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करम पर्व में इस बार गांव में 1932 की होगी धूम, 20 हजार से अधिक बहन-भाई मिलकर मनाएंगे प्रकृति पर्व

by Rakesh Pandey
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धनबाद : झारखंड के लोगों के बीच संस्कृति सभ्यता आज भी हिलोरे लेती है, जिनके माध्यम से यहां के लोग आनंदमय जीवन व्यतीत करते हैं। यहां का पवित्र करम पर्व उसी श्रेष्ठ संस्कृति का एक महान आयोजन है। सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं बल्कि सामाजिक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी करम पर्व  प्रकृति धर्म सरना धर्म का श्रेष्ठ पर्व है। इस झारखंडी महापर्व को बचाने के लिए अब झारखंड के युवा आगे आ रहे हैं। यही कारण है कि धनबाद में पहली बार करम परब का वृहद आयोजन होने जा रहा है। टुंडी के नगरीकला उत्तर पंचायत के पहाड़पुर में करम महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। आजाद हिंद क्लब की ओर से यह कार्यक्रम शिव मंदिर परिसर के फुटबॉल ग्राउंड में 24 सितंबर को सुबह 10 बजे से शुरू होगा। नगरी कला उत्तर के पंचायत समिति सदस्य एवं आयोजन समिति के सदस्य अजीत कुमार महतो ने बताया कि इसमें धनबाद एवं गिरिडीह के लगभग 100 से ज्यादा करम की टीम हिस्सा लेगी। विजेताओं को नगद पुरस्कार मिलेगा। 20 से अधिक की आबादी इस करम परब का गवाह बनेगी।

झारखंडी गायक गायिका एवं खोरठा कलाकार होंगे शामिल

अजीत ने बताया कि पूरे झारखंड से लोक गायक गायिका एवं खोरठा कलाकार इस कार्यक्रम में शामिल होंगे। इसमें कई यूट्यूबर भी होंगे जो अपनी कला से इस समय झारखंडी संस्कृति सहज रहे हैं। इनमे प्रमुख तौर पर विक्रम रवानी (खोरठा कलाकार)
सावित्री कर्मकार (सुप्रसिद्ध गायक झारखंड खोरठा कलाकार), उपेंद्र दीवाना, काजल महतो, दीपक महतो, मेघा मंडल, विष्णु देव और बंगाल के भी कई कलाकार शामिल हैं।

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तीन राज्यों में प्रमुखता से बनाया जाता है करम उत्सव

करम झारखंड के आदिवासियों एवं मूल निवासी का एक प्रमुख त्योहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के भादो मास की एकादशी को झारखंड, छत्तीसगढ़ और बंगाल में प्रमुख तौर में बनाया जाता है। करम उत्सव की तैयारी त्योहार से लगभग 10 या 12 दिन पहले हो जाती है। इसमें कई प्रकार के बीज मसलन चावल, गेहूं, मक्का आदि टोकरी में लगाए जाते हैं। जिसे जावा कहा जाता है। इस मौके पर पूजा करके झारखंड के आदिवासी एवं मूलवासी अच्छे फसल की कामना करते हैं। इसके साथ ही बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए प्रार्थना करती हैं। इस अवसर पर उपवास के पश्चात कर्म पेड़ की शाखा को घर के आंगन में रोपेते हैं और करम की डाल की पूजा होती है।

झारखंड के संस्कृति और सभ्यता को बचाने के लिए झारखंड के युवाओं को आगे आना होगा। झारखंड के त्योहार आज विलुप्त होते जा रहे हैं। इसी कड़ी में हम लोगों ने एक आयोजन झारखंड के भाई-बहन के इस पवित्र त्योहार में 1932 करम महोत्सव मनाया जाएगा। इसमें 20 हजार से अधिक लोग और 100 से अधिक टीम हिस्सा लेगी। यह प्रकृति पर्व आदिवासियों और मूलनिवासी का प्रमुख पर्व है।
– अजित कुमार महतो, पंचायत समिति सदस्य नगरीकला उत्तर

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