देवघर : द्वादश ज्योतिर्लिंग में एक बाबा बैद्यनाथ का दरबार दुनियां का निराला दरबार है। भोलेनाथ से कुछ भी मांग लो, पल में दे देंगे। आपने कभी मांगा ही नहीं तो आप क्या जानेंगे…। एक बार भोला बनकर, भोलेनाथ को एक लोटा जल चढ़ा दो। बेल पत्र लेना भूल गए तब भी कोई बात नहीं। अपने शंभू तो भाव के भूखे हैं।
बाबा मंदिर में महाशिवरात्रि के समय मेला लगता है। मिथिला वासी अपने खेत में उपजे धान की बाली और घर में तैयार घी लाकर बाबा को अर्पित करते हैं। अभी पुरूषोत्तम में उत्तर प्रदेश के भक्त घर से लाए घी में अपने साथ लाए गेहूं का आटा से तैयार रोट पर दाल रखकर बाबा भोला को अर्पित कर रहे हैं। बाबा भोला के बाद वह भैरो बाबा को यह रोट चढ़ाते हैं।
पहला दिन बाबा को चढ़ाते गंगा जल
जैसे भगवान को मनाने का उनके पूजन का अंदाज अलग हो सकता है। परंतु भाव तो पूजा ही होता है। उसी तरह हर अढ़ाई साल में मलमास आता है। जिसे अधिमास या पुरषोत्तम मास कहते हैं। इस समय बिहार के राजगीर में मेला लगा हुआ है।
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के अधिकतर भक्त इस समय आते हैं। अभी आने वाले श्रद्धालु संगम में ही जल भर लेते हैं और बस या ट्रेन से सीधे देवघर आ जाते हैं। तीन दिन वह यहां रूकते हैं। रीवा से आए रामधनी शेखावत कहते हैं कि पहला दिन गंगा जल भोलेनाथ को अर्पित करते हैं। दूसरे दिन रोट चढ़ाते हैं। तीसरे दिन अपना घर लौट जाते हैं।

बोल बम बोलते देवघर की ओर बढते कदम
… और उड़द से बना खिचड़ी खाकर लौट जाते स्वदेस
देवघर में पंडा जी का भी अपना इतिहास है। इनके पास यजमान की पूरी कुंडली होती है। वह एक मिनट में बता देते हैं कि उनके यहां से कौन कौन कब आए बाबा मंदिर आए थे। मृत्युंजय पंडा ने कहा कि वह मलमासी पंडा हैं। उनके तरह और भी सैकड़ों पंडा जी हैं। इनका यजमान इसी समय आते हैं। मृत्युंजंय पंडा ने कहा कि रविवार को उनके यजमान का जत्था यूपी के जिला कौशांबी से चलेंगे। तीन बस से वे लोग आ रहे हैं।
सभी संगम के दशाश्वमेध घाट से जल उठाएंगे। 26 को वह देवघर आ रहे हैं। उनके आने की तैयारी कर रहे हैं। क्योंकि उनके ठहरने का सारा इंतजाम करना होता है। हमेशा मलमास में आते हैं। यहां आने पर तीन दिन रूकते हैं। पहला दिन बाबा को गंगा जल अर्पित करते हैं। दूसरे दिन अपने घर से लाए घी, दाल और आटा से तैयार रोट भैरो बाबा को चढ़ाते हैं। अभी तो अरघा लगा हुआ है नहीं तो ये लोग बाबा को यह स्पर्श कराते ।
इन सबको रोट बनाने के लिए हमलोग सारा सामान व्यवस्था करके देते हैं। इस साल भैरो बाबा को अर्पित करने के बाद मां पार्वती को रोट, दाल अर्पित करेंगे। तीसरे दिन उड़द से बना खिचड़ी बनाएंगे और सभी उसे ग्रहण कर अपने गंतव्य को लौट जाएंगे। पुरूषोत्तम मास में आने वाले श्रद्धालु सारा सामान अपने साथ लाते हैं। अपने घर का लाते हैं। यही गृहस्थ जीवन के साथ तीर्थ यात्रा है।