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कोलकाता की सड़कों पर नहीं सुनाई देगी टन-टन की आवाज, 151 वर्षों से रहा शहर का गौरव

ट्राम काफी धीमी गति से चलती है। इसको देखते हुए इस बार ममता सरकार ने यह फैसला लिया है कि पूजा के दौरान ट्राम सेवा को नहीं शामिल किया जाएगा।

by Rakesh Pandey
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कोलकाता: पश्चिम बंगाल का महत्पूर्ण त्योहार दुर्गापूजा के शुरू होने में बस कुछ ही समय रह गया है। विभिन्न पूजा पंडालों को देखने के लिए यहां काफी भीड़ होती है। कई राज्यों के अलावा विदेशों से भी लोग कोलकाता में पूजा का लुत्फ उठाते हैं। भीड़ को देखते हुए शासन और प्रशासन दोनों ही कड़ी व्यवस्था रखते हैं। प्रदेश की सीएम ममता बनर्जी की ओर से लोगों को विभिन्न पूजा पंडालों के दर्शन कराने के लिए पहले ट्राम सेवा उपलब्ध करायी थी। इस सेवा से लोगों को सुविधा तो हुई लेकिन प्रशासन की नाक में दम हो गया। इसका कारण यह था कि जैसै-जैसे रात ढलती जाती है, वैसे-वैसे वहां भीड़ बढ़ता ही जाती है। उसके बाद से ट्रैफिक की समस्या उत्पन्न हो जाती है। ट्राम काफी धीमी गति से चलती है। इसको देखते हुए इस बार ममता सरकार ने यह फैसला लिया है कि पूजा के दौरान ट्राम सेवा को नहीं शामिल किया जाएगा। इस फैसले के आने के बाद जानकारों का यह मानना है कि अब कोलकाता की सड़कों पर टन-टन की आवाज नहीं सुनायी देगी। उन लोगों का कहना है कि कोलकाता का 151 वर्षों का गर्व अब विदाई की ओर चल पड़ा है। एक जानकार का मानना है कि दुर्गापूजा के दौरान हेरिटेज ट्राम में यात्रा का आनंद उठाने का सपना इस बार अधूरा रह जाएगा।

जाम की समस्या के कारण उठाया गया यह कदम
पिछले साल यह ट्राम परिक्रमा का हिस्सा थी। राज्य के परिवहन मंत्री स्नेहाशीष चक्रवर्ती ने बताया कि ट्राम की धीमी गति और इसके चलते उत्पन्न होने वाली जाम की समस्या के कारण यह कदम उठाया गया है। इस बार पूजा परिक्रमा में ट्राम की अनुपस्थिति ने ट्राम प्रेमियों और शहर के इतिहास के प्रति चिंताएं बढ़ा दी हैं। अब देखना यह है कि क्या सरकार इस निर्णय पर पुनर्विचार करेगी या ट्राम की विरासत को और पीछे छोड़ देगी।

केवल धर्मतला से खिदिरपुर तक चलेगी ट्राम
शहर में ट्राम के संचालन से जाम की समस्या बढ़ जाती है, खासकर त्योहारों के दौरान। मंत्री ने कहा कि वर्तमान में मेट्रो के बढ़ते उपयोग और ट्राम की धीमी गति के चलते यह निर्णय लेना आवश्यक था। उन्होंने कहा कि इस साल केवल एक रूट पर धर्मतला से खिदिरपुर तक ट्राम चलाने की व्यवस्था की गई है, जबकि बाकी रूट्स पहले से ही बंद हैं।

यह एक अवैज्ञानिक निर्णय है- ट्राम यूजर्स एसोसिएशन के महासचिव
कोलकाता ट्राम यूजर्स एसोसिएशन के महासचिव महादेव ने बताया कि यह एक अवैज्ञानिक निर्णय है और वे सरकार से बात करके इसके हल निकालेंगे। अगर हल नहीं निकलता है तो वे सीधे कोर्ट की शरण में जाएंगे।

ट्राम से न होता है धुआं, न शोर
कार व अन्य गाड़ियों की अपेक्षा भले ही ट्राम की स्पीड कम होती है लेकिन ट्राम से न तो हानिकारक धुआं निकलता है और नही इससे कोई शोर होता है।

कोलकाता की ट्राम यात्रा का इतिहास
इसका इतिहास काफी रोचक है। 24 फरवरी, 1873 को पहली बार ट्राम चलाई गई थी। ट्राम को पहले घोड़ागाड़ी के रूप में चलाया गया। ट्राम को धोड़ो से खींचा जाता था। लेकिन इसे कुछ समय बाद बंद कर दिया गया। 1881 में फिर से शुरू होने के बाद भाप यानी स्टीम से चलाया गया। 1902 में पहली इलेक्ट्रिक ट्राम ने शहर की सड़कों पर रफ्तार भरी। 1930 तक कोलकाता में 300 से अधिक ट्रामें थीं, और 1980 में दैनिक यात्रा करने वालों की संख्या 7.5 लाख तक पहुंच गई। लेकिन 2008 के बाद से यह संख्या घटती चली गई, और आज केवल दो रूट्स पर ट्राम चल रही हैं।

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