करीब डेढ़ माह से मानगो नगरी गंदगी से जूझ रही है। हालांकि, अब सड़क किनारे कूड़े के उतने ढेर नहीं दिखते, जानते हैं क्यों। कहते हैं कि गंदगी को छिपा लें, तो नहीं दिखती। ऐसा ही हुआ है, अपने यहां। जब गंदगी को लेकर हाय-तौबा मचने लगी। मरने-मारने की बात होने लगी, तो निगम ने नायाब तरकीब ईजाद कर ली। उसने कचरा ढोने वाली सभी गाड़ियों को कूड़े से भर दिया और अपने सामने वाले मैदान में लगा दिया। यही नहीं, अफवाह यह उड़ाई गई कि जो कूड़े उठाए गए थे, उसे पड़ोसी जिले में डंप कर दिया गया है। वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। अब भी कचरों के निस्तारण पर शोध किया जा रहा है। चिंतन-मनन हो रहा है कि कैसे कचड़े को हवा में ही गायब कर दिया जाए।
पहले जहां कूड़ा निस्तारण करना था, वहां राजनीतिक पलीता लगाया जा चुका है।
धुर महाज्ञानी
समाज में एक से बढ़ कर एक ज्ञानी हैं, वह भी राजनीति के क्षेत्र में। ज्ञानी ही नहीं महाज्ञानी भी हैं। जिन्हें ठीक से भाषण देना भी नहीं आता, वे सालाना जलसे में ऐसा ज्ञान बघारते हैं, मानों उन्होंने मनमोन गुरु से दीक्षा ली हो। उन्हें इससे कोई मतलब नहीं होता कि वे किसी की बात को दोहरा-तिहरा रहे हैं। उन्हें तो बस अखबार में अपनी चार लाइन के साथ मुखड़ा दिखाने की चाहत होती है। इसके लिए वे बाकायदा फोन करने से भी नहीं शर्माते। कुछ शर्म के मारे वाट्सएप मैसेज में अनुनय-विनय करते हैं। रुपये-पैसे के मामले में इनका ज्ञान देखकर आपको लगेगा कि अन्यान्य दिनों में आपको गिनती के अर्थशास्त्री नहीं मिलते, अचानक इतने धुर महाज्ञानी कैसे प्रकट हो गए। हालांकि ये पार्टी लाइन से हटकर नहीं बोलते। इनका ज्ञान देखकर समझ में आ जाता है कि इनके दिल में कौन सा झंडा लगा है।
जाम से मिल गई निजात
अपने शहर को इन दिनों जाम से निजात मिल गई है। पहले जिस जाम को लेकर लोग त्राहिमाम करते थे, उसका हल चुटकियों में कैसे हो गया, किसी की समझ में नहीं आ रहा है। फ्लाईओवर का निर्माण शुरू होते ही मानगो पुल से जाम भी समाप्त हो गया है। चुनाव के बाद और खासकर, गणतंत्र दिवस के बाद ऐसा क्या हो गया कि अब पुल पर महाजाम नहीं लग रहा है। शायद आपने गौर नहीं किया हो, अब पुल के पास भारी वाहनों को पार कराने की परंपरा शायद कम या खत्म हो गई है। ऐसे में भारी वाहन भी गुजरते रहते हैं और लोग भी उसी में से रास्ता देखकर निकलते जाते हैं। इससे किसी को अब लंबे समय तक रुकना नहीं पड़ता। ट्रैफिक पुलिस अपने दूसरे मिशन पर ध्यान दे पा रही है। मार्च आने वाला है, टारगेट तो देखना ही पड़ेगा।
सब्जी वसूली हुई तेज
अब तक आपने हफ्ता वसूली सुना होगा, लेकिन नया कारनामा सब्जी वसूली का भी चल रहा है। जब से सब्जियों के दाम बढ़े थे, तब से यह चलन शुरू हुआ था। अब जब सब्जियों के दाम रसातल में पहुंच गए हैं, धंधा बदस्तूर जारी है। पहले आपने भी बाजार में किन्नरों को सब्जी वालों से घूम-घूम कर एकाध सब्जी बोरे में भरते हुए देखा होगा, लेकिन अब कुछ लोग बड़ी गाड़ियों में इसी तरह से सब्जी वसूल रहे हैं। यह देखना चाहते हैं तो डिमना चौक से मानगो चौक तब सड़क किनारे लगने वाली दुकानों का मुआयना दोपहर बाद कर सकते हैं। एक कार जैसी गाड़ी धीरे-धीरे सरकती हुई बढ़ती है, जिसके पीछे एक-दो लोग दुकानों से बिना पूछे सब्जी उठा-उठाकर उसमें रखते जाते हैं। चार-पांच नंबर तक वाहन में ढेर लग जाता है। ऐसा लगता है कि ये सब्जियां किसी होटल या कैंटीन जाती हैं।