सेंट्रल डेस्क : ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 को उसके मौजूदा स्वरूप में पेश करने को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार चेतावनी दी। ओवैसी ने लोकसभा में अपने भाषण के दौरान कहा कि इससे ‘देश में सामाजिक अस्थिरता’ पैदा होगी।
एएनआई के अनुसार, हैदराबाद के सांसद ओवैसी ने कहा ‘मैं सरकार को सावधान करते हुए चेतावनी दे रहा हूं कि यदि आप वर्तमान स्वरूप में वक्फ कानून लाते हैं तो यह अनुच्छेद 25, 26 और 14 का उल्लंघन होगा। इससे देश में सामाजिक अस्थिरता पैदा होगी। पूरे मुस्लिम समुदाय ने इसे खारिज कर दिया गया है। इससे वक्फ की कोई संपत्ति नहीं बचेगी, कुछ भी नहीं बचेगा’। उन्होंने यह भी कहा कि आप भारत को ‘विकसित भारत’ बनाना चाहते हैं, हम भी ‘विकसित भारत’ चाहते हैं। लेकिन इस तरह आप इस देश को 80 और 90 के दशक में वापस ले जाना चाहते हैं, यह आपकी जिम्मेदारी होगी।
मैं अपनी मस्जिद का एक इंच भी नहीं खोऊंगा: ओवैसी
ओवैसी ने कहा कि ‘एक गौरवान्वित भारतीय मुस्लिम के रूप में, मैं अपनी मस्जिद का एक इंच भी नहीं खोऊंगा… मैं अपनी दरगाह का एक इंच भी नहीं खोऊंगा। मैं इसकी इजाजत नहीं दूंगा। अब हम यहां आकर और कूटनीतिक बातचीत नहीं करेंगे’। यही वह सदन है, जहां मैं खड़े होकर ईमानदारी से अपने समुदाय के लिए बोलूंगा। हम सभी को भारतीय होने पर गर्व है। यह हमारी संपत्ति है, किसी ने इसे हमे नहीं दी है। आप इसे मुझसे नहीं छीन सकते। वक्फ मेरे लिए इबादत का एक रूप है।
विपक्षी सांसदों ने वक्फ विधेयक रिपोर्ट पर असहमति नोट हटाने का किया विरोध
विपक्षी सांसद कल्याण बनर्जी और मोहम्मद नदीमुल हक ने सोमवार को वक्फ (संशोधन) विधेयक पर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को सौंपे गए अपने असहमति नोटों के प्रमुख हिस्सों को कथित तौर पर हटाए जाने का विरोध किया। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को संबोधित पत्र में सांसदों ने आरोप लगाया कि उनकी आपत्तियों को बिना किसी पूर्व सूचना या स्पष्टीकरण के मनमाने ढंग से हटा दिया गया।
एएनआई ने सांसदों के पत्र के हवाले से कहा, ‘हमारी निराशा और आश्चर्य के लिए, हमने पाया कि निम्नलिखित उद्देश्यों और असहमति नोटों को अध्यक्ष द्वारा हमें सूचित किए बिना और हमारी सहमति के बिना हटा दिया गया है’। वक्फ (संशोधन) विधेयक के मसौदा रिपोर्ट को 14 सदस्यों के पक्ष में और 11 सदस्यों द्वारा विपक्ष में मंजूरी दिए जाने के बाद प्रस्तुत असहमति नोट में समिति की कार्यवाही और सिफारिशों की आलोचना की गई।
बनर्जी और हक ने आरोप लगाया कि समिति के निष्कर्ष पक्षपातपूर्ण और पूर्व नियोजित थे। पत्र में कहा गया है, ‘टिप्पणियां या सिफारिशें, चेयरपर्सन और सत्तारूढ़ दल के सदस्यों के पूर्वकल्पित प्रस्तावों और विचारों का एक स्पष्ट उदाहरण हैं’।
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