नई दिल्ली : भारत में बंधुआ मजदूरी और नाबालिगों की तस्करी के बढ़ते मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ एक बैठक कर एक व्यापक प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश दिया है। इस प्रस्ताव का उद्देश्य बंधुआ मजदूरों, खासकर नाबालिगों की अंतर-राज्यीय तस्करी की समस्या का हल निकालना है।
सर्वोच्च न्यायालय का आदेश
यह आदेश न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने दिया, जिन्होंने उत्तर प्रदेश में रिहा किए गए 5,264 बंधुआ मजदूरों के आंकड़ों पर चिंता व्यक्त की। इनमें से केवल 1,101 को ही तत्काल वित्तीय सहायता मिल पाई थी, जो एक चिंताजनक स्थिति है। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि नाबालिगों को उनके गृह राज्यों से अन्य राज्यों में ले जाकर बंधुआ मजदूरी में मजबूर किया जाता है, जिसे रोकने के लिए एक सुव्यवस्थित प्रणाली की आवश्यकता है। कोर्ट ने कहा, “बच्चों की अंतर-राज्यीय तस्करी को एकीकृत तरीके से निपटाया जाना चाहिए, और इसके लिए केंद्र तथा सभी राज्यों को मिलकर काम करना होगा।”
वित्तीय सहायता का वितरण और समाधान
सुप्रीम कोर्ट ने श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के सचिव को निर्देश दिया है कि वह सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के समकक्ष अधिकारियों के साथ बैठक करें और एक सुसंगत प्रस्ताव तैयार करें, जिसके तहत बंधुआ मजदूरों, विशेषकर नाबालिगों को तत्काल वित्तीय सहायता दी जा सके। इसके अलावा, अदालत ने यह भी सुझाव दिया कि इस प्रक्रिया को सरल और प्रभावी बनाने के लिए एक विशेष योजना बनाई जाए। साथ ही, डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल करते हुए एक अलग पोर्टल की स्थापना पर भी विचार करने को कहा। यह पोर्टल गुमशुदा बच्चों की तरह बंधुआ मजदूरों के लिए भी काम करेगा।
अटॉर्नी जनरल की सहायता और एनएचआरसी की भूमिका
अदालत ने यह भी अनुरोध किया कि अटॉर्नी जनरल इस मामले में सहायता करें और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) को भी प्रक्रिया में शामिल किया जाए। इस कदम से यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि बंधुआ मजदूरी से जुड़े मामले को सही तरीके से निपटाया जाए और मजदूरों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न हो।
अंतर-राज्यीय बंधुआ मजदूरी : राज्य सरकारों की भूमिका
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से यह भी पूछा कि वे बंधुआ मजदूरी रोकने के लिए क्या कदम उठा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के वकील ने बताया कि उन्होंने रिहा किए गए बंधुआ मजदूरों की संख्या और उन्हें दी गई वित्तीय सहायता का डेटा एकत्र किया है, जिसे जल्द ही रिकॉर्ड पर लाया जाएगा। याचिकाकर्ताओं के वकील ने मामले की गंभीरता को उजागर करते हुए कहा कि यह सिर्फ एक राज्य का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह एक अंतर-राज्यीय समस्या है, जहां बिहार के लोगों को उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बंधुआ मजदूरी के लिए ले जाया जाता है।
आगे की सुनवाई और सरकारी कदम
कोर्ट ने कहा कि इस मामले पर अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद होगी, और तब तक केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर बंधुआ मजदूरी और बाल मजदूरी की समस्या को सुलझाने के लिए एक ठोस योजना तैयार करनी होगी। यह आदेश भारत में बंधुआ मजदूरी के खिलाफ लड़ाई को मजबूत करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है, और इससे लाखों नाबालिगों और अन्य श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा हो सकेगी।