की बराबरी का है। इसके लिए वे पिछले 5 सालों से निरसा विस क्षेत्र में जहां संगठन को मजबूत करने, कैडर बढ़ाने, युवाओं तथा महिलाओं को अपने पक्ष में करने के जमकर पसीना बहाया है। वहीं वोट शेयरिंग के लक्ष्य को पाने को लेकर समीकरण जुटाने, व्यूह रचना करने से भी पीछे नहीं हैं। निरसा में भाजपा और एमसीओ के बाद जेएमएम का वोटर हैं। इंडिया गठबंधन का संयुक्त प्रत्याशी अरूप चटर्जी हैं, ऐसे में इसबार वोट में बढ़ोतरी सामान्य बात होगी। और यह स्थिति भाजपा के लिए अनुकूल नहीं कहा जा सकता है। वहीं अरूप चटर्जी का दावा है कि उन्होंने अपने क्षेत्र के लिए कई काम किए हैं और आगे भी विकास का काम जारी रखेंगे। यहां बता दें कि अरूप चटर्जी निरसा से लगातार तीन बार विधानसभा पहुंचे हैं। उनके पिता दिवंगत गुरुदास चटर्जी भी यहांं के विधायक रहे।

अपर्णा ने पहली बार धनबाद में खिलाया कमल

निरसा से भाजपा प्रत्याशी व मौजूदा विधायक अपर्णा सेनगुप्ता लाल झंडा से भी साल 2005 में निरसा से विधायक रही हैं। 2005 में वह फॉरवर्ड ब्लॉक से चुनाव जीती थी। पति सुशांतो सेनगुप्ता की हत्या के बाद वह राजनीति में आई। झारखंड में मंत्री भी बनी। साल 2019 के चुनाव से पूर्व अपर्णा सेनगुप्ता ने भाजपा का दामन थामा और भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ीं। उन्होंने मार्क्सिस्ट कोऑर्डिनेशन कमेटी के अरूप चटर्जी को हराया और निरसा में पहली बार कमल फूल खिलाया। इसबार साल 2024 विधानसभा चुनाव में एकबार फिर भाजपा ने भरोसा जताया है।

अब तक के विधायक :

1952 रामनारायण शर्मा, कांग्रेस

1957 लक्ष्मी नारायण मांझी, कांग्रेस

1962 रामनारायण शर्मा, कांग्रेस

1967 निर्मलेंदु भंट्टाचार्य, सीपीआइ

1969 निर्मलेंदु भंट्टाचार्य, सीपीआइ

1977 कृपाशंकर चटर्जी, निर्दलीय

1980 कृपाशंकर चटर्जी, निर्दलीय

1985 कृपाशंकर चटर्जी, कांग्रेस

1990 गुरूदास चटर्जी, मासस

1995 गुरूदास चटर्जी, मासस

2000 गुरूदास चटर्जी, मासस

2000 अरूप चटर्जी, मासस( उपचुनाव)

2005 अपर्णा सेनगुप्ता, फाब्ला

2009 अरूप चटर्जी, मासस

2014 अरूप चटर्जी, मासस

2019 अपर्णा सेनगुप्ता

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