नई दिल्ली : महाराष्ट्र में नाटकीय घटनाक्रम के बीच अजित पवार डिप्टी चीफ मिनिस्टर बन गये. विपक्षी एकता के बड़े चेहरे के रूप में उभरे शरद पवार के सामने अब अपनी पार्टी बचाने की चुनौती है. राजनीतिक विश्लेषक इसे भाजपा का मास्टर स्ट्रोक मान रहे हैं. कयास लगाये जा रहे हैं कि पार्टी की रणनीति से महाराष्ट्र में वोट प्रतिशत का फायदा मिल सकता है.
दावा यह भी किया जा रहा है कि सियासी उठापटक का अगला ठिकाना बिहार हो सकता है. बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी के एक ट्वीट के बाद राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गयी है.
सुशील मोदी ने अपने ट्वीट में क्या कहा
भाजपा सांसद सुशील मोदी ने अपने ट्वीट में दावा किया है कि जिस तरह का विद्रोह एनसीपी में हुआ, वैसा ही बिहार में भी संभव है. सुशील मोदी ने एनसीपी में टूट को पटना में 23 जून को हुई विपक्षी दलों की बैठक का परिणाम करार दिया है. सुशील मोदी ने कहा है कि राष्ट्रीय जनता दल व जनता दल यूनाइटेड के अलावा अन्य विपक्षी दलों के बीच गठबंधन होने के बाद आगामी लोकसभा चुनाव में जेडीयू के कई सांसदों के टिकट कट सकते हैं. इससे पार्टी में महाराष्ट्र के एनसीपी की तरह ही विद्रोह संभव है.
बिहार में राजनीतिक उलटफेर के कयासों को क्यों मिल रही हवा
पिछले तीन-चार दिनों के घटनाक्रम पर गौर करें बिहार की राजनीति में एक अलग तरह की हलचल है. एक तरफ जहां जदयू अपने विधायकों को नये सिरे से साधने में जुटी है, वहीं दूसरी तरफ आरजेडी के नेता सभी मुद्दों पर बिल्कुल संभल कर बोल रहे हैं. भाजपा एक साथ दो मोर्चे पर सरकार को घेरने की तैयारी में हैं.
विधानसभा के मानसून सत्र में शिक्षक बहाली की प्रक्रिया में स्थानीयता का बड़ा मुद्दा विपक्षी दल भाजपा के हाथ लग गया है. वहीं दूसरी तरफ केंंद्रीय स्तर पर विपक्षी एकता की कवायद में जदयू के मौजूदा सांसदों को होने वाले संभावित नुकसान की आशंका को हवा दी जा रही है. 23 जून को विपक्षी दलों की बैठक के बाद भाजपा का शीर्ष नेतृत्व रेस है.
गुजरात, उत्तर प्रदेश व असम को छोड़कर अन्य सभी राज्यों में जहां-जहां विपक्षी एकता से नुकसान होने की आशंका है, वहां की एक-एक सीट को साधने की तैयारी है. एनडीए का कुनबा बढ़ाने पर जोर दिया रहा है.
भाजपा की हर चाल बिल्कुल रणनीति के अनुसार
राजनीति शास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राजेंद्र भारती बताते हैं कि बिहार में भाजपा के रणनीतिकारों की टीम दो लाइन पर काम कर रही है.
पहली स्ट्रेटेजी – भाजपा की स्ट्रेटेजी टीम इस एंगल पर काम कर रही है कि अगर संभव हो तो लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर नीतीश कुमार व उनकी पार्टी को एनडीए का हिस्सा बना लिया जाए. इससे विपक्षी एकता का पूरा मंच बिखर जायेगा. इस बात को तब और बल मिलता है जब पिछले 29 जून को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह लखीसराय पहुंचे.
उन्हें इस बात को बिल्कुल नहीं दोहराया कि नीतीश कुमार के लिए एनडीए के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं. बिहार में महागठबंधन की सरकार गठन के 10 माह के भीतर गृहमंत्री ने चार जनसभाएं की. सभी जनसभा में उन्होंने नीतीश कुमार पर सीधा हमला बोला था.
लखीसराय की जनसभा में अमित शाह भ्रष्टाचार को मुद्दा बना कर यह कह गये कि सत्ता पाने के लिए नीतीश कुमार ने ऐसे लोगों के साथ गठबंधन कर लिया, जिन पर करीब 20 लाख करोड़ रुपये के घोटाले के आरोप हैं. भ्रष्टाचार का मुद्दा उछाल कर एक बार फिर नीतीश कुमार की कथाकथित अंतरात्मा की आवाज को जगाने की कोशिश सोंची समझी रणनीति के तहत की गयी.
दूसरी स्ट्रेटेजी- अगर नीतीश कुमार अपनी जिद पर अड़े रहते हैं, किसी कारण से वे एनडीए का हिस्सा बनने से इंकार कर देते हैं. ऐसे में उन्हें महाराष्ट्र की घटना की पुनरावृत्ति होने के नाम पर अपना दल बचाने के प्रयास में फंसाये रखना है. इससे वह पूरा विपक्ष समेटने की बजाय पहले अपना घर बचाने में लगे रहेंगे.
अगर नीतीश नहीं टूटते हैं तो राजनीति अस्थिरता के बीच जदयू में कोई बड़ी टूट हो जाये. वह एनडीए का हिस्सा बन जाएं. सुशील कुमार मोदी के ट्वीट को इसी संदर्भ में देखा जा सकता है. इसका असर भी दिख रहा है. महाराष्ट्र की घटना से सबक लेते हुए तत्काल नीतीश कुमार ने अपने कुनबे को बचाने का प्रयास शुरू कर दिया है.
सभी विधायक व सांसदों के एक वन टू वन बातचीत कर रहे हैं. पार्टी में टूट नहीं हो, इसे लेकर हर एंगल पर बात हो रही है. सूत्रों के अनुस बातचीत में दोनों ऑप्शन पर विधायक व सांसदों की राय मांगी गयी. एनडीए में शामिल होने के साथ ही विपक्षी एकता का चेहरा बने रहने पर होने वाले नफा-नुकसान का पूरा खाका तैयार किया गया.
मुफीद समय का किया जा रहा इंतजार
सूत्रों के अनुसार फिलहाल आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद का परिवार लैंड फॉर जॉब घोटाला और आईआरसीटीसी घोटाला में फंसा हुआ है. इन दोनों मामलों में जांच एजेंसियों की कार्रवाई तेज हो चुकी है. इससे पूर्व तेजस्वी यादव इस मामले में सीबीआई के समक्ष प्रस्तुत हो चुके हैं. जिस प्रकार से बिहार के घटनाक्रम बदल रहे हैं,
उसमें राजनीतिक पंडित यह कयास लगा रहे हैं कि हो सकता है कि आने वाले दिनों में केंद्रीय जांच एजेंसी तेजस्वी यादव को भ्रष्टाचार के मामले में अपने शिकंजे में ले ले. जिसके बाद यह सबसे मुफ़ीद समय होगा, जब नीतीश कुमार को भ्रष्टाचार के विरोध में अंतरात्मा की आवाज सुन कर एनडीए का हिस्सा बनाया जा सके.
हालांकि राजनीति में कब क्या होगा. इसकी 100 फीसद सटीक भविष्यवाणी कोई नहीं कर सकता. राजनीति हमेशा संभावनाओं का खेल है.

