फीचर डेस्क : हिंदू धर्म में गोपाष्टमी का विशेष महत्व है जो हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष गोपाष्टमी आज यानी शनिवार को मनाई जा रही है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा हुआ है और खासकर उनके गायों के प्रति प्रेम को अभिव्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने पहली बार गाय चराना आरंभ किया था और तभी से यह दिन ‘गोपाष्टमी’ के रूप में मनाया जाने लगा।
‘गोपाष्टमी’ का धार्मिक महत्व
‘गोपाष्टमी’ गायों के प्रति भगवान श्रीकृष्ण की विशेष श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक है। श्रीकृष्ण के जीवन में गायों का बहुत महत्व था और उन्हें ‘गोवर्धनधारी’ के नाम से भी पुकारा जाता है। श्रीमद्भागवत के अनुसार भगवान कृष्ण अपने बचपन में गायों के साथ खेले और उनका पोषण किया। वह उन्हें बहुत प्यार करते थे और यह दिवस उनके गाय चराने की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन गाय माता की पूजा से व्यक्ति को सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति होती है, जिससे जीवन में खुशी और शांति बनी रहती है।
‘गोपाष्टमी’ के दिन विशेष रूप से गौ माता की पूजा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और घर में खुशहाली बनी रहती है। इसे विशेष रूप से किसानों, पशुपालकों और उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है, जो गायों और अन्य पशुओं के साथ जुड़ा कार्य करते हैं।
‘गोपाष्टमी’ 2024 का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार गोपाष्टमी की तिथि 8 नवंबर 2024 की रात 11 बजकर 56 मिनट से शुरू होकर 9 नवंबर 2024 की रात 10 बजकर 45 मिनट तक रहेगी। इसके अलावा, पूजा के लिए शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं :
ब्रह्म मुहूर्त : सुबह 4:54 से 5:47 बजे तक
विजय मुहूर्त : दोपहर 1:53 से 2:37 बजे तक
गोधूलि मुहूर्त : शाम 5:30 से 5:57 बजे तक
अभिजित मुहूर्त : सुबह 11:43 से 12:26 बजे तक
इन मुहूर्तों के दौरान विशेष पूजा और आरती का आयोजन किया जाता है।
गोपाष्टमी के दिन की पूजन विधि कुछ इस प्रकार है
प्रातःकाल जल्दी उठें : सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
गाय और बछड़ों का स्नान : इसके बाद, गायों और बछड़ों को स्नान कराना अनिवार्य है। यह पूजा की एक महत्वपूर्ण परंपरा है।
गायों की सजावट : गायों को मेहंदी, रोली और हल्दी से सजाएं। आप उनकी पूजा में फूल, फल, चंदन, अक्षत और धूप-दीप अर्पित कर सकते हैं।
आरती और भोग : गौ माता की पूजा करके उनका आभार व्यक्त करें और अंत में उन्हें हरी घास का भोग अर्पित करें।
घर में पूजा : अगर गाय उपलब्ध नहीं है तो घर के आंगन में गाय के चित्र या मूर्ति को पूजकर भी व्रत किया जा सकता है।
गोपाष्टमी की पूजा और व्रत के पीछे एक प्रसिद्ध कथा भी है, जो भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी हुई है। यह कथा इस प्रकार है:
कहा जाता है कि एक बार जब भगवान कृष्ण 6 वर्ष के हुए, तो उन्होंने अपनी माता यशोदा से कहा, ‘माँ, अब मैं बड़ा हो गया हूं, इसलिए अब मैं बछड़े नहीं, बल्कि गायों को चराने जाऊंगा।’ यशोदा ने इस पर चुपके से नंद बाबा से इस बारे में पूछने का सुझाव दिया। फिर बाल गोपाल नंद बाबा के पास गए और उनसे गायों को चराने की अनुमति मांगी।
नंद बाबा ने पहले कृष्ण को समझाया, लेकिन कृष्ण अपनी बात पर अडिग रहे। नंद बाबा ने उन्हें पंडितजी से शुभ मुहूर्त पूछने के लिए कहा। बाल गोपाल दौड़ते हुए पंडितजी के पास पहुंचे और कहा ‘पंडितजी, नंद बाबा ने आपको गाय चराने का शुभ मुहूर्त देखने के लिए भेजा है, और यदि आप आज के मुहूर्त के बारे में मुझे बता देंगे तो मैं आपको ढेर सारा मक्खन दूंगा।’
पंडितजी ने पंचांग देखकर उसी दिन का समय गायों को चराने के लिए शुभ बताया। इसके बाद नंद बाबा ने कृष्ण को गायों को चराने की अनुमति दे दी। कहते हैं कि उस दिन से ही भगवान श्रीकृष्ण ने गायों को चराना आरंभ किया और यह दिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि था। इसी कारण, इस दिन को ‘गोपाष्टमी’ के रूप में मनाया जाता है।
‘गोपाष्टमी’ का पर्व न केवल भगवान श्रीकृष्ण के साथ जुड़ा है, बल्कि यह हमारी सामाजिक और धार्मिक परंपराओं का भी एक अहम हिस्सा है। यह दिन हमें गायों के प्रति सम्मान और श्रद्धा का पाठ पढ़ाता है। गोपाष्टमी के दिन गायों की पूजा और व्रत करने से जीवन में सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। इस दिन के महत्व को समझते हुए हम सभी को इस पवित्र अवसर पर गाय माता की पूजा करके आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।