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‘टाइगर मैन’ वाल्मिक थापर नहीं रहे—बाघों के साथ बिताए 50 वर्षों का सफर समाप्त…

by Neha Verma
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भारत के मशहूर वन्यजीव विशेषज्ञ और बाघ संरक्षण के लिए समर्पित वाल्मिक थापर का आज 73 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वह लंबे समय से कैंसर से जूझ रहे थे और दिल्ली स्थित अपने घर पर उन्होंने अंतिम सांस ली। उन्होंने करीब 50 साल बाघों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए काम किया।

वाल्मिक थापर कौन थे?

वाल्मिक थापर का जन्म 1952 में दिल्ली में हुआ था। उनका परिवार शिक्षा और लेखन से जुड़ा हुआ था। उनके पिता रोमेश थापर एक प्रसिद्ध लेखक थे और इतिहासकार रोमिला थापर उनकी चाची हैं। वाल्मिक ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफन कॉलेज से पढ़ाई की।

1976 में राजस्थान के रणथंभौर में फतेह सिंह राठौड़ से मिलने के बाद उनका जीवन बदल गया और उन्होंने बाघों के लिए काम करना शुरू किया।

बाघों के लिए समर्पण

वाल्मिक थापर ने अपनी ज़िंदगी के 50 साल बाघों के साथ बिताए। उन्होंने राजस्थान के रणथंभौर नेशनल पार्क में लंबे समय तक काम किया। उन्होंने बाघों के व्यवहार, जीवन और उनके पर्यावरण पर गहरी समझ बनाई और कई किताबें लिखीं।

प्रमुख योगदान

  • 30 से ज्यादा किताबें लिखीं, जिनमें ‘द सीक्रेट लाइफ ऑफ टाइगर्स’ बहुत मशहूर है।
  • BBC की डाक्यूमेंट्री ‘लैंड ऑफ द टाइगर’ में उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई।
  • उन्होंने रणथंभौर फाउंडेशन की स्थापना की जो लोगों और बाघों के बीच संतुलन पर काम करता है।
  • सरकार की कई टाइगर प्रोजेक्ट कमेटियों में शामिल रहे।
  • उन्होंने जंगल पर्यटन को भी बढ़ावा दिया, ताकि लोग बाघों को समझ सकें और उन्हें बचाने के लिए प्रेरित हों।

अंतिम विदाई

उनका अंतिम संस्कार दिल्ली के लोधी श्मशान घाट में किया गया। देशभर से नेता, पर्यावरणविद और आम लोग उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि “वाल्मिक जी ने बाघों के लिए जो किया है, वो हमेशा याद रखा जाएगा।”

वाल्मिक थापर का जीवन बाघों के प्रति प्रेम और समर्पण की मिसाल है। उनका जाना वन्यजीव संरक्षण क्षेत्र के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है। लेकिन उनकी किताबें, डॉक्यूमेंट्री और काम आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बने रहेंगे।

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