Home » तमिलनाडु के CM को रास नहीं आ रही केंद्र की तीन भाषा नीति, हिंदी को बताया क्षेत्रीय भाषाओं के लिए खतरा

तमिलनाडु के CM को रास नहीं आ रही केंद्र की तीन भाषा नीति, हिंदी को बताया क्षेत्रीय भाषाओं के लिए खतरा

965 में तमिलनाडु में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे। डीएमके आज भी दो-भाषा प्रणाली—तमिल और अंग्रेजी—की पैरवी करता है.

by Reeta Rai Sagar
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Follow Now

चेन्नई : तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने हिंदी को लेकर विवाद खड़ा कर दिया है। उनका मानना है कि हिंदी की वजह से क्षेत्रीय भाषाओं पर खतरा मंडरा रहा है। हिंदी की वजह से क्षेत्रीय भाषाएं खत्म हो रही हैं। उनका कहना है कि कई भाषाएं अब ‘जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रही हैं’। केंद्रीय सरकार की तीन-भाषा नीति के प्रति तमिलनाडु के विरोध को दोहराते हुए, उन्होंने राज्य की आधिकारिक भाषाओं के रूप में तमिल और अंग्रेजी को बनाए रखने की अपील की है।

हिंदी क्षेत्रीय भाषाओं की Gasping कर रहा है

एक पोस्ट में स्टालिन ने कई भाषाओं का उल्लेख किया—जैसे भोजपुरी, मैथिली, अवधी, ब्रज, बुंदेली, गढ़वाली, कुमाऊंनी, मगही, मारवाड़ी, मालवी, छत्तीसगढ़ी, संथाली, अंगिका, हो, खड़िया, खोरठा, कुरमाली, कुड़ुख, मुंडारी और कई अन्य—जिन्हें उन्होंने कहा कि हिंदी द्वारा ‘गसपिंग’ किया जा रहा है।

भाषाई नीति को सांस्कृतिक अधिपत्य का रूप बताते हुए, स्टालिन ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को लिखे पत्र में कहा, ‘हिंदी मुखौटा है, संस्कृत छिपा हुआ चेहरा है’। जब उनसे यह सवाल किया गया कि क्या केंद्र की नीतियां एक नई भाषा संघर्ष को बढ़ावा दे रही हैं, तो उन्होंने जवाब दिया, हां, बिल्कुल। हम इसके लिए तैयार हैं। उनके बयान से यह संकेत मिलता है कि डीएमके किसी भी प्रयास को, हिंदी को क्षेत्रीय भाषाओं पर थोपने के खिलाफ खड़ा होने के लिए तैयार है।

राज्य के उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन ने भी इसी प्रकार की चिंताओं को साझा किया और कहा कि हिंदी पहले ही ‘विघटनकारी भाषा’ बन चुकी है। उन्होंने हरियाणवी और राजस्थानी जैसी भाषाओं को उदाहरण के रूप में पेश किया, जो हिंदी के प्रभाव में डूब चुकी हैं और चेतावनी दी कि यदि तमिल भाषा की रक्षा नहीं की गई, तो उसे भी यही स्थिति झेलनी पड़ सकती है।

केंद्र की तीन-भाषा नीति के खिलाफ विरोध

स्टालिन केंद्र की तीन-भाषा नीति के सख्त आलोचक रहे हैं। सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) ने हमेशा हिंदी थोपने का विरोध किया है। बता दें कि 1965 में तमिलनाडु में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे। डीएमके आज भी दो-भाषा प्रणाली—तमिल और अंग्रेजी—की पैरवी करता है, जबकि केंद्र के हिंदी के प्रति बढ़ते दबाव को नकारता है।

बीजेपी ने दिया जवाब
आगे स्टालिन ने कहा कि ‘उत्तर भारत के लोगों को तमिल सीखना चाहिए। जैसे तमिलनाडु के निवासी हिंदी सीखते हैं, जब वे उत्तर के राज्यों में यात्रा करते हैं। यहां बीजेपी ‘बौद्धिक’ सवाल उठाकर अपनी हिंदी निष्ठा दिखा रही है। अगर हिंदी के अक्षर नष्ट हो गए तो उत्तर के राज्यों से आने वाले यात्रियों को स्थानों के नाम कैसे पता चलेंगे? उन्हें उसी तरह सीखने दें, जैसे तमिल उत्तर के राज्यों में जाने पर सीखते हैं’! स्टालिन ने सुझाव दिया। हालांकि, बीजेपी ने कहा कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री तथ्यों और तर्कों को तोड़-मरोड़ रहे हैं और हिंदी की क्षेत्रीय भाषाओं को नष्ट करने के बारे में उनके विचार ‘बेतुके’ हैं।

Related Articles