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कचरे में सियासी खुशबू

by Birendra Ojha
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शहरनामा: जमशेदपुर : मानगोवासियों के लिए भले ही कचरे का पहाड़ आफत का सबब बना हो, लेकिन राजनीतिबाजों के लिए यह खुशबू का झोंका लेकर आया है। वर्षों से कूड़ागाह बना मेरीन ड्राइव अपनी बदहाली के आंसू बहा रहा है, लेकिन क्या हुआ आदित्यपुर और बारा है ना। हालांकि, आदित्यपुर और बारा में भी नेतागिरी शुरू हो गई है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि कचरा कहां फेंका जाए। यह हमारी आपकी चिंता है, लेकिन नेताओं की नहीं। नेता कह रहे हैं कि अभी तो एक महीने ही हुए हैं, जब तक इसके लिए युद्ध न हो जाए, तब तक राजनीति का आनंद नहीं। एक-दूसरे पर गंदगी फेंका-फेंकी का दौर शुरू हो गया है। वर्तमान माननीय, पूर्व को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, तो उनके शुभचिंतकों ने तीन जगह धरना दे दिया। इनके अलावा भी कई नेता ज्ञापन-ज्ञापन भी खेल रहे हैं। ऐसे में जनता कन्फ्यूज हो गई है।

मानगो हो गया जाममुक्त!


इन दिनों चर्चा में तो मानगो ही है, चाहे बात कचरे की हो या जाम की। मानगो पुल पर आम हो चुका जाम अब राहत पहुंचा रहा है। इसे फ्लाईओवर का सगुन कहें या विधानसभा चुनाव का परिणाम, लेकिन अब यहां का जाम आम लोगों को उतना नहीं सता रहा है, जितना पहले झेलाता था। चुनाव के बाद विधायक जी का अल्टीमेटम शायद काम आ गया। अब मानगो पुल पर वैसा जाम नहीं लग रहा, जैसा पहले होता था। बस स्टैंड के पास अब ट्रकों को उतनी देर तक पार नहीं कराया जाता है, जैसे पहले होता था। यह तब है, जब फ्लाईओवर बनने से सड़कें संकरी हो गई हैं। अब तो लोग यह भी कह रहे हैं कि फ्लाईओवर की क्या जरूरत है। बस इतना सा काम ही करना था। वैसे पुलिस-प्रशासन ने दुकानों पर खूब डंडे चलाए थे, जो समय बीतते भर जाते हैं।

बाघिन के बाद आया बाघ

झारखंड, खासकर कोल्हान के जंगलों में इन दिनों एक बाघ की चर्चा है, जो पता नहीं कहां से घुस गया है। हाथियों को भगाने के लिए नियुक्त वनकर्मी अब अपनी जान बचाते हुए बाघ को खोजने में लगे हैं। कुछ दिनों पहले तक ओडिशा के सिमलीपाल जंगल से आई बाघिन ने इन कर्मियों को व्यस्त और ग्रामीणों को दहशत में रखा था। एक माह बाद वह पकड़ाई तो सभी ने राहत की सांस ली। उसके जाने के बाद वनकर्मी अभी छुट्टी का प्लान बना रहे थे कि यह बाघ आ गया। पहले पुरुलिया, फिर चांडिल होते हुए सरायकेला में विचरने लगा है। अब वन कर्मियों के हाथ-पैर फूल रहे हैं कि पता नहीं बाघ कहां छिपा बैठा है। हालांकि, खास बात यह है कि बाघ की मौजूदगी से हाथियों को फर्क नहीं पड़ा है। वे पहले की तरह गांव-खेत में अपना निवाला ढूंढ रहे हैं।

धन-धान्य की होगी जांच!

अभी पूरे सूबे में धान की खरीद हो रही है, लेकिन कई जगह अब भी पर्याप्त मात्रा में धान नहीं पहुंच रहा है। हालांकि, इससे प्रशासनिक अमला को कोई फर्क नहीं पड़ता है, वे अपना काम कागज पर कर रहे हैं, उनका टारगेट भी पूरा हो जाएगा। हर साल पूरा हो जाता है, तो इस बार क्यों नहीं होगा। भले ही, किसान धान बेचने आए या नहीं, कोई फर्क नहीं पड़ता। वैसे एक विधायक ने धान क्रय केंद्र का उद्घाटन करते समय कह दिया था कि अब इसका क्या फायदा। किसान तो पहले ही धान बेच चुके हैं। अब किसान टुसु-मकर मनाएंगे कि धान बेचने के लिए केंद्र-केंद्र भटकेंगे। यह बात शायद हाकिम लोग नहीं जानते-समझते। एक बड़े किसान ने तो यहां तक कह दिया था कि झारखंड में जितनी खेती नहीं होती है, उससे ज्यादा सरकार धान खरीद लेती है। क्या इसकी निष्पक्ष जांच होगी।

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