चाईबासा: नौ दिनों से चल रहे दुर्गोत्सव के समापन की घड़ी आ गई है। विजयादशमी के अवसर पर पश्चिमी सिंहभूम जिला में पारंपरिक सिंदूर खेला का आयोजन किया गया। इस दौरान बड़ी संख्या में महिलाएं और युवतियां पारंपरिक परिधानों में शामिल हुईं।
मां दुर्गा को अर्पित करने के बाद एक-दूसरे को लगाया सिंदूर
सिंदूरखेला अनुष्ठान के तहत सबसे पहले मां दुर्गा की प्रतिमा को सिंदूर अर्पित किया गया। इसके बाद महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर खुशियों का आदान-प्रदान किया। बता दें कि इस दिन मां दुर्गा की प्रतिमा के विसर्जन की परंपरा होती है। पूजा के समापन से पहले विवाहित महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं और फिर आपस में सिंदूर खेला करती हैं।
सिंदूर खेला: मां दुर्गा की विदाई का प्रतीक
विवाहित महिलाएं मां दुर्गा की प्रतिमा के माथे और पांव पर सिंदूर अर्पित करती हैं। यह मां दुर्गा को विदाई देने का एक प्रतीक होता है। इसके बाद महिलाएं मां दुर्गा से लंबी उम्र, सुखी वैवाहिक जीवन और अपने परिवार की रक्षा का आशीर्वाद मांगती हैं। विवाहित महिलाओं द्वारा सिंदूर लगाने का अर्थ है अपने वैवाहिक जीवन में सौभाग्य, लंबी आयु और खुशियों की कामना करना।
सिंदूर खेला: बांग्ला समाज की एक विशेष परंपरा
पश्चिमी सिंहभूम जिले के चक्रधरपुर और चाईबासा में बड़ी संख्या में बांग्ला समाज के लोग रहते हैं। यही कारण है कि यहां सिंदूर खेला एक विशेष परंपरा है, जिसे हर साल विजयादशमी के दिन मां दुर्गा की विदाई से पहले निभाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह अनुष्ठान परिवार में सुख-शांति, सौभाग्य और समृद्धि लाता है।
एक ही तरह की साड़ी पहन पहुंची महिलाएं
चाईबासा मां दुर्गा के मंदिर और चक्रधरपुर के बंगाली एसोसिएशन दुर्गा मंदिर में विजयदशमी (दशहरा) दुर्गा पूजा का अंतिम सिंदूर खेला हुआ। चाईबासा में काफी धूमधाम से महिलाएं सिंदूर खेलती नजर आई। सभी महिलाओं एक ही रंग की साड़ी में सिंदूर खेला की परंपरा निभाई।
घट विसर्जन के दौरान जमकर झूमे लोग
चाईबासा में दुर्गा पूजा के अंतिम दिन श्रद्धालुओं ने धूमधाम से मां दुर्गा की घट का विसर्जन किया। गाजे बाजे की धुन पर नाचते-गाते श्रद्धालु नदी पहुंचे, जहां विधिवत पूजा-अर्चना के बाद घट विसर्जित किया गया। इस दौरान भक्तिमय माहौल में श्रद्धालुओं ने अपनी भावनाएं व्यक्त कीं।