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आज आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि की पूजा करेंगे चिकित्सक, जानिए कौन थे धन्वंतरि

by Rakesh Pandey
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हेल्थ डेस्क, जमशेदपुर : आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि को माना गया है। इसे लेकर हर साल आयुर्वेद चिकित्सकों की ओर से विशेष आयोजन किया जाता है। इस साल भी शुक्रवार को जमशेदपुर के आयुर्वेद चिकित्सकों की ओर से विशेष पूजा-पाठ सहित अन्य कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। इसे लेकर तैयारी जोर-शोर से चल रही है। परसुडीह स्थित सदर अस्पताल में आयुर्वेद दिवस मनाने का निर्णय लिया गया है। इस मौके पर शहर के सभी चिकित्सक शामिल होंगे। इस दौरान पूजा-पाठ के साथ-साथ आयुर्वेद के प्रति लोगों को जागरूक भी किया जाएगा। इसमें बताया जाएगा कि किस तरह से आयुर्वेद को अपनाकर लोग तमाम बीमारियों से बच सकते हैं।

कौन थे भगवान धन्वंतरि?

धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की विशेष तौर पर पूजा की जाती है। भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक माना जाता है। भगवान विष्णु के 24 अवतार थे। इनमें 12वां अवतार भगवान धन्वंतरि को माना जाता है। एक मान्यता यह भी है कि भगवान धन्वंतरि की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी। वे अमृत कलश लेकर निकले थे। इसी अमृत कलश को लेकर देवताओं व असुरों के बीच संग्राम हुआ था। समुद्र मंथन का प्रसंग भागवत पुराण, महाभारत, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण आदि में उल्लिखित है।

इस तरह प्रकट हुए थे भगवान धन्वंतरि

मान्यताओं के अनुसार, भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन के दौरान हाथ में कलश लेकर प्रकट हुए थे। भगवान धन्वंतरि की चार भुजाएं हैं। ऊपर के एक हाथ में शंख, दूसरे में कलश और नीचे के तीसरे हाथ में जड़ी बूटी और चौथे में आयुर्वेद ग्रंथ है। इस कारण से आयुर्वेद चिकित्सक धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि के जन्मोत्सव के रूप में मनाते हैं।

क्या कहते हैं आयुर्वेद चिकित्सक

जमशेदपुर के जाने-माने आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. नीना गुप्ता कहती हैं कि आयुर्वेद में भगवान धन्वंतरि का एक खास महत्व है। धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि की पूजा करने से सेहत और निरोगी शरीर का आशीर्वाद मिलता है। धनतेरस के दिन मां लक्ष्मी और भगवान कुबेर की पूजा की जाती है। इस दिन भगवान धन्वंतरि की उपासना करने से भी शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

आयुर्वेद के मूल ग्रंथ

दरअसल, भगवान धन्वंतरी ने ही संसार के कल्याण के लिए अमृतमय औषधियों की खोज की थी। दुनियाभर की औषधियों पर भगवान धन्वंतरि ने अध्ययन किया, जिसके अच्छे-बुरे प्रभाव आयुर्वेद के मूल ग्रंथ धन्वंतरि संहिता में बताए गए हैं। यह ग्रंथ भगवान धन्वंतरि ने ही लिखा है। महर्षि विश्वामित्र के पुत्र सुश्रुत ने इन्हीं से आयुर्वेदिक चिकित्सा की शिक्षा प्राप्त की और आयुर्वेद के ‘सुश्रुत संहिता’ की रचना की। यह भी कहा जाता है कि धन्वंतरि के हजारों ग्रंथ थे। उनमें अब केवल धन्वंतरि संहिता ही पाई जाती है। इसे आयुर्वेद का मूल ग्रंथ माना जाता है। आयुर्वेद के आदि आचार्य सुश्रुत मुनि ने धन्वंतरि से ही उपदेश लिया था। चरक ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया।

धनतेरस पर कैसे करें भगवान धन्वंतरि की पूजा

– डॉ. नीना गुप्ता कहती हैं कि धनतेरस के मौके पर भगवान धन्वंतरि का पूजा करने के दौरान विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है।
– धनतेरस पर प्रदोष काल में पूजा का विधान है। इस दिन न सिर्फ धन बल्कि परिवार और अपने आरोग्य रूपी धन की कामना के लिए भगवान धन्वंतरि का पूजन करना चाहिए। अच्छा स्वास्थ्य ही मनुष्य की सबसे बड़ी पूंजी है। धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि की पूजा से सेहत लाभ मिलता है।
– उत्तर-पूर्व दिशा में पूजा की चौकी लगाकर उसपर श्रीहरि विष्णु की मूर्ति या फिर धन्वंतरि देव की तस्वीर स्थापित करें।
– मूर्ति का पूजन कर रहे हैं तो भगवान धन्वंतरि का स्मरण कर अभिषेक करें।
– उत्तम सेहत और रोगों के नाश की प्रार्थना कर ‘ॐ नमो भगवते धन्वंतराय विष्णुरूपाय नमो नमः का 108 बार जाप करें।

भगवान धन्वंतरि को कैसे प्रसन्न करें?

पंडित रामाशंकर तिवारी कहते हैं कि भगवान धन्वंतरि की पूजा विधि विधान के साथ किया जाता है। दीपक जलाने से पूर्व सबसे पहले चावल रखें और उसपर दीपक जलाएं। इसे काफी अच्छा माना गया है। इसके बाद एक कलश में शुद्ध जल लेकर सभी देवताओं को आचमन कराएं और फिर रोली, कुमकुम, हल्दी, गंध, अक्षत, पान, पुष्प, मिष्ठान, फल, दक्षिणा आदि उन्हें अर्पित कर प्रणाम करें और अपने रोगों के नाश की कामना करें। भगवान धन्वंतरि का एक विशेष महत्व होता है।

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