सेंट्रल डेस्क: बेटियों के अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा बयान दिया है, जिसके तहत कहा गया है कि बेटियों को पढ़ाई के खर्चे के लिए अपने माता-पिता से पैसे मांगने का पूरा अधिकार है। कोर्ट ने अपने बयान में कहा कि वे जरूरत पड़ने पर पढ़ाई का खर्चा देने के लिए अपने माता-पिता को कानूनी तौर पर बाध्य भी कर सकती हैं। उनके माता-पिता अपनी हैसियत के अनुसार, बेटी को पढ़ाई का खर्चा देने के लिए बाध्य होंगे।
तलाक मामले की सुनवाई के दौरान सुनाया फरमान
शीर्ष अदालत ने यह फैसला तलाक के एक मामले की सुनवाई के दौरान सुनाया। दरअसल इस मामले में पति-पत्नी बीते 26 वर्ष से अलग रह रहे थे औऱ बेटी आयरलैंड में पढ़ाई कर रही थी। तलाक के मामले की सुनवाई कोर्ट की बेंच कर रही थी। लड़की ने अपनी मां को दिए जा रहे गुजारा भत्ता के एक हिस्से के रूप में अपने पिता द्वारा पढ़ाई के लिए दिए गए 43 लाख रुपये को लेने से मना कर दिया है।
बेटी होने के नाते मौलिक अधिकार है शिक्षा का खर्च
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि बेटी होने के नाते उसका पूरा अधिकार है कि वो पढ़ाई के लिए पैसे लें, इस अधिकार को खत्म नहीं किया जा सकता है। इस आदेश को कानूनी रूप से लागू किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि हमारा मानना है कि बेटी को शिक्षा जारी रखने का मौलिक अधिकार है।
खर्च उठाने के लिए बाध्य किए जा सकते हैं माता-पिता
कोर्ट ने कहा कि बेटियों की शिक्षा के लिए माता-पिता को अपने वित्तीय संसाधनों की सीमा के भीतर आवश्यक धनराशि प्रदान करने के लिए बाध्य किया जा सकता है। अदालत ने कहा कि लड़की ने अपनी गरिमा का ध्यान रखते हुए इस राशि को लेने से इंकार कर दिया और अपने पिता को पैसे वापस लेने को कहा, लेकिन पिता ने ऐसा करने से इंकार कर दिया। आगे कोर्ट में कहा गया कि बेटी कानून रूप से उन पैसों की हकदार थी। पिता की ओर से बिना किसी कारण के पैसे दिए गए, इससे साबित होता है कि पिता फाइनेंशियली मजबूत है और बेटी को पढ़ाई के लिए मदद करने में सक्षम है।
26 सालों से अलग रह रहे पति-पत्नी
28 नवंबर 2024 को कपल के बीच समझौता हुआ था, जिस पर बेटी के भी सिग्नेचर लिए गए थे। समझौते के तहत पति-पत्नी के बीच कुल 73 लाख रुपये में सेटलमेंट हुआ, जिसमें से 43 लाख रुपये बेटी की पढ़ाई के खर्च के लिए दिए गए थे। कोर्ट ने कहा कि दंपत्ति बीते 26 सालों से अलग रह रहे पति से पत्नी को सेटलमेंट के बाद 30 लाख रुपये भी मिल गए है, ऐसे में कोई कारण नहीं बचता कि दंपत्ति को तलाक न दिया जाए।
कोर्ट ने तलाक की दी अनुमति
कोर्ट ने कहा संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत जोड़े को आपसी सहमति से तलाक देकर विवाह को भंग किया जाता है। अब भविष्य में कोई भी पक्ष न किसी पर केस करेगा और न ही किसी प्रकार का दावा करेगा। पहले भी 2022 में शीर्ष अदालत ने बेटियों के पक्ष में फैसला दिया था।
इस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि यदि कोई व्यक्ति, जो बिना वसीयत लिखे मर गया और उसकी केवल एक ही बेटी हो तो उसकी बेटी को संपत्ति में समग्र अधिकार प्राप्त होगा, न कि परिवार के किसी अन्य सदस्य को यानि की बेटों के साथ-साथ बेटी को भी संपत्ति में अधिकार दिया जाएगा।